निर्गमन 27
27
होमबलि की वेदी
(निर्ग 38:1–7)
1“फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊँचाई तीन हाथ की हो। 2और उसके चारों कोनों पर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना। 3और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावड़ियाँ, और कटोरे, और काँटे, और अंगीठियाँ बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना। 4उसके लिए पीतल की जाली की एक झंझरी बनवाना; और उसके चारों सिरों में पीतल के चार कड़े लगवाना। 5और उस झंझरी को वेदी के चारों ओर की कंगनी के नीचे ऐेसे लगवाना कि वह वेदी की ऊँचाई के मध्य तक पहुँचे। 6और वेदी के लिये बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना। 7और डण्डे कड़ों में डाले जाएँ कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसके दोनों किनारों पर रहें। 8वेदी को तख़्तों से खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाई जाए।
निवास–स्थान का आँगन
(निर्ग 38:9–20)
9“फिर निवास के आँगन को बनवाना। उसके दक्षिण की ओर के लिये बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के परदे हों, उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक किनारे पर इतना ही हो। 10और उनके लिए बीस खम्भे बनें, और इनके लिये पीतल की बीस कुर्सियाँ बनें, और खम्भों के कुन्डे और उनकी पट्टियाँ चाँदी की हों। 11और उसी प्रकार आँगन के उत्तर की ओर की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे परदे हों, और उनके लिए भी बीस खम्भे और इनके लिये भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों। 12फिर आँगन की चौड़ाई में पश्चिम की ओर पचास हाथ के परदे हों, उनके लिए खम्भे दस और खाने भी दस हों। 13पूरब की ओर आँगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो। 14आँगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के परदे हों, और उनके लिए खम्भे तीन और खाने तीन हों; 15और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के परदे हों, उनके लिए भी खम्भे तीन और खाने तीन हों। 16आँगन के द्वार के लिये एक परदा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके लिए खम्भे चार और खाने भी चार हों। 17आँगन के चारों ओर के सब खम्भे चाँदी की पट्टियों से जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चाँदी के और खाने पीतल के हों। 18आँगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई पचास हाथ की, और उसके कनात की ऊँचाई पाँच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की बने, और खम्भों के खाने पीतल के हों। 19निवास स्थान के भाँति भाँति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूँटे और आँगन के भी सब खूँटे पीतल ही के हों।
दीपक की देख–रेख
(लैव्य 24:1–4)
20“फिर तू इस्राएलियों को आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिये कूट के निकाला हुआ जैतून का निर्मल तेल ले आना, जिससे दीपक नित्य जलता#27:20 मूल में, चढ़ा रहे। 21मिलापवाले तम्बू में, उस बीचवाले परदे से बाहर जो साक्षीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट साँझ से भोर तक यहोवा के सामने सजा कर रखें। यह विधि इस्राएलियों की पीढ़ियों के लिये सदैव बनी रहेगी।
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Hindi OV (Re-edited) Bible - पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible
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निर्गमन 27
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होमबलि की वेदी
(निर्ग 38:1–7)
1“फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊँचाई तीन हाथ की हो। 2और उसके चारों कोनों पर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना। 3और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावड़ियाँ, और कटोरे, और काँटे, और अंगीठियाँ बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना। 4उसके लिए पीतल की जाली की एक झंझरी बनवाना; और उसके चारों सिरों में पीतल के चार कड़े लगवाना। 5और उस झंझरी को वेदी के चारों ओर की कंगनी के नीचे ऐेसे लगवाना कि वह वेदी की ऊँचाई के मध्य तक पहुँचे। 6और वेदी के लिये बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना। 7और डण्डे कड़ों में डाले जाएँ कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसके दोनों किनारों पर रहें। 8वेदी को तख़्तों से खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाई जाए।
निवास–स्थान का आँगन
(निर्ग 38:9–20)
9“फिर निवास के आँगन को बनवाना। उसके दक्षिण की ओर के लिये बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के परदे हों, उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक किनारे पर इतना ही हो। 10और उनके लिए बीस खम्भे बनें, और इनके लिये पीतल की बीस कुर्सियाँ बनें, और खम्भों के कुन्डे और उनकी पट्टियाँ चाँदी की हों। 11और उसी प्रकार आँगन के उत्तर की ओर की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे परदे हों, और उनके लिए भी बीस खम्भे और इनके लिये भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भों के कुन्डे और पट्टियाँ चाँदी की हों। 12फिर आँगन की चौड़ाई में पश्चिम की ओर पचास हाथ के परदे हों, उनके लिए खम्भे दस और खाने भी दस हों। 13पूरब की ओर आँगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो। 14आँगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के परदे हों, और उनके लिए खम्भे तीन और खाने तीन हों; 15और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के परदे हों, उनके लिए भी खम्भे तीन और खाने तीन हों। 16आँगन के द्वार के लिये एक परदा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके लिए खम्भे चार और खाने भी चार हों। 17आँगन के चारों ओर के सब खम्भे चाँदी की पट्टियों से जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चाँदी के और खाने पीतल के हों। 18आँगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई पचास हाथ की, और उसके कनात की ऊँचाई पाँच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की बने, और खम्भों के खाने पीतल के हों। 19निवास स्थान के भाँति भाँति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूँटे और आँगन के भी सब खूँटे पीतल ही के हों।
दीपक की देख–रेख
(लैव्य 24:1–4)
20“फिर तू इस्राएलियों को आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिये कूट के निकाला हुआ जैतून का निर्मल तेल ले आना, जिससे दीपक नित्य जलता#27:20 मूल में, चढ़ा रहे। 21मिलापवाले तम्बू में, उस बीचवाले परदे से बाहर जो साक्षीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट साँझ से भोर तक यहोवा के सामने सजा कर रखें। यह विधि इस्राएलियों की पीढ़ियों के लिये सदैव बनी रहेगी।
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