भजन संहिता 36
36
मानव की अधोगति और परमेश्वर की करुणा
मुख्यवादक के लिए। प्रभु के सेवक दाऊद का।
1दुर्जन के हृदय में अपराध बोलता है।
उसकी आंखों में परमेश्वर का भय
है ही नहीं।#रोम 3:18
2वह स्वयं अपनी प्रशंसा करता है,
कि उसका तिरस्कार करने के लिए
उसका अधर्म प्रकट नहीं किया जा सकता है।
3उसके मुख के शब्द अनिष्ट और कपट हैं;
वह बुद्धि को छोड़ चुका है;
वह भलाई नहीं करता।
4वह अपनी शैया पर लेटे-लेटे
बुराई की योजनाएं बनाता है;
वह अपने को उस मार्ग पर ले जाता है,
जो भला नहीं है।
वह बुराई को धिक्कारता नहीं।#मी 2:1
5हे प्रभु, तेरी करुणा स्वर्ग तक महान है,
और तेरी सच्चाई मेघों को छूती है।
6तेरी धार्मिकता उच्च पर्वतों के समान
महान है;
तेरे न्याय-सिद्धान्त अथाह सागर के सदृश
गहरे है;
प्रभु, तू मनुष्य और पशु दोनों की रक्षा करता है।
7हे परमेश्वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है।
मनुष्य तेरे पंखों की छाया में शरण लेते हैं।
8वे तेरे घर के विभिन्न व्यंजनों से तृप्त होते हैं।
तू उन्हें अपनी सुख-सरिता से
जल पिलाता है।
9तेरे साथ ही जीवन का स्रोत्त है;
तेरी ज्योति में हम ज्योति देखते हैं।#यश 12:3; जक 13:1; यो 4:14
10जो भक्त तुझे जानते हैं
उन पर तू अपनी करुणा करता रह, और
सत्यनिष्ठों पर अपनी धार्मिकता बनाए रख।
11न अहंकारी का पैर मुझे कुचल सके;
और न दुर्जन का हाथ मुझे दूर धकेल सके।
12वहाँ कुकर्मी धूल-धूसरित पड़े हैं;
उन पर ऐसा प्रहार हुआ है कि वे उठ नहीं
सकते।
वर्तमान में चयनित:
भजन संहिता 36: HINCLBSI
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Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
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भजन संहिता 36
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मानव की अधोगति और परमेश्वर की करुणा
मुख्यवादक के लिए। प्रभु के सेवक दाऊद का।
1दुर्जन के हृदय में अपराध बोलता है।
उसकी आंखों में परमेश्वर का भय
है ही नहीं।#रोम 3:18
2वह स्वयं अपनी प्रशंसा करता है,
कि उसका तिरस्कार करने के लिए
उसका अधर्म प्रकट नहीं किया जा सकता है।
3उसके मुख के शब्द अनिष्ट और कपट हैं;
वह बुद्धि को छोड़ चुका है;
वह भलाई नहीं करता।
4वह अपनी शैया पर लेटे-लेटे
बुराई की योजनाएं बनाता है;
वह अपने को उस मार्ग पर ले जाता है,
जो भला नहीं है।
वह बुराई को धिक्कारता नहीं।#मी 2:1
5हे प्रभु, तेरी करुणा स्वर्ग तक महान है,
और तेरी सच्चाई मेघों को छूती है।
6तेरी धार्मिकता उच्च पर्वतों के समान
महान है;
तेरे न्याय-सिद्धान्त अथाह सागर के सदृश
गहरे है;
प्रभु, तू मनुष्य और पशु दोनों की रक्षा करता है।
7हे परमेश्वर, तेरी करुणा कैसी अनमोल है।
मनुष्य तेरे पंखों की छाया में शरण लेते हैं।
8वे तेरे घर के विभिन्न व्यंजनों से तृप्त होते हैं।
तू उन्हें अपनी सुख-सरिता से
जल पिलाता है।
9तेरे साथ ही जीवन का स्रोत्त है;
तेरी ज्योति में हम ज्योति देखते हैं।#यश 12:3; जक 13:1; यो 4:14
10जो भक्त तुझे जानते हैं
उन पर तू अपनी करुणा करता रह, और
सत्यनिष्ठों पर अपनी धार्मिकता बनाए रख।
11न अहंकारी का पैर मुझे कुचल सके;
और न दुर्जन का हाथ मुझे दूर धकेल सके।
12वहाँ कुकर्मी धूल-धूसरित पड़े हैं;
उन पर ऐसा प्रहार हुआ है कि वे उठ नहीं
सकते।
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