रोमियों 9
9
परमेश्वर और उसके मनोनीत लोग
1मैं मसीह में सच कहता हूँ और मेरा अन्त:करण पवित्र आत्मा में इस बात की साक्षी है कि मैं झूठ नहीं बोलता— 2मेरे हृदय में भारी पीड़ा है तथा मुझे निरन्तर दु:ख होता है। 3मैं तो यहां तक चाहता हूँ कि अपने उन भाई-बहिनों के कल्याण के लिए, जो शरीर के नाते मेरे सजातीय हैं, स्वयं ही शापग्रस्त हो जाऊं और मसीह से अलग हो जाऊं।#नि 32:32 4वे इस्राएली हैं। परमेश्वर ने उन्हें गोद लिया था। उन्हें परमेश्वर के सान्निध्य की महिमा प्राप्त हुई। परमेश्वर ने उनके साथ विधानों की स्थापना की तथा उन्हें मूसा की व्यवस्था प्रदान की है। उन्हें उपासना-विधि तथा प्रतिज्ञाएँ मिली हैं।#नि 4:22; व्य 7:6; 14:1-2 5महान पूर्वज उन्हीं के हैं और शरीर के नाते मसीह उन्हीं में से हैं। परम प्रधान परमेश्वर की युगानुयुग स्तुति हो!#9:5 अथवा, “वह परम प्रधान परमेश्वर हैं; उनकी युगानुयुग स्तुति हो।” आमेन!#रोम 1:25; मत 1:1; लू 3:23; यो 1:1
6फिर भी यह नहीं समझना चाहिए कि परमेश्वर का वचन रद्द हो गया है; क्योंकि इस्राएल के वंश में उत्पन्न सभी लोग सच्चे इस्राएली नहीं हैं#रोम 2:28; गण 23:19 7और अब्राहम के वंश में जन्म लेने से ही सभी उनकी सच्ची सन्तान नहीं हो जाते; क्योंकि धर्मग्रन्थ कहता है, “जो इसहाक के वंश में जन्म लेते हैं, वे ही तेरे वंशज माने जायेंगे।”#उत 21:12 8इसका अर्थ यह है कि जो प्रकृति के अनुसार जन्म लेते हैं, वे परमेश्वर की सन्तान नहीं हैं, बल्कि जिनका जन्म प्रतिज्ञा के अनुसार हुआ, वे ही वंशज माने जाते हैं;#गल 4:23 9क्योंकि प्रतिज्ञा के ये शब्द थे: “मैं निर्धारित समय पर फिर आऊंगा और तब सारा को एक पुत्र उत्पन्न होगा।”#उत 18:10 10इतना ही नहीं—रिबका के गर्भ में एक ही पुरुष, अर्थात् हमारे पूर्वज इसहाक से जुड़वां बच्चे हुए।#उत 25:11 11-12उसके दोनों बच्चों का जन्म भी नहीं हुआ था और उन्होंने उस समय तक कोई पाप या पुण्य का काम नहीं किया था, जब रिबका से यह कहा गया, “अग्रज अपने अनुज के अधीन रहेगा।” यह इसलिए हुआ कि परमेश्वर के निर्वाचन का उद्देश्य बना रहे, जो मनुष्य के कर्मों पर नहीं, बल्कि बुलाने वाले के निर्णय पर निर्भर है।#उत 25:23 13इसलिए धर्मग्रन्थ में लिखा है, “मैंने याकूब से प्रेम किया और एसाव से बैर।”#मल 1:2-3
14इस सम्बन्ध में हम क्या कहें? क्या परमेश्वर अन्याय करता है? कदापि नहीं!#व्य 32:4 15उसने मूसा से कहा, “मैं जिस पर दया करना चाहूँगा, उसी पर दया करूँगा और जिस पर तरस खाना चाहूँगा, उसी पर तरस खाऊंगा।”#नि 33:19 16इसलिए यह मनुष्य की इच्छा या उसके परिश्रम पर नहीं, बल्कि दया करने वाले परमेश्वर पर निर्भर रहता है। #इफ 2:8 17धर्मग्रन्थ मिस्र देश के राजा फरओ से कहता है, “मैंने तुझे इसलिए ऊपर उठाया है कि तुझ में अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करूँ और सारी पृथ्वी पर अपने नाम का प्रचार करूँ।”#नि 9:16 (यू. पाठ) 18इसलिए परमेश्वर जिस पर चाहे, दया करता है और जिसे चाहे, हठधर्मी बना देता है।#नि 4:21; 7:3; 9:12; 14:4,17
परमेश्वर परम स्वतन्त्र है
19तुम मुझ से कहोगे, “तो, परमेश्वर मनुष्य को क्यों दोष देता है? परमेश्वर की इच्छा का विरोध कौन कर सकता है?” 20अरे भई! तुम कौन हो, जो परमेश्वर से विवाद करते हो? क्या गढ़ी हुई प्रतिमा अपने गढ़ने वाले से कहती है, “तुमने मुझे ऐसा क्यों बनाया?”#अय्य 33:13; यश 29:16; 45:9; प्रज्ञ 12:12 21क्या कुम्हार को यह अधिकार नहीं कि वह मिट्टी के एक ही लोंदे से एक पात्र विशिष्ट प्रयोजन के लिए बनाये और दूसरा पात्र साधारण प्रयोजन के लिए?#यिर 18:6; प्रज्ञ 15:7; प्रव 33:13 22यदि परमेश्वर ने अपना क्रोध प्रदर्शित करने तथा अपना सामर्थ्य प्रकट करने के उद्देश्य से बहुत धैर्य से कोप के उन पात्रों को सहन किया, जो विनाश के लिए तैयार थे, तो कौन आपत्ति कर सकता है?#यिर 50:25; प्रज्ञ 12:20 23उसने ऐसा इसलिए किया कि वह दया के उन पात्रों पर अपनी महिमा का वैभव प्रकट करना चाहता था, जिन्हें उसने पहले से ही उस महिमा के लिए तैयार किया था।#इफ 1:3-12; रोम 2:4; 8:29
24ऐसे दया के पात्र हम हैं, जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से बुलाया है, बल्कि गैर-यहूदियों में से भी। 25जैसा कि वह नबी होशे के ग्रन्थ में कहता है, “जो लोग मेरी प्रजा नहीं थे, मैं उन्हें अपनी प्रजा कहूँगा और जो मुझे प्रिय नहीं थे, मैं उन्हें प्रिय कहूँगा।#हो 2:23 26और जिस स्थान पर उसने उन से यह कहा था, ‘तुम मेरी प्रजा नहीं हो’ वहीं वे जीवन्त परमेश्वर की संतान कहलायेंगे।”#हो 1:10
इस्राएली कर्मकाण्ड पर निर्भर रहे
27नबी यशायाह इस्राएल के विषय में पुकार कर कहते हैं, “इस्राएलियों की संख्या समुद्र के बालू-कणों के सदृश क्यों न हो, फिर भी उन में अवशेष मात्र मुक्ति पायेगा,#यश 10:22-23 (यू. पाठ); रोम 11:5 28क्योंकि प्रभु पूर्ण रूप से एवं शीघ्र ही पृथ्वी पर अपना वचन पूरा करेगा।” 29नबी यशायाह ने पहले भी कहा था, “यदि स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने हमारे लिए कुछ वंशज शेष नहीं छोड़े होते, तो हम सदोम और गमोरा नगरों के सदृश पूर्णत: नष्ट हो गये होते।”#यश 1:9 (यू. पाठ); व्य 29:23
30हम क्या कहें? इसका निष्कर्ष यह है कि गैर-यहूदियों ने, जो धार्मिकता की खोज में नहीं लगे हुए थे, धार्मिकता, अर्थात् विश्वास पर आधारित धार्मिकता प्राप्त की।#रोम 10:20 31परन्तु इस्राएल, जो धार्मिकता की व्यवस्था के प्रति उत्साह दिखलाता था, व्यवस्था की परिपूर्णता तक नहीं पहुँच सका।#रोम 10:2-3 32ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि इस्राएली विश्वास पर नहीं, बल्कि कर्मकाण्ड पर निर्भर रहते थे। उनके पैर “ठोकर के पत्थर” से लग गये और वे गिर पड़े।#यश 8:14 33जैसे कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “देखो, मैं सियोन में ठोकर का पत्थर, लोगों को गिराने वाली शिला रख रहा हूँ। परन्तु जो उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा।”#यश 28:16 (यू. पाठ); मत 21:42; 1 पत 2:6
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रोमियों 9
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परमेश्वर और उसके मनोनीत लोग
1मैं मसीह में सच कहता हूँ और मेरा अन्त:करण पवित्र आत्मा में इस बात की साक्षी है कि मैं झूठ नहीं बोलता— 2मेरे हृदय में भारी पीड़ा है तथा मुझे निरन्तर दु:ख होता है। 3मैं तो यहां तक चाहता हूँ कि अपने उन भाई-बहिनों के कल्याण के लिए, जो शरीर के नाते मेरे सजातीय हैं, स्वयं ही शापग्रस्त हो जाऊं और मसीह से अलग हो जाऊं।#नि 32:32 4वे इस्राएली हैं। परमेश्वर ने उन्हें गोद लिया था। उन्हें परमेश्वर के सान्निध्य की महिमा प्राप्त हुई। परमेश्वर ने उनके साथ विधानों की स्थापना की तथा उन्हें मूसा की व्यवस्था प्रदान की है। उन्हें उपासना-विधि तथा प्रतिज्ञाएँ मिली हैं।#नि 4:22; व्य 7:6; 14:1-2 5महान पूर्वज उन्हीं के हैं और शरीर के नाते मसीह उन्हीं में से हैं। परम प्रधान परमेश्वर की युगानुयुग स्तुति हो!#9:5 अथवा, “वह परम प्रधान परमेश्वर हैं; उनकी युगानुयुग स्तुति हो।” आमेन!#रोम 1:25; मत 1:1; लू 3:23; यो 1:1
6फिर भी यह नहीं समझना चाहिए कि परमेश्वर का वचन रद्द हो गया है; क्योंकि इस्राएल के वंश में उत्पन्न सभी लोग सच्चे इस्राएली नहीं हैं#रोम 2:28; गण 23:19 7और अब्राहम के वंश में जन्म लेने से ही सभी उनकी सच्ची सन्तान नहीं हो जाते; क्योंकि धर्मग्रन्थ कहता है, “जो इसहाक के वंश में जन्म लेते हैं, वे ही तेरे वंशज माने जायेंगे।”#उत 21:12 8इसका अर्थ यह है कि जो प्रकृति के अनुसार जन्म लेते हैं, वे परमेश्वर की सन्तान नहीं हैं, बल्कि जिनका जन्म प्रतिज्ञा के अनुसार हुआ, वे ही वंशज माने जाते हैं;#गल 4:23 9क्योंकि प्रतिज्ञा के ये शब्द थे: “मैं निर्धारित समय पर फिर आऊंगा और तब सारा को एक पुत्र उत्पन्न होगा।”#उत 18:10 10इतना ही नहीं—रिबका के गर्भ में एक ही पुरुष, अर्थात् हमारे पूर्वज इसहाक से जुड़वां बच्चे हुए।#उत 25:11 11-12उसके दोनों बच्चों का जन्म भी नहीं हुआ था और उन्होंने उस समय तक कोई पाप या पुण्य का काम नहीं किया था, जब रिबका से यह कहा गया, “अग्रज अपने अनुज के अधीन रहेगा।” यह इसलिए हुआ कि परमेश्वर के निर्वाचन का उद्देश्य बना रहे, जो मनुष्य के कर्मों पर नहीं, बल्कि बुलाने वाले के निर्णय पर निर्भर है।#उत 25:23 13इसलिए धर्मग्रन्थ में लिखा है, “मैंने याकूब से प्रेम किया और एसाव से बैर।”#मल 1:2-3
14इस सम्बन्ध में हम क्या कहें? क्या परमेश्वर अन्याय करता है? कदापि नहीं!#व्य 32:4 15उसने मूसा से कहा, “मैं जिस पर दया करना चाहूँगा, उसी पर दया करूँगा और जिस पर तरस खाना चाहूँगा, उसी पर तरस खाऊंगा।”#नि 33:19 16इसलिए यह मनुष्य की इच्छा या उसके परिश्रम पर नहीं, बल्कि दया करने वाले परमेश्वर पर निर्भर रहता है। #इफ 2:8 17धर्मग्रन्थ मिस्र देश के राजा फरओ से कहता है, “मैंने तुझे इसलिए ऊपर उठाया है कि तुझ में अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करूँ और सारी पृथ्वी पर अपने नाम का प्रचार करूँ।”#नि 9:16 (यू. पाठ) 18इसलिए परमेश्वर जिस पर चाहे, दया करता है और जिसे चाहे, हठधर्मी बना देता है।#नि 4:21; 7:3; 9:12; 14:4,17
परमेश्वर परम स्वतन्त्र है
19तुम मुझ से कहोगे, “तो, परमेश्वर मनुष्य को क्यों दोष देता है? परमेश्वर की इच्छा का विरोध कौन कर सकता है?” 20अरे भई! तुम कौन हो, जो परमेश्वर से विवाद करते हो? क्या गढ़ी हुई प्रतिमा अपने गढ़ने वाले से कहती है, “तुमने मुझे ऐसा क्यों बनाया?”#अय्य 33:13; यश 29:16; 45:9; प्रज्ञ 12:12 21क्या कुम्हार को यह अधिकार नहीं कि वह मिट्टी के एक ही लोंदे से एक पात्र विशिष्ट प्रयोजन के लिए बनाये और दूसरा पात्र साधारण प्रयोजन के लिए?#यिर 18:6; प्रज्ञ 15:7; प्रव 33:13 22यदि परमेश्वर ने अपना क्रोध प्रदर्शित करने तथा अपना सामर्थ्य प्रकट करने के उद्देश्य से बहुत धैर्य से कोप के उन पात्रों को सहन किया, जो विनाश के लिए तैयार थे, तो कौन आपत्ति कर सकता है?#यिर 50:25; प्रज्ञ 12:20 23उसने ऐसा इसलिए किया कि वह दया के उन पात्रों पर अपनी महिमा का वैभव प्रकट करना चाहता था, जिन्हें उसने पहले से ही उस महिमा के लिए तैयार किया था।#इफ 1:3-12; रोम 2:4; 8:29
24ऐसे दया के पात्र हम हैं, जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से बुलाया है, बल्कि गैर-यहूदियों में से भी। 25जैसा कि वह नबी होशे के ग्रन्थ में कहता है, “जो लोग मेरी प्रजा नहीं थे, मैं उन्हें अपनी प्रजा कहूँगा और जो मुझे प्रिय नहीं थे, मैं उन्हें प्रिय कहूँगा।#हो 2:23 26और जिस स्थान पर उसने उन से यह कहा था, ‘तुम मेरी प्रजा नहीं हो’ वहीं वे जीवन्त परमेश्वर की संतान कहलायेंगे।”#हो 1:10
इस्राएली कर्मकाण्ड पर निर्भर रहे
27नबी यशायाह इस्राएल के विषय में पुकार कर कहते हैं, “इस्राएलियों की संख्या समुद्र के बालू-कणों के सदृश क्यों न हो, फिर भी उन में अवशेष मात्र मुक्ति पायेगा,#यश 10:22-23 (यू. पाठ); रोम 11:5 28क्योंकि प्रभु पूर्ण रूप से एवं शीघ्र ही पृथ्वी पर अपना वचन पूरा करेगा।” 29नबी यशायाह ने पहले भी कहा था, “यदि स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु ने हमारे लिए कुछ वंशज शेष नहीं छोड़े होते, तो हम सदोम और गमोरा नगरों के सदृश पूर्णत: नष्ट हो गये होते।”#यश 1:9 (यू. पाठ); व्य 29:23
30हम क्या कहें? इसका निष्कर्ष यह है कि गैर-यहूदियों ने, जो धार्मिकता की खोज में नहीं लगे हुए थे, धार्मिकता, अर्थात् विश्वास पर आधारित धार्मिकता प्राप्त की।#रोम 10:20 31परन्तु इस्राएल, जो धार्मिकता की व्यवस्था के प्रति उत्साह दिखलाता था, व्यवस्था की परिपूर्णता तक नहीं पहुँच सका।#रोम 10:2-3 32ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि इस्राएली विश्वास पर नहीं, बल्कि कर्मकाण्ड पर निर्भर रहते थे। उनके पैर “ठोकर के पत्थर” से लग गये और वे गिर पड़े।#यश 8:14 33जैसे कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “देखो, मैं सियोन में ठोकर का पत्थर, लोगों को गिराने वाली शिला रख रहा हूँ। परन्तु जो उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा।”#यश 28:16 (यू. पाठ); मत 21:42; 1 पत 2:6
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