भजन संहिता 25

25
मार्ग-दर्शन, क्षमा और रक्षा के लिए प्रार्थना
दाऊद का।
1हे प्रभु, मैं तेरा ही ध्‍यान करता हूँ।#भज 86:4
2हे मेरे परमेश्‍वर,
मैंने तुझ पर ही भरोसा रखा है;
मुझे लज्‍जित न होने देना,
मेरे शत्रु मुझ पर विजयी न होने पाएं।
3उन्‍हें भी लज्‍जित न होने देना,
जो तेरी प्रतीक्षा करते हैं,
परन्‍तु वे लज्‍जित हों,
जो अकारण विश्‍वासघात करते हैं।
4हे प्रभु, अपना मार्ग मुझे दिखा;
अपना पथ मुझे बता।
5अपने सत्‍य पथ पर मुझे ले चल
और मुझे सिखा;
क्‍योंकि तू ही मेरा उद्धार करने वाला
परमेश्‍वर है,
दिन भर मैं तेरी प्रतीक्षा करता हूँ।#भज 86:11; यो 16:13
6हे प्रभु, अपनी अनुकंपा को,
अपनी करुणा को स्‍मरण कर;
क्‍योंकि तू उनको युग-युगांत से
प्रकट करता रहा है।
7हे प्रभु, अपनी भलाई के कारण
मेरे यौवन के पापों और अपराधों को
स्‍मरण न कर;
किन्‍तु अपनी करुणा के अनुरूप
मेरी सुधि ले।
8प्रभु भला और सत्‍यनिष्‍ठ है;
अत: वह पापियों को अपना मार्ग बताता है।
9वह नम्र व्यक्‍ति को धर्मपथ पर चलाता है;
वह उसे अपना मार्ग सिखाता है।
10जो प्रभु के विधान और साक्षी को मानते हैं,
उनके लिए प्रभु के समस्‍त मार्ग
करुणामय तथा सत्‍य हैं।
11हे प्रभु, अपने नाम के लिए,
मेरा अपराध क्षमा कर।
मेरा अपराध बहुत भारी है।
12वह कौन है, जो प्रभु से डरता है?
उसको ही प्रभु
वह मार्ग सिखाएगा, जो उसे चुनना चाहिए।
13वह स्‍वयं समृद्धि में निवास करेगा;
और देश पर उसके वंश का अधिकार होगा।
14प्रभु अपने भक्‍तों पर
अपने भेद प्रकट करता है।
प्रभु उन्‍हें अपना विधान सिखाता है।
15मेरे नेत्र प्रभु की ओर टकटकी बांधे हैं;
क्‍योंकि प्रभु ही मेरे पैरों को जाल से
छुड़ाएगा।
16प्रभु, मेरी ओर उन्‍मुख हो, मुझ पर कृपा कर;
क्‍योंकि मैं एकाकी और पीड़ित हूँ।
17मेरे हृदय का क्‍लेश कितना बढ़ गया है;
मुझे संकट से मुक्‍त कर,
18मेरी पीड़ा एवं दु:ख को देख;
और मेरे सब पाप क्षमा कर।
19मेरे शत्रुओं को देख;
वे कितने बढ़ गए हैं;
वे मुझसे तीव्र घृणा करते हैं।
20मेरे प्राण की रक्षा कर,
और मेरा उद्धार कर;
मुझे लज्‍जित न होने दे;
क्‍योंकि मैं तेरी ही शरण में आया हूँ।
21सच्‍चरित्रता और सत्‍यनिष्‍ठा मेरी रक्षा करें,
क्‍योंकि मैं तेरी ही प्रतीक्षा करता हूँ।
22हे परमेश्‍वर, इस्राएल को उसके समस्‍त
संकटों से मुक्‍त कर।

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