निर्गमन 32

32
सोने का बछड़ा
(व्य 9:6–29)
1जब लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, “अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि क्या हुआ?”#प्रेरि 7:40 2हारून ने उनसे कहा, “तुम्हारी स्त्रियों और बेटे बेटियों के कानों में सोने की जो बालियाँ हैं उन्हें उतारो, और मेरे पास ले आओ।” 3तब सब लोगों ने उनके कानों से सोने की बालियों को उतारा, और हारून के पास ले आए। 4हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टाँकी से गढ़ा। तब लोग कहने लगे, “हे इस्राएल, तेरा ईश्‍वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है।”#32:4 1 राजा 12:28; प्रेरि 7:41 5यह देख के हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, “कल यहोवा के लिये पर्व होगा।” 6और दूसरे दिन लोगों ने भोर को उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।#1 कुरि 10:7
7तब यहोवा ने मूसा से कहा, “नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, वे बिगड़ गए हैं; 8और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उनको दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिये बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, ‘हे इस्राएलियो, तुम्हारा ईश्‍वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है’।” 9फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं ने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं।#32:9 मूल में, कड़ी गर्दन वाले 10अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिससे मैं उन्हें भस्म करूँ; परन्तु तुझसे एक बड़ी जाति उपजाऊँगा।”
11तब मूसा अपने परमेश्‍वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, “हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? 12मिस्री लोग यह क्यों कहने पाएँ, ‘वह उनको बुरे अभिप्राय से अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया?’ तू अपने भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुँचाने से फिर जा। 13अपने दास अब्राहम, इसहाक, और याक़ूब को स्मरण कर जिनसे तू ने अपनी ही शपथ खाकर यह कहा था, ‘मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूँगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूँगा कि वे उसके अधिकारी सदैव बने रहें’।”#उत्प 22:16,17; 17:8 14तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उसने कहा था पछताया।#गिन 14:13–19
15तब मूसा मुड़कर साक्षी की दोनों तख़्तियों को हाथ में लिये हुए पहाड़ से उतर गया। उन तख़्तियों के इधर और उधर दोनों ओर लिखा हुआ था, 16और वे तख़्तियाँ परमेश्‍वर की बनाई हुई थीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ था वह परमेश्‍वर का लिखा हुआ था।
17जब यहोशू को लोगों के कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उसने मूसा से कहा, “छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है।” 18उसने कहा, “यह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालों का है, और न हारनेवालों का है; मुझे तो गाने का शब्द सुनाई पड़ता है।” 19छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना दिखाई पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उसने तख़्तियों को अपने हाथों से पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला। 20तब उसने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डाल के फूँक दिया। और पीसकर चूर चूरकर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्राएलियों को उसे पिलवा दिया।
21तब मूसा हारून से कहने लगा, “इन लोगों ने तेरे साथ क्या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फँसाया?” 22हारून ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो इन लोगों को जानता ही है कि ये बुराई में मन लगाए रहते हैं। 23और उन्होंने मुझसे कहा, ‘हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि क्या हुआ?’#प्रेरि 7:40 24तब मैं ने उनसे कहा, ‘जिस जिसके पास सोने के गहने हों, वे उनको उतार लाएँ;’ और जब उन्होंने मुझ को वह दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा।”
25हारून ने उन लोगों को ऐसा निरंकुश कर दिया था कि वे अपने विरोधियों के बीच उपहास#32:25 मूल में, फुसफुसाहट के योग्य हो गए। 26उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, “जो कोई यहोवा की ओर का है वह मेरे पास आए;” तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए। 27उसने उनसे कहा, “इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यों कहता है कि अपनी अपनी जाँघ पर तलवार लटकाकर छावनी के एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपने अपने भाइयों, संगियों, और पड़ोसियों को घात करो।” 28मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियों ने किया; और उस दिन तीन हज़ार के लगभग लोग मारे गए। 29फिर मूसा ने कहा, “आज के दिन यहोवा के लिये अपना याजकपद का संस्कार करो,#32:29 मूल में, अपना हाथ भरो वरन् अपने अपने बेटों और भाइयों के भी विरुद्ध होकर ऐसा करो जिस से वह आज तुम को आशीष दे।”
30दूसरे दिन मूसा ने लोगों से कहा, “तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊँगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्‍चित्त कर सकूँ।” 31तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, “हाय, हाय, उन लोगों ने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है। 32तौभी अब तू उनका पाप क्षमा कर—नहीं तो अपनी लिखी हुई पुस्तक#भजन 69:28; प्रका 3:5 में से मेरे नाम को काट दे।”#32:32 मूल में, मुझी को मिटा 33यहोवा ने मूसा से कहा, “जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूँगा। 34अब तू जाकर उन लोगों को उस स्थान में ले चल जिसकी चर्चा मैं ने तुझ से की थी; देख, मेरा दूत तेरे आगे आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूँगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूँगा।”
35अत: यहोवा ने उन लोगों पर विपत्ति डाली, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया था।

वर्तमान में चयनित:

निर्गमन 32: HINOVBSI

हाइलाइट

शेयर

कॉपी

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in