श्रेष्ठ गीत 8
8
1‘काश कि तुम मेरे सहोदर भाई होते;
और तुमने मेरी मां का दूध पिया होता;
क्योंकि तब यदि मैं
घर के बाहर तुम्हारा चुम्बन लेती,
तो कोई मेरी निन्दा न करता।#नीति 7:13
2मैं तुम्हें अपनी मां के घर ले जाती,
अपनी जननी के कक्ष में लाती।
मैं तुम्हें पीने को मसाला मिश्रित अंगूर का
रस, और अपने अनारों का रस पिलाती। #नीति 9:2
3काश! तुम्हारा बायां हाथ मेरे सिर के नीचे
रहता,
और तुम अपने दाहिने हाथ से मेरा आलिंगन
करते।
4‘ओ यरूशलेम की कन्याओ!
मैं तुम्हें शपथ देती हूं:
जब तक प्रेम स्वत: न जाग उठे,
तुम उसे न उकसाना, तुम उसे न जगाना।’
प्रेम का मूल्य
[सखियाँ]
5‘अपने प्रियतम के कन्धे पर
झुकी-सी
यह कौन निर्जन प्रदेश से आ रही है?’
[वधू]
‘मैं तुमको सेब के वृक्ष के नीचे जगाती हूं,
जहाँ तुम्हारी मां ने तुम्हारे लिए प्रसव-पीड़ा
भोगी थी,
जहाँ तुम्हारी जननी ने तुमको जन्म दिया था।
6ओ मेरे प्रियतम!
मुझे मुहर की तरह अपने हृदय पर अंकित
कर लो।
ताबीज के समान अपनी बाँह पर बांध लो,
क्योंकि प्रेम मृत्यु जैसा शक्तिशाली है,
और ईष्र्या कबर के समान निर्दयी है।
उसकी लपटें आग की लपटों जैसी होती हैं,
उसकी ज्वाला बड़ी उग्र होती है।#व्य 6:8; यश 49:16; यिर 22:24; हब 2:5; रोम 8:38
7अनेक जलाशय भी प्रेम की आग नहीं बुझा
सकते,
और न बाढ़ का जल उसे डुबा सकता है।
यदि कोई प्रेम के बदले
अपने घर की तमाम धन-सम्पत्ति लुटा दे,
तो भी उसकी धन-सम्पत्ति
प्रेम के पलड़े पर हल्की पड़ेगी।
8‘मेरे भाइयों ने कहा था : “हमारी एक छीटी
बहिन है,
उसके उरोज अब तक उठे नहीं।
अभी यदि उसको कोई मांगे
तो हम अपनी बहिन के लिए क्या करेंगे?
9यदि वह शहरपनाह होती
तो हम उस पर चांदी का कंगूरा बनाते,
और यदि वह द्वार का किवाड़ होती
तो हम उसपर देवदार के तख्ते लगा देते।”
10किन्तु मैं शहरपनाह हूं,
और मेरे उरोज उसकी मीनार हैं।
मैं अपने प्रियतम की नजर में
शान्ति लानेवाली वधू हूं।#यहेज 16:7; 1 रा 4:24-25
11‘बअल-हामोन नगर में राजा सुलेमान का एक अंगूर-उद्यान था। उसने अंगूर-उद्यान रखवालों को ठेके पर दे दिया। प्रत्येक रखवाला उसके फलों के लिए चांदी के एक हजार सिक्के देता था।
12मेरा, मेरे निज का अंगूर-उद्यान मेरे सामने है! ओ सुलेमान, तुम ये हजार सिक्के ले लो, और उसके फल के रखवाले भी दो सौ सिक्के ले लें!’
[वर]
13‘ओ बागों में रहनेवाली,
मेरे साथी तेरी आवाज सुनना चाहते हैं,
मुझे भी अपनी आवाज सुना।’
[वधू]
14‘ओ मेरे प्रियतम!
सुगन्धद्रव्यों के पर्वतों के तरुण मृग की तरह,
एक हरिण के सदृश शीघ्र आओ!’#1 कुर 16:22; प्रक 22:20
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Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
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श्रेष्ठ गीत 8
8
1‘काश कि तुम मेरे सहोदर भाई होते;
और तुमने मेरी मां का दूध पिया होता;
क्योंकि तब यदि मैं
घर के बाहर तुम्हारा चुम्बन लेती,
तो कोई मेरी निन्दा न करता।#नीति 7:13
2मैं तुम्हें अपनी मां के घर ले जाती,
अपनी जननी के कक्ष में लाती।
मैं तुम्हें पीने को मसाला मिश्रित अंगूर का
रस, और अपने अनारों का रस पिलाती। #नीति 9:2
3काश! तुम्हारा बायां हाथ मेरे सिर के नीचे
रहता,
और तुम अपने दाहिने हाथ से मेरा आलिंगन
करते।
4‘ओ यरूशलेम की कन्याओ!
मैं तुम्हें शपथ देती हूं:
जब तक प्रेम स्वत: न जाग उठे,
तुम उसे न उकसाना, तुम उसे न जगाना।’
प्रेम का मूल्य
[सखियाँ]
5‘अपने प्रियतम के कन्धे पर
झुकी-सी
यह कौन निर्जन प्रदेश से आ रही है?’
[वधू]
‘मैं तुमको सेब के वृक्ष के नीचे जगाती हूं,
जहाँ तुम्हारी मां ने तुम्हारे लिए प्रसव-पीड़ा
भोगी थी,
जहाँ तुम्हारी जननी ने तुमको जन्म दिया था।
6ओ मेरे प्रियतम!
मुझे मुहर की तरह अपने हृदय पर अंकित
कर लो।
ताबीज के समान अपनी बाँह पर बांध लो,
क्योंकि प्रेम मृत्यु जैसा शक्तिशाली है,
और ईष्र्या कबर के समान निर्दयी है।
उसकी लपटें आग की लपटों जैसी होती हैं,
उसकी ज्वाला बड़ी उग्र होती है।#व्य 6:8; यश 49:16; यिर 22:24; हब 2:5; रोम 8:38
7अनेक जलाशय भी प्रेम की आग नहीं बुझा
सकते,
और न बाढ़ का जल उसे डुबा सकता है।
यदि कोई प्रेम के बदले
अपने घर की तमाम धन-सम्पत्ति लुटा दे,
तो भी उसकी धन-सम्पत्ति
प्रेम के पलड़े पर हल्की पड़ेगी।
8‘मेरे भाइयों ने कहा था : “हमारी एक छीटी
बहिन है,
उसके उरोज अब तक उठे नहीं।
अभी यदि उसको कोई मांगे
तो हम अपनी बहिन के लिए क्या करेंगे?
9यदि वह शहरपनाह होती
तो हम उस पर चांदी का कंगूरा बनाते,
और यदि वह द्वार का किवाड़ होती
तो हम उसपर देवदार के तख्ते लगा देते।”
10किन्तु मैं शहरपनाह हूं,
और मेरे उरोज उसकी मीनार हैं।
मैं अपने प्रियतम की नजर में
शान्ति लानेवाली वधू हूं।#यहेज 16:7; 1 रा 4:24-25
11‘बअल-हामोन नगर में राजा सुलेमान का एक अंगूर-उद्यान था। उसने अंगूर-उद्यान रखवालों को ठेके पर दे दिया। प्रत्येक रखवाला उसके फलों के लिए चांदी के एक हजार सिक्के देता था।
12मेरा, मेरे निज का अंगूर-उद्यान मेरे सामने है! ओ सुलेमान, तुम ये हजार सिक्के ले लो, और उसके फल के रखवाले भी दो सौ सिक्के ले लें!’
[वर]
13‘ओ बागों में रहनेवाली,
मेरे साथी तेरी आवाज सुनना चाहते हैं,
मुझे भी अपनी आवाज सुना।’
[वधू]
14‘ओ मेरे प्रियतम!
सुगन्धद्रव्यों के पर्वतों के तरुण मृग की तरह,
एक हरिण के सदृश शीघ्र आओ!’#1 कुर 16:22; प्रक 22:20
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