नीतिवचन 26
26
1जैसे ग्रीष्म ऋतु में बरफ का गिरना,
जैसे फसल की कटनी के समय
पानी का बरसना ठीक नहीं,
वैसे ही मूर्ख का सम्मान करना अनुचित है।
2जैसे गौरैया और सूपावेनी
आकाश में उड़ते समय नहीं ठहरतीं,
वैसे ही अकारण दिया गया शाप भी
मनुष्य पर नहीं ठहरता।#गण 23:8
3घोड़े के लिए लगाम,
गधे के लिए छड़ी
और मूर्ख की पीठ के लिए बेंत उचित है।
4मूर्ख की मूर्खता भरी बातों का उत्तर मत देना;
अन्यथा तू भी उसी के समान मूर्ख बन
जाएगा।
5मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुरूप उत्तर देना;
अन्यथा वह स्वयं को अपनी दृष्टि में बुद्धिमान
समझेगा।
6जो मनुष्य मूर्ख के हाथ से सन्देश भेजता है,
वह मानो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारता है,
वह मानो विपत्ति मोल लेता है।
7जैसे पंगु मनुष्य के पैर व्यर्थ लटकते रहते हैं,
वैसे ही मूर्ख के मुंह में
नीति के वचन व्यर्थ लगते हैं।
8मूर्ख मनुष्य को सम्मान देना,
मानो सूअर के आगे मोती डालना है।#26:8 शब्दश:, “गोफन में पत्थर बांधने के समान है।”
9मूर्ख मनुष्य के मुंह में नीतिवचन ऐसे लगते हैं,
मानो शराबी के हाथ में कांटों की शाख!
10जो मालिक राह चलते शराबी
या मूर्ख को काम पर लगाता है,
वह मानो ऐसा तीरंदाज है,
जो अकारण सबको घायल करता है।
11जो मूर्ख बार-बार मूर्खता के काम करता है,
वह मानो कुत्ते के समान अपनी उल्टी को
चाटता है।#2 पत 2:22
12यदि तुझे ऐसा मनुष्य मिले,
जो स्वयं को अपनी दृष्टि में
बुद्धिमान मानता है,
तो उस मनुष्य से अधिक मूर्ख का भविष्य
उज्ज्वल है।
13आलसी मनुष्य नकली डर का बहाना
बनाता है।
वह कहता है, ‘रास्ते में सिंह है;
गलियों में सिंह है।’
14जैसे किवाड़ अपने कब्जे पर घूमता है,
वैसे ही आलसी मनुष्य बिस्तर से उठना
नहीं चाहता,
और करवटें बदलता है।
15आलसी मनुष्य भोजन की थाली में हाथ
डालता है,
पर आलस्य के कारण कौर मुंह तक
नहीं उठाता।
16आलसी मनुष्य स्वयं को अपनी दृष्टि में सात
बुद्धिमान मनुष्यों से श्रेष्ठ समझता है,
जो सोच-समझ कर उत्तर देते हैं।
17जो मनुष्य दूसरों के झगड़ों में हाथ डालता है,
वह मानो आवारा कुत्ते के कान पकड़ता है।
18-19जो मनुष्य अपने पड़ोसी को
धोखा देता है,
और बहाना बनाकर यह कहता है,
‘मैं तो मजाक कर रहा था’;
वह उस पागल मनुष्य के समान है,
जो लोगों पर जलती लकड़ियां फेंकता है,
जो प्राण घातक तीर मारता है।
20जैसे लकड़ी न होने से आग बुझ जाती है,
वैसे ही कानाफूसी करनेवाले के
न होने से झगड़ा शान्त हो जाता है।
21जैसे अंगारों में कोयला,
और आग में लकड़ी होती है
वैसे ही झगड़ालू आदमी होता है
जो झगड़े में घी का काम करता है।
22कानाफूसी करनेवाले की बातें
कानों को प्रिय लगती हैं,
वे सीधे मन में उतर जाती हैं,
स्वादिष्ट भोजन के समान हजम हो जाती हैं।
23जैसे मिट्टी के बर्तन पर चांदी की कलई चढ़ी
होती है
वैसे ही जिस मनुष्य के हृदय में बुराई होती है,
उसके ओंठ चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं।#लू 11:39
24घृणा करनेवाला मनुष्य
ओंठों से मीठी-मीठी बातें करता है,
पर हृदय में कपट रखता है।
25जब वह मीठी-मीठी बातें करे,
तब उसकी बात पर विश्वास मत करना;
क्योंकि उसके हृदय में सात घिनौनी बातें
छिपी होती हैं।
26यद्यपि वह अपनी घृणा को
चतुराई से छिपा लेता है;
तो भी उसकी बुराई सभा में प्रकट हो
जाएगी।
27जो मनुष्य दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है,
वह स्वयं उसमें गिरता है।
जो मनुष्य दूसरे के लिए फन्दा लगाता है,
वह खुद उसमें फंस जाता है।#26:27 शब्दश: “दूसरे पर पत्थर लुढ़कानेवाले पर पत्थर पलटकर गिरता है।” #भज 7:15; प्रव 27:25-27
28यदि झूठा मनुष्य सच्चे मनुष्य को नष्ट करे,
तो वह उससे सदा घृणा करता रहेगा;
चाटुकारी ओंठ विनाश का जाल ही बुनते हैं।
वर्तमान में चयनित:
नीतिवचन 26: HINCLBSI
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नीतिवचन 26
26
1जैसे ग्रीष्म ऋतु में बरफ का गिरना,
जैसे फसल की कटनी के समय
पानी का बरसना ठीक नहीं,
वैसे ही मूर्ख का सम्मान करना अनुचित है।
2जैसे गौरैया और सूपावेनी
आकाश में उड़ते समय नहीं ठहरतीं,
वैसे ही अकारण दिया गया शाप भी
मनुष्य पर नहीं ठहरता।#गण 23:8
3घोड़े के लिए लगाम,
गधे के लिए छड़ी
और मूर्ख की पीठ के लिए बेंत उचित है।
4मूर्ख की मूर्खता भरी बातों का उत्तर मत देना;
अन्यथा तू भी उसी के समान मूर्ख बन
जाएगा।
5मूर्ख को उसकी मूर्खता के अनुरूप उत्तर देना;
अन्यथा वह स्वयं को अपनी दृष्टि में बुद्धिमान
समझेगा।
6जो मनुष्य मूर्ख के हाथ से सन्देश भेजता है,
वह मानो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारता है,
वह मानो विपत्ति मोल लेता है।
7जैसे पंगु मनुष्य के पैर व्यर्थ लटकते रहते हैं,
वैसे ही मूर्ख के मुंह में
नीति के वचन व्यर्थ लगते हैं।
8मूर्ख मनुष्य को सम्मान देना,
मानो सूअर के आगे मोती डालना है।#26:8 शब्दश:, “गोफन में पत्थर बांधने के समान है।”
9मूर्ख मनुष्य के मुंह में नीतिवचन ऐसे लगते हैं,
मानो शराबी के हाथ में कांटों की शाख!
10जो मालिक राह चलते शराबी
या मूर्ख को काम पर लगाता है,
वह मानो ऐसा तीरंदाज है,
जो अकारण सबको घायल करता है।
11जो मूर्ख बार-बार मूर्खता के काम करता है,
वह मानो कुत्ते के समान अपनी उल्टी को
चाटता है।#2 पत 2:22
12यदि तुझे ऐसा मनुष्य मिले,
जो स्वयं को अपनी दृष्टि में
बुद्धिमान मानता है,
तो उस मनुष्य से अधिक मूर्ख का भविष्य
उज्ज्वल है।
13आलसी मनुष्य नकली डर का बहाना
बनाता है।
वह कहता है, ‘रास्ते में सिंह है;
गलियों में सिंह है।’
14जैसे किवाड़ अपने कब्जे पर घूमता है,
वैसे ही आलसी मनुष्य बिस्तर से उठना
नहीं चाहता,
और करवटें बदलता है।
15आलसी मनुष्य भोजन की थाली में हाथ
डालता है,
पर आलस्य के कारण कौर मुंह तक
नहीं उठाता।
16आलसी मनुष्य स्वयं को अपनी दृष्टि में सात
बुद्धिमान मनुष्यों से श्रेष्ठ समझता है,
जो सोच-समझ कर उत्तर देते हैं।
17जो मनुष्य दूसरों के झगड़ों में हाथ डालता है,
वह मानो आवारा कुत्ते के कान पकड़ता है।
18-19जो मनुष्य अपने पड़ोसी को
धोखा देता है,
और बहाना बनाकर यह कहता है,
‘मैं तो मजाक कर रहा था’;
वह उस पागल मनुष्य के समान है,
जो लोगों पर जलती लकड़ियां फेंकता है,
जो प्राण घातक तीर मारता है।
20जैसे लकड़ी न होने से आग बुझ जाती है,
वैसे ही कानाफूसी करनेवाले के
न होने से झगड़ा शान्त हो जाता है।
21जैसे अंगारों में कोयला,
और आग में लकड़ी होती है
वैसे ही झगड़ालू आदमी होता है
जो झगड़े में घी का काम करता है।
22कानाफूसी करनेवाले की बातें
कानों को प्रिय लगती हैं,
वे सीधे मन में उतर जाती हैं,
स्वादिष्ट भोजन के समान हजम हो जाती हैं।
23जैसे मिट्टी के बर्तन पर चांदी की कलई चढ़ी
होती है
वैसे ही जिस मनुष्य के हृदय में बुराई होती है,
उसके ओंठ चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं।#लू 11:39
24घृणा करनेवाला मनुष्य
ओंठों से मीठी-मीठी बातें करता है,
पर हृदय में कपट रखता है।
25जब वह मीठी-मीठी बातें करे,
तब उसकी बात पर विश्वास मत करना;
क्योंकि उसके हृदय में सात घिनौनी बातें
छिपी होती हैं।
26यद्यपि वह अपनी घृणा को
चतुराई से छिपा लेता है;
तो भी उसकी बुराई सभा में प्रकट हो
जाएगी।
27जो मनुष्य दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है,
वह स्वयं उसमें गिरता है।
जो मनुष्य दूसरे के लिए फन्दा लगाता है,
वह खुद उसमें फंस जाता है।#26:27 शब्दश: “दूसरे पर पत्थर लुढ़कानेवाले पर पत्थर पलटकर गिरता है।” #भज 7:15; प्रव 27:25-27
28यदि झूठा मनुष्य सच्चे मनुष्य को नष्ट करे,
तो वह उससे सदा घृणा करता रहेगा;
चाटुकारी ओंठ विनाश का जाल ही बुनते हैं।
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