भजन संहिता 44

44
अतीत के मुक्‍ति-कार्य और वर्तमान संकट
मुख्‍यवादक के लिए। कोरह वंशियों का। एक मसकील।
1हे परमेश्‍वर, हमने अपने कानों से सुना है,
हमारे पूर्वजों ने हमें यह बताया है:
तूने उनके समय में, प्राचीन काल में
अनेक अद्भुत कार्य किए थे।#भज 78:3
2तूने राष्‍ट्रों को अपने हाथ से उखाड़ा,
पर हमारे पूर्वजों को स्‍थापित किया था;
और उनको विकसित करने के लिए
तूने अन्‍य जातियों का दमन किया था।
3हमारे पूर्वजों ने तलवार से धरती पर अधिकार
नहीं किया था,
और न अपने भुजबल से विजय प्राप्‍त की थी,
वरन् तेरे दाहिने हाथ ने, तेरी भुजा ने,
तेरे मुख की ज्‍योति ने;
क्‍योंकि तब तू उनसे प्रसन्न था।
4हे परमेश्‍वर, तू मेरा राजा है;
तू ही इस्राएल#44:4 मूल में, ‘याकूब’ को विजय प्रदान करने वाला
ईश्‍वर है।
5हम तेरे बल पर अपने बैरियों को पीछे धकेल
देते हैं;
हम तेरे नाम से अपने आक्रमणकारियों को
कुचल देते हैं।
6मुझे अपने धनुष पर विश्‍वास नहीं है-
और न मेरी तलवार ही मुझे बचा सकती है।
7तूने हमें हमारे शत्रुओं से बचाया है-
जो हमसे घृणा करते थे, तूने उन्‍हें लज्‍जित
किया है।
8हम निरन्‍तर तुझ-परमेश्‍वर पर गर्व करते हैं,
हम तेरे नाम की स्‍तुति सदा करते रहेंगे।
सेलाह
9अब तूने हमें त्‍याग दिया, और हमें नीचा
दिखाया।
तू हमारी सेना के साथ नहीं गया।
10तूने हमें विवश किया कि हम अपने बैरी को
पीठ दिखाएं-
जो हमसे घृणा करते थे, उन्‍होंने हमें लूट
लिया।#लेव 26:17; व्‍य 28:25
11तूने हमें आहार बनने के लिए भेड़ जैसा सौंप
दिया;
हमें अनेक राष्‍ट्रों में बिखेर दिया।
12तूने अपने निज लोगों को सस्‍ते भाव में बेच
दिया;
तूने उनके मूल्‍य से लाभ नहीं कमाया।#यहो 24:12; हो 1:7#यश 52:3-4
13तूने हमें अपने पड़ोसियों की निन्‍दा का पात्र
बनाया,
हमारे चारों ओर के लोगों की दृष्‍टि में
उपहास और तिरस्‍कार का पात्र!
14तूने हमें राष्‍ट्रों में ‘कहावत’ बना दिया;
कौमें सिर हिला-हिला कर हम पर हंसती हैं।
15मेरा अपमान निरन्‍तर मेरे सामने रहता है;
लज्‍जा ने मेरे मुख को ढांप लिया है,
16तिरस्‍कार करनेवालों और निन्‍दकों की वाणी
के कारण;
शत्रु और प्रतिशोधियों की उपस्‍थिति के
कारण।
17यह सब हम पर बीता, फिर भी हमने तुझ
को विस्‍मृत नहीं किया;
तेरे विधान के प्रति विश्‍वासघात नहीं किया।
18हमारा हृदय तुझसे विमुख नहीं हुआ;
हमारे पैर तेरे मार्ग से नहीं मुड़े।
19अन्‍यथा तूने हमें खण्‍डहर#44:19 शब्‍दश: ‘गीदड़ों का स्‍थान’ बना दिया होता,
तूने मृत्‍यु की छाया में हमें आच्‍छादित किया
होता।
20यदि हमने अपने परमेश्‍वर का नाम विस्‍मृत
किया होता,
और पराये देवता की ओर हाथ फैलाया
होता,
21तो क्‍या परमेश्‍वर ने इसका पता नहीं लगा
लिया होता?
वह हृदय के भेदों को जानता है।
22पर नहीं! हम तो तेरे कारण
निरन्‍तर मौत के घाट उतारे जाते हैं;
हमें वध होनेवाली भेड़ जैसा समझा गया।#रोम 8:36
23जाग स्‍वामी! तू क्‍यों सो रहा है?
उठ! सदा के लिए हमें न त्‍याग।
24तू अपना मुख क्‍यों छिपा रहा है?
क्‍या तूने हमारी पीड़ा और कष्‍ट को भुला
दिया है?
25हमारे प्राण धूल में मिल गए हैं,
और पेट भूमि से चिपक गया है।
26उठ, और हमारी सहायता कर;
अपनी करुणा के कारण हमारा उद्धार कर।

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