नीतिवचन 30
30
आगुर बेन-याकेह के नीतिवचन
1मस्सा नगर के आगूर बेन-याकेह#30:1 अर्थात् ‘याकेह का पुत्र आगूर’ के
नीतिवचन। आगूर ने दु:ख में कहा:
“परमेश्वर मेरे साथ नहीं है;#30:1 मूल में ‘ईतीएल’ और ‘उक्काल’।
निस्सन्देह वह मेरे साथ नहीं है;
मैं निस्सहाय हो गया हूं।
2निश्चय ही मैं मनुष्य नहीं,
वरन् पशु बन गया हूँ।
मुझ में मनुष्य की समझ नहीं रही।
3मैंने बुद्धि को पाने का प्रयत्न नहीं किया,
और न पवित्र परमेश्वर का ज्ञान मुझे मिला।
4“कौन मनुष्य स्वर्ग में जाकर
फिर पृथ्वी पर लौटा है?
कौन आदमी अपनी मुट्ठी में
हवा को पकड़ सका है?
कौन व्यक्ति वस्त्र में महासागर को लपेट
सका है?
किसने पृथ्वी के सब सीमान्तों को स्थिर
किया है?
उसका नाम क्या है?
उसके पुत्र का क्या नाम है?
यदि तुम जानते हो तो बताओ।#यो 3:13; अय्य 38:4-6
5“परमेश्वर की प्रत्येक प्रतिज्ञा
कसौटी-सिद्ध है।
जो मनुष्य परमेश्वर की शरण में आते हैं,
वह उनकी रक्षा ढाल जैसे करता है।#भज 18:30
6परमेश्वर के वचनों में घट-बढ़ मत करो;
अन्यथा वह तुम को प्रताड़ित करेगा,
और तुम झूठे कहलाओगे।
7“हे परमेश्वर, मैं तुझ से दो वरदान मांगता हूं।
मेरे मरने के पहले,
उन्हें देने से इन्कार मत कर।
8पहला वरदान:
छल-कपट और झूठ से मुझे बचा।
दूसरा वरदान:
न मुझे धन दे, और न गरीबी।
केवल उतना भोजन दे
जो मेरे जीवन के लिए आवश्यक है;#मत 6:11
9अन्यथा मैं भरपेट खाने पर
तेरी महिमा से इन्कार कर दूंगा,
और गर्व से कहूंगा, ‘प्रभु है कौन?’
अथवा गरीब होने पर मैं चोरी करने लगूंगा;
और यों तेरे पवित्र नाम को कलंकित
करूंगा।#व्य 8:12
10“सेवक की चुगली
उस के स्वामी से न करना;
ऐसा न हो कि वह तुझे शाप दे,
और तुझे भुगतना पड़े।
11“संसार में कुछ लोग हैं,
जो अपने माता-पिता को शाप देते हैं;
वे उनका भला नहीं चाहते।
12संसार में कुछ मनुष्य हैं
जो स्वयं को अपनी दृष्टि में शुद्ध मानते हैं;
किन्तु वे गन्दे हैं।
उनकी गन्दगी धुली नहीं है।
13संसार में कुछ आदमी हैं
जिनकी आंखें घमण्ड से भरी रहती हैं,
जिनकी भौंहें गर्व से चढ़ी रहती हैं।
14संसार में कुछ लोग हैं,
जिनके दांत मानो तलवार हैं,
छूरी जैसे तेज हैं;
वे पृथ्वी की सतह से गरीबों को,
समाज में दीन-दरिद्रों को फाड़ खाते हैं।”
संख्यात्मक नीतिवचन
15जोंक की दो बेटियां होती हैं,
जो सदा पुकारती हैं, ‘दो’, ‘दो’।
इसी प्रकार तीन वस्तुएं कभी तृप्त नहीं
होतीं,
चार वस्तुएं कभी नहीं कहतीं, ‘बस’।
16अधोलोक, बांझ स्त्री की कोख,
पानी के लिए प्यासी धरती,
और अग्नि, कभी नहीं कहती, ‘बस’।
17जो आंख पिता को टेढ़ी नजर से देखती है,
मां की आज्ञा को अनदेखा करती है,
उसको घाटी के कौए
खोद-खोद कर निकालेंगे,
उसको गिद्ध के बच्चे खाएंगे।
18तीन बातें मेरे लिए बहुत कठिन हैं;
नहीं चार बातें मेरी समझ में नहीं आतीं:
19गरुड़ का आकाश में उड़ना,
सांप का चट्टान पर चलना,
समुद्र में जहाज का तैरना,
और स्त्री के साथ पुरुष का व्यवहार।#प्रज्ञ 5:10-12
20यह व्यभिचारिणी स्त्री का आचरण है :
जैसे भोजन के बाद मनुष्य मुंह पोंछता है,
वैसे ही व्यभिचारिणी स्त्री
व्यभिचार कर्म के बाद कहती है,
“मैंने कोई बुरा काम नहीं किया।”
21तीन बातों के कारण धरती कांप उठती है;
नहीं, वह ये चार बातें सहन नहीं कर
सकती:
22जब कोई गुलाम राजा बन जाता है,
जब मूर्ख मनुष्य को भरपेट खाना मिलता है,
23जब कुलटा स्त्री का विवाह होता है,
और जब घर की नौकरानी
अपनी मालकिन को हटाकर
पैतृक सम्पत्ति पर कब्जा कर लेती है।
24धरती पर ये चार प्राणी छोटे माने जाते हैं,
किन्तु ये बड़े बुद्धिमान होते हैं:
25चींटियां कीड़े-मकोड़ों में निर्बल होती हैं;
पर वे वर्ष भर के लिए भोजन
ग्रीष्म काल में इकट्ठा कर लेती हैं।#नीति 6:6-8
26चट्टानी बिज्जू जीव-जन्तुओं में निर्बल होता है,
किन्तु वह अपना घर मजबूत चट्टानों में
बनाता है।
27टिड्डियों में कोई राजा नहीं होता,
फिर भी वे सैन्य दल के सदृश
पंिक्त में चलती हैं।
28छिपकली इतनी छोटी होती है
कि तुम उसको हथेली पर ले सकते हो;
तो भी वह राजमहलों में रहती है।
29तीन प्राणियों की चाल आकर्षक होती है,
नहीं, चार प्राणी जब चलते हैं
तब हृदय को मुग्ध कर देते हैं :
30पशुओं का राजा सिंह,
जो किसी भी पशु से नहीं डरता है;
31मुर्गियों के मध्य मुर्गा,
बकरा;
तथा राजा,
जब वह अपनी जनता के आगे-आगे
चलता है।
32यदि तूने अपनी प्रशंसा
करने की मूर्खता की है,
यदि तूने दुष्कर्म करने का
षड्यन्त्र रचा है,
तो अपने मुंह को बन्द रख।
33जैसे दूध को मथने से मक्खन,
और नाक को मरोड़ने से खून निकलता है,
वैसे ही क्रोध को उभाड़ने से
झगड़ा उत्पन्न होता है।
वर्तमान में चयनित:
नीतिवचन 30: HINCLBSI
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नीतिवचन 30
30
आगुर बेन-याकेह के नीतिवचन
1मस्सा नगर के आगूर बेन-याकेह#30:1 अर्थात् ‘याकेह का पुत्र आगूर’ के
नीतिवचन। आगूर ने दु:ख में कहा:
“परमेश्वर मेरे साथ नहीं है;#30:1 मूल में ‘ईतीएल’ और ‘उक्काल’।
निस्सन्देह वह मेरे साथ नहीं है;
मैं निस्सहाय हो गया हूं।
2निश्चय ही मैं मनुष्य नहीं,
वरन् पशु बन गया हूँ।
मुझ में मनुष्य की समझ नहीं रही।
3मैंने बुद्धि को पाने का प्रयत्न नहीं किया,
और न पवित्र परमेश्वर का ज्ञान मुझे मिला।
4“कौन मनुष्य स्वर्ग में जाकर
फिर पृथ्वी पर लौटा है?
कौन आदमी अपनी मुट्ठी में
हवा को पकड़ सका है?
कौन व्यक्ति वस्त्र में महासागर को लपेट
सका है?
किसने पृथ्वी के सब सीमान्तों को स्थिर
किया है?
उसका नाम क्या है?
उसके पुत्र का क्या नाम है?
यदि तुम जानते हो तो बताओ।#यो 3:13; अय्य 38:4-6
5“परमेश्वर की प्रत्येक प्रतिज्ञा
कसौटी-सिद्ध है।
जो मनुष्य परमेश्वर की शरण में आते हैं,
वह उनकी रक्षा ढाल जैसे करता है।#भज 18:30
6परमेश्वर के वचनों में घट-बढ़ मत करो;
अन्यथा वह तुम को प्रताड़ित करेगा,
और तुम झूठे कहलाओगे।
7“हे परमेश्वर, मैं तुझ से दो वरदान मांगता हूं।
मेरे मरने के पहले,
उन्हें देने से इन्कार मत कर।
8पहला वरदान:
छल-कपट और झूठ से मुझे बचा।
दूसरा वरदान:
न मुझे धन दे, और न गरीबी।
केवल उतना भोजन दे
जो मेरे जीवन के लिए आवश्यक है;#मत 6:11
9अन्यथा मैं भरपेट खाने पर
तेरी महिमा से इन्कार कर दूंगा,
और गर्व से कहूंगा, ‘प्रभु है कौन?’
अथवा गरीब होने पर मैं चोरी करने लगूंगा;
और यों तेरे पवित्र नाम को कलंकित
करूंगा।#व्य 8:12
10“सेवक की चुगली
उस के स्वामी से न करना;
ऐसा न हो कि वह तुझे शाप दे,
और तुझे भुगतना पड़े।
11“संसार में कुछ लोग हैं,
जो अपने माता-पिता को शाप देते हैं;
वे उनका भला नहीं चाहते।
12संसार में कुछ मनुष्य हैं
जो स्वयं को अपनी दृष्टि में शुद्ध मानते हैं;
किन्तु वे गन्दे हैं।
उनकी गन्दगी धुली नहीं है।
13संसार में कुछ आदमी हैं
जिनकी आंखें घमण्ड से भरी रहती हैं,
जिनकी भौंहें गर्व से चढ़ी रहती हैं।
14संसार में कुछ लोग हैं,
जिनके दांत मानो तलवार हैं,
छूरी जैसे तेज हैं;
वे पृथ्वी की सतह से गरीबों को,
समाज में दीन-दरिद्रों को फाड़ खाते हैं।”
संख्यात्मक नीतिवचन
15जोंक की दो बेटियां होती हैं,
जो सदा पुकारती हैं, ‘दो’, ‘दो’।
इसी प्रकार तीन वस्तुएं कभी तृप्त नहीं
होतीं,
चार वस्तुएं कभी नहीं कहतीं, ‘बस’।
16अधोलोक, बांझ स्त्री की कोख,
पानी के लिए प्यासी धरती,
और अग्नि, कभी नहीं कहती, ‘बस’।
17जो आंख पिता को टेढ़ी नजर से देखती है,
मां की आज्ञा को अनदेखा करती है,
उसको घाटी के कौए
खोद-खोद कर निकालेंगे,
उसको गिद्ध के बच्चे खाएंगे।
18तीन बातें मेरे लिए बहुत कठिन हैं;
नहीं चार बातें मेरी समझ में नहीं आतीं:
19गरुड़ का आकाश में उड़ना,
सांप का चट्टान पर चलना,
समुद्र में जहाज का तैरना,
और स्त्री के साथ पुरुष का व्यवहार।#प्रज्ञ 5:10-12
20यह व्यभिचारिणी स्त्री का आचरण है :
जैसे भोजन के बाद मनुष्य मुंह पोंछता है,
वैसे ही व्यभिचारिणी स्त्री
व्यभिचार कर्म के बाद कहती है,
“मैंने कोई बुरा काम नहीं किया।”
21तीन बातों के कारण धरती कांप उठती है;
नहीं, वह ये चार बातें सहन नहीं कर
सकती:
22जब कोई गुलाम राजा बन जाता है,
जब मूर्ख मनुष्य को भरपेट खाना मिलता है,
23जब कुलटा स्त्री का विवाह होता है,
और जब घर की नौकरानी
अपनी मालकिन को हटाकर
पैतृक सम्पत्ति पर कब्जा कर लेती है।
24धरती पर ये चार प्राणी छोटे माने जाते हैं,
किन्तु ये बड़े बुद्धिमान होते हैं:
25चींटियां कीड़े-मकोड़ों में निर्बल होती हैं;
पर वे वर्ष भर के लिए भोजन
ग्रीष्म काल में इकट्ठा कर लेती हैं।#नीति 6:6-8
26चट्टानी बिज्जू जीव-जन्तुओं में निर्बल होता है,
किन्तु वह अपना घर मजबूत चट्टानों में
बनाता है।
27टिड्डियों में कोई राजा नहीं होता,
फिर भी वे सैन्य दल के सदृश
पंिक्त में चलती हैं।
28छिपकली इतनी छोटी होती है
कि तुम उसको हथेली पर ले सकते हो;
तो भी वह राजमहलों में रहती है।
29तीन प्राणियों की चाल आकर्षक होती है,
नहीं, चार प्राणी जब चलते हैं
तब हृदय को मुग्ध कर देते हैं :
30पशुओं का राजा सिंह,
जो किसी भी पशु से नहीं डरता है;
31मुर्गियों के मध्य मुर्गा,
बकरा;
तथा राजा,
जब वह अपनी जनता के आगे-आगे
चलता है।
32यदि तूने अपनी प्रशंसा
करने की मूर्खता की है,
यदि तूने दुष्कर्म करने का
षड्यन्त्र रचा है,
तो अपने मुंह को बन्द रख।
33जैसे दूध को मथने से मक्खन,
और नाक को मरोड़ने से खून निकलता है,
वैसे ही क्रोध को उभाड़ने से
झगड़ा उत्पन्न होता है।
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