इफिसियों 5

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ज्योति की सन्तान बनो
1इसलिये प्रिय बालकों के समान परमेश्‍वर का अनुकरण करो, 2और प्रेम में चलो जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया, और हमारे लिये अपने आप को सुखदायक सुगन्ध के लिये परमेश्‍वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया।#निर्ग 29:18; भजन 40:6
3जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार और किसी प्रकार के अशुद्ध काम या लोभ की चर्चा तक न हो; 4और न निर्लज्जता, न मूढ़ता की बातचीत की, न ठट्ठे की; क्योंकि ये बातें शोभा नहीं देतीं, वरन् धन्यवाद ही सुना जाए। 5क्योंकि तुम यह जानते हो कि किसी व्यभिचारी, या अशुद्ध जन, या लोभी मनुष्य की, जो मूर्तिपूजक के बराबर है, मसीह और परमेश्‍वर के राज्य में मीरास नहीं। 6कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे, क्योंकि इन ही कामों के कारण परमेश्‍वर का क्रोध आज्ञा न माननेवालों पर भड़कता है। 7इसलिये तुम उनके सहभागी न हो। 8क्योंकि तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, अत: ज्योति की सन्तान के समान चलो 9(क्योंकि ज्योति#5:9 किसी किसी लेख में ‘आत्मा’ शब्द आया है का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है), 10और यह परखो कि प्रभु को क्या भाता है। 11अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन् उन पर उलाहना दो। 12क्योंकि उनके गुप्‍त कामों की चर्चा भी लज्जा की बात है। 13पर जितने कामों पर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है वह ज्योति है। 14इस कारण वह कहता है,
“हे सोनेवाले,
जाग और मुर्दों में से जी उठ;
तो मसीह की ज्योति तुझ पर चमकेगी।”
15इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमानों के समान चलो। 16अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं।#कुलु 4:5 17इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो कि प्रभु की इच्छा क्या है। 18दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इससे लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ, 19और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने–अपने मन में प्रभु के सामने गाते और कीर्तन करते रहो। 20और सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्‍वर पिता का धन्यवाद करते रहो।#कुलु 3:16,17 21मसीह के भय से एक दूसरे के अधीन रहो।
पति और पत्नी
22हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे अधीन रहो जैसे प्रभु के।#कुलु 3:18; 1 पत 3:1 23क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है और स्वयं ही देह का उद्धारकर्ता है। 24पर जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियाँ भी हर बात में अपने अपने पति के अधीन रहें।
25हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया#कुलु 3:19; 1 पत 3:7 26कि उसको वचन के द्वारा जल के स्‍नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए, 27और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बनाकर अपने पास खड़ी करे, जिसमें न कलंक, न झुर्री, न कोई और ऐसी वस्तु हो वरन् पवित्र और निर्दोष हो। 28इसी प्रकार उचित है कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे। जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। 29क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन् उसका पालन–पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है। 30इसलिये कि हम उसकी देह के अंग हैं।
31“इस कारण मनुष्य अपने माता–पिता को
छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा,
और वे दोनों एक तन होंगे।”#उत्प 2:24
32यह भेद तो बड़ा है, पर मैं यहाँ मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूँ। 33पर तुम में से हर एक अपनी पत्नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपने पति का भय माने।

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