फिर भी यह नहीं समझना चाहिए कि परमेश्वर का वचन रद्द हो गया है; क्योंकि इस्राएल के वंश में उत्पन्न सभी लोग सच्चे इस्राएली नहीं हैं और अब्राहम के वंश में जन्म लेने से ही सभी उनकी सच्ची सन्तान नहीं हो जाते; क्योंकि धर्मग्रन्थ कहता है, “जो इसहाक के वंश में जन्म लेते हैं, वे ही तेरे वंशज माने जायेंगे।” इसका अर्थ यह है कि जो प्रकृति के अनुसार जन्म लेते हैं, वे परमेश्वर की सन्तान नहीं हैं, बल्कि जिनका जन्म प्रतिज्ञा के अनुसार हुआ, वे ही वंशज माने जाते हैं; क्योंकि प्रतिज्ञा के ये शब्द थे: “मैं निर्धारित समय पर फिर आऊंगा और तब सारा को एक पुत्र उत्पन्न होगा।” इतना ही नहीं—रिबका के गर्भ में एक ही पुरुष, अर्थात् हमारे पूर्वज इसहाक से जुड़वां बच्चे हुए। उसके दोनों बच्चों का जन्म भी नहीं हुआ था और उन्होंने उस समय तक कोई पाप या पुण्य का काम नहीं किया था, जब रिबका से यह कहा गया, “अग्रज अपने अनुज के अधीन रहेगा।” यह इसलिए हुआ कि परमेश्वर के निर्वाचन का उद्देश्य बना रहे, जो मनुष्य के कर्मों पर नहीं, बल्कि बुलाने वाले के निर्णय पर निर्भर है। इसलिए धर्मग्रन्थ में लिखा है, “मैंने याकूब से प्रेम किया और एसाव से बैर।”
इस सम्बन्ध में हम क्या कहें? क्या परमेश्वर अन्याय करता है? कदापि नहीं! उसने मूसा से कहा, “मैं जिस पर दया करना चाहूँगा, उसी पर दया करूँगा और जिस पर तरस खाना चाहूँगा, उसी पर तरस खाऊंगा।” इसलिए यह मनुष्य की इच्छा या उसके परिश्रम पर नहीं, बल्कि दया करने वाले परमेश्वर पर निर्भर रहता है। धर्मग्रन्थ मिस्र देश के राजा फरओ से कहता है, “मैंने तुझे इसलिए ऊपर उठाया है कि तुझ में अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करूँ और सारी पृथ्वी पर अपने नाम का प्रचार करूँ।” इसलिए परमेश्वर जिस पर चाहे, दया करता है और जिसे चाहे, हठधर्मी बना देता है।
तुम मुझ से कहोगे, “तो, परमेश्वर मनुष्य को क्यों दोष देता है? परमेश्वर की इच्छा का विरोध कौन कर सकता है?” अरे भई! तुम कौन हो, जो परमेश्वर से विवाद करते हो? क्या गढ़ी हुई प्रतिमा अपने गढ़ने वाले से कहती है, “तुमने मुझे ऐसा क्यों बनाया?” क्या कुम्हार को यह अधिकार नहीं कि वह मिट्टी के एक ही लोंदे से एक पात्र विशिष्ट प्रयोजन के लिए बनाये और दूसरा पात्र साधारण प्रयोजन के लिए? यदि परमेश्वर ने अपना क्रोध प्रदर्शित करने तथा अपना सामर्थ्य प्रकट करने के उद्देश्य से बहुत धैर्य से कोप के उन पात्रों को सहन किया, जो विनाश के लिए तैयार थे, तो कौन आपत्ति कर सकता है? उसने ऐसा इसलिए किया कि वह दया के उन पात्रों पर अपनी महिमा का वैभव प्रकट करना चाहता था, जिन्हें उसने पहले से ही उस महिमा के लिए तैयार किया था।
ऐसे दया के पात्र हम हैं, जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से बुलाया है, बल्कि गैर-यहूदियों में से भी।