रूत 1
1
सास और बहू
1जब शासक#1:1 अथवा “प्रशासक” , “न्यायी” (देखिए शासक 2:16 की टिप्पणी) इस्राएलियों पर शासन करते थे तब उनके देश में अकाल पड़ा। एक इस्राएली पुरुष यहूदा प्रदेश के बेतलेहम नगर से मोआब देश में प्रवास करने के लिए चला गया। उसके साथ उसकी पत्नी और दो पुत्र भी गए।#मी 5:2; 1 इत 4:4 2उस पुरुष का नाम एलीमेलक, और उसकी पत्नी का नाम नाओमी था। उसके पुत्रों के नाम थे−महलोन और किलयोन। वे एप्राता-वंशज थे और यहूदा प्रदेश के बेतलेहम नगर के निवासी थे। वे मोआब देश आए और वहाँ रहने लगे।
3कुछ समय बाद नाओमी के पति एलीमेलक की मृत्यु हो गई, और वह अपने दोनों पुत्रों के साथ रह गई। 4उसके पुत्रों ने मोआबी जाति की स्त्रियों से विवाह कर लिया। उनमें से एक का नाम ओर्पा और दूसरी का नाम रूत था।
नाओमी और उसके पुत्र प्राय: दस वर्ष वहाँ रहे। 5तत्पश्चात् नाओमी के दोनों पुत्रों, महलोन और किलयोन, की मृत्यु हो गई। यों वह अपने पति और दोनों पुत्रों से वंचित हो गई।
6नाओमी ने मोआब देश में यह सुना कि प्रभु ने अपने लोगों की सुधि ली है, और स्वदेश में अच्छी फसल हुई है। इसलिए वह अपनी दोनों बहुओं के साथ मोआब देश से स्वदेश लौटने के लिए तैयारी करने लगी। 7वह और उसकी दोनों बहुएं उस स्थान से बाहर निकलीं, जहाँ वे रहती थीं। उन्होंने यहूदा प्रदेश लौटने के लिए मार्ग पकड़ा। 8नाओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, ‘अब तुम अपने-अपने मायके को लौट जाओ। जैसे तुमने मृत पति के साथ तथा मेरे साथ सद्व्यवहार किया है, वैसे प्रभु तुमसे सद्व्यवहार करे। 9प्रभु तुम्हें यह वरदान दे कि तुम पुन: विवाह कर सको
और पति के घर में आश्रय प्राप्त करो।’ नाओमी ने उनका चुम्बन लिया। उसकी बहुएं छाती पीट-पीटकर रोने लगीं। 10उन्होंने उससे कहा, ‘नहीं! हम आपके साथ आपकी जाति के लोगों के पास वापस जाएंगी।’ 11नाओमी ने कहा, ‘मेरी पुत्रियो, लौट जाओ। तुम मेरे साथ क्यों चलोगी? क्या मेरे गर्भ से अब भी पुत्र उत्पन्न होंगे कि वे तुम्हारे पति बन सकें?#उत 38:11; व्य 25:5 12लौट जाओ, मेरी पुत्रियो, चली जाओ। अब मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ, और विवाह नहीं कर सकती। यदि मैं तुमसे यह कहती कि मुझे गर्भ-धारण की आशा है, और यदि आज रात ही मुझे पति प्राप्त हो जाए, और मैं पुत्रों को जन्म दूँ 13तो क्या तुम उनके बड़े होने तक प्रतीक्षा करोगी? उस समय तक तुम विवाह नहीं करोगी? कदापि नहीं, मेरी पुत्रियो! मैं तुम्हारे कारण बड़ी दु:खी हूँ कि प्रभु का कृपापूर्ण हाथ मुझ पर से उठ गया।’ 14बहुएं जोर-जोर से फिर रोने लगीं। ओर्पा ने अपनी सास का चुम्बन लिया, और अपने लोगों के पास लौट गई। पर रूत अपनी सास से चिपकी रही।
15नाओमी ने फिर कहा, ‘देख, तेरी जेठानी अपने लोगों के पास, अपने देवताओं के पास लौट गई है। अब तू भी अपनी जेठानी के पीछे-पीछे लौट जा।’ 16रूत ने कहा, ‘आप मुझसे विनती मत कीजिए कि मैं आपको छोड़ दूँ, आपके पीछे-पीछे न आऊं और लौट जाऊं।
जहाँ-जहाँ आप जाएँगी,
वहाँ-वहाँ मैं भी जाऊंगी।
जहाँ आप रहेंगी, वहाँ मैं भी रहूँगी।
आपके लोग, मेरे लोग होंगे।
आपका परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा।#2 शम 15:21
17जहाँ आप अन्तिम सांस लेंगी,
वहाँ मैं भी मरकर दफन हूँगी।
यदि मृत्यु भी हमें एक-दूसरे से अलग करे तो प्रभु मेरे साथ कठोर व्यवहार करे, नहीं, उससे भी अधिक बुरा व्यवहार करे।’
18जब नाओमी ने देखा कि रूत उसके साथ जाने के अपने निश्चय पर दृढ़ है, तब वह और कुछ न बोली।
19वे दोनों चलते-चलते बेतलेहम नगर में आईं। जब उन्होंने बेतलेहम नगर में प्रवेश किया तब उनके कारण पूरे नगर में हलचल मच गई। स्त्रियों ने पूछा, ‘क्या यह नाओमी है?’ 20नाओमी ने उनसे कहा, ‘कृपाकर, अब मुझे “नाओमी” #1:20 नाओमी का अर्थ ‘सुखी’ मत कहो, बल्कि मुझे “मारा” #1:20 अर्थात् ‘दु:खी’ कहो; क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु ने मुझे बहुत दु:ख दिया है। 21मैं हरी-भरी गृहस्थी के साथ परदेश गई थी, पर प्रभु मुझे खाली हाथ स्वदेश लौटा लाया। जब प्रभु ने ही मुझे दुखिया बनाया है; सर्वशक्तिमान प्रभु ने मुझ पर विपत्ति ढाही है, तब क्यों तुम मुझे नाओमी कहती हो?’#अय्य 1:21
22यों नाओमी अपनी मोआबी बहू रूत के साथ मोआब देश से लौटी। जौ की फसल की कटनी के आरम्भिक दिन थे, जब नाओमी और रूत ने बेतलेहम नगर में प्रवेश किया।
वर्तमान में चयनित:
रूत 1: HINCLBSI
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रूत 1
1
सास और बहू
1जब शासक#1:1 अथवा “प्रशासक” , “न्यायी” (देखिए शासक 2:16 की टिप्पणी) इस्राएलियों पर शासन करते थे तब उनके देश में अकाल पड़ा। एक इस्राएली पुरुष यहूदा प्रदेश के बेतलेहम नगर से मोआब देश में प्रवास करने के लिए चला गया। उसके साथ उसकी पत्नी और दो पुत्र भी गए।#मी 5:2; 1 इत 4:4 2उस पुरुष का नाम एलीमेलक, और उसकी पत्नी का नाम नाओमी था। उसके पुत्रों के नाम थे−महलोन और किलयोन। वे एप्राता-वंशज थे और यहूदा प्रदेश के बेतलेहम नगर के निवासी थे। वे मोआब देश आए और वहाँ रहने लगे।
3कुछ समय बाद नाओमी के पति एलीमेलक की मृत्यु हो गई, और वह अपने दोनों पुत्रों के साथ रह गई। 4उसके पुत्रों ने मोआबी जाति की स्त्रियों से विवाह कर लिया। उनमें से एक का नाम ओर्पा और दूसरी का नाम रूत था।
नाओमी और उसके पुत्र प्राय: दस वर्ष वहाँ रहे। 5तत्पश्चात् नाओमी के दोनों पुत्रों, महलोन और किलयोन, की मृत्यु हो गई। यों वह अपने पति और दोनों पुत्रों से वंचित हो गई।
6नाओमी ने मोआब देश में यह सुना कि प्रभु ने अपने लोगों की सुधि ली है, और स्वदेश में अच्छी फसल हुई है। इसलिए वह अपनी दोनों बहुओं के साथ मोआब देश से स्वदेश लौटने के लिए तैयारी करने लगी। 7वह और उसकी दोनों बहुएं उस स्थान से बाहर निकलीं, जहाँ वे रहती थीं। उन्होंने यहूदा प्रदेश लौटने के लिए मार्ग पकड़ा। 8नाओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, ‘अब तुम अपने-अपने मायके को लौट जाओ। जैसे तुमने मृत पति के साथ तथा मेरे साथ सद्व्यवहार किया है, वैसे प्रभु तुमसे सद्व्यवहार करे। 9प्रभु तुम्हें यह वरदान दे कि तुम पुन: विवाह कर सको
और पति के घर में आश्रय प्राप्त करो।’ नाओमी ने उनका चुम्बन लिया। उसकी बहुएं छाती पीट-पीटकर रोने लगीं। 10उन्होंने उससे कहा, ‘नहीं! हम आपके साथ आपकी जाति के लोगों के पास वापस जाएंगी।’ 11नाओमी ने कहा, ‘मेरी पुत्रियो, लौट जाओ। तुम मेरे साथ क्यों चलोगी? क्या मेरे गर्भ से अब भी पुत्र उत्पन्न होंगे कि वे तुम्हारे पति बन सकें?#उत 38:11; व्य 25:5 12लौट जाओ, मेरी पुत्रियो, चली जाओ। अब मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ, और विवाह नहीं कर सकती। यदि मैं तुमसे यह कहती कि मुझे गर्भ-धारण की आशा है, और यदि आज रात ही मुझे पति प्राप्त हो जाए, और मैं पुत्रों को जन्म दूँ 13तो क्या तुम उनके बड़े होने तक प्रतीक्षा करोगी? उस समय तक तुम विवाह नहीं करोगी? कदापि नहीं, मेरी पुत्रियो! मैं तुम्हारे कारण बड़ी दु:खी हूँ कि प्रभु का कृपापूर्ण हाथ मुझ पर से उठ गया।’ 14बहुएं जोर-जोर से फिर रोने लगीं। ओर्पा ने अपनी सास का चुम्बन लिया, और अपने लोगों के पास लौट गई। पर रूत अपनी सास से चिपकी रही।
15नाओमी ने फिर कहा, ‘देख, तेरी जेठानी अपने लोगों के पास, अपने देवताओं के पास लौट गई है। अब तू भी अपनी जेठानी के पीछे-पीछे लौट जा।’ 16रूत ने कहा, ‘आप मुझसे विनती मत कीजिए कि मैं आपको छोड़ दूँ, आपके पीछे-पीछे न आऊं और लौट जाऊं।
जहाँ-जहाँ आप जाएँगी,
वहाँ-वहाँ मैं भी जाऊंगी।
जहाँ आप रहेंगी, वहाँ मैं भी रहूँगी।
आपके लोग, मेरे लोग होंगे।
आपका परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा।#2 शम 15:21
17जहाँ आप अन्तिम सांस लेंगी,
वहाँ मैं भी मरकर दफन हूँगी।
यदि मृत्यु भी हमें एक-दूसरे से अलग करे तो प्रभु मेरे साथ कठोर व्यवहार करे, नहीं, उससे भी अधिक बुरा व्यवहार करे।’
18जब नाओमी ने देखा कि रूत उसके साथ जाने के अपने निश्चय पर दृढ़ है, तब वह और कुछ न बोली।
19वे दोनों चलते-चलते बेतलेहम नगर में आईं। जब उन्होंने बेतलेहम नगर में प्रवेश किया तब उनके कारण पूरे नगर में हलचल मच गई। स्त्रियों ने पूछा, ‘क्या यह नाओमी है?’ 20नाओमी ने उनसे कहा, ‘कृपाकर, अब मुझे “नाओमी” #1:20 नाओमी का अर्थ ‘सुखी’ मत कहो, बल्कि मुझे “मारा” #1:20 अर्थात् ‘दु:खी’ कहो; क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु ने मुझे बहुत दु:ख दिया है। 21मैं हरी-भरी गृहस्थी के साथ परदेश गई थी, पर प्रभु मुझे खाली हाथ स्वदेश लौटा लाया। जब प्रभु ने ही मुझे दुखिया बनाया है; सर्वशक्तिमान प्रभु ने मुझ पर विपत्ति ढाही है, तब क्यों तुम मुझे नाओमी कहती हो?’#अय्य 1:21
22यों नाओमी अपनी मोआबी बहू रूत के साथ मोआब देश से लौटी। जौ की फसल की कटनी के आरम्भिक दिन थे, जब नाओमी और रूत ने बेतलेहम नगर में प्रवेश किया।
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