भजन संहिता 146

146
उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की स्‍तुति
1प्रभु की स्‍तुति करो!
ओ मेरे प्राण, प्रभु की स्‍तुति कर।
2जब तक मैं जीवित हूं, प्रभु की स्‍तुति करूँगा,
मैं अपने जीवन-भर
अपने परमेश्‍वर का स्‍तुतिगान करूंगा।
3शासकों पर भरोसा मत करो,
और न मनुष्‍यों पर,
जिनमें सहायता करने का सामर्थ्य नहीं है।#यश 2:22
4प्राण के निकलते ही
वे मिट्टी में मिल जाते हैं; उसी दिन
उनकी योजनाएँ भी नष्‍ट हो जाती हैं।
5धन्‍य है वह मनुष्‍य, जिसका सहायक
इस्राएल का परमेश्‍वर है,
जो अपने प्रभु परमेश्‍वर पर आशा करता है।#यिर 17:7
6वही प्रभु आकाश, पृथ्‍वी और सागर का
एवं सबका सृजक है, जो उनमें हैं।
प्रभु सदा के लिए सत्‍य का रक्षक है;#प्रे 4:24; 14:15
7वह दलितों को न्‍याय दिलाता है;
और भूखों को रोटी देता है।
निस्‍सन्‍देह, प्रभु बन्‍दियों को छुड़ाता है।#भज 145:15; यश 61:1
8वह अन्‍धों को दृष्‍टि देता है।
प्रभु झुके हुओं को उठाता है;
प्रभु अपने भक्‍तों से प्रेम करता है। #मत 9:30; यो 9:7
9प्रभु परदेशी का रक्षक है,
वह अनाथ एवं विधवा का सहारा है;
पर वह दुर्जनों के मार्ग को कुटिल बनाता है।
10ओ सियोन, तेरा प्रभु परमेश्‍वर पीढ़ी से
पीढ़ी तक सदा राज्‍य करता है।
प्रभु की स्‍तुति करो!

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