उत्पत्ति 47:13-31

उत्पत्ति 47:13-31 HINOVBSI

उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी था, और अकाल के कारण मिस्र और कनान दोनों देश त्रस्त हो गए। और जितना रुपया मिस्र और कनान देश में था, सबको यूसुफ ने उस अन्न के बदले, जो उनके निवासी मोल लेते थे, इकट्ठा करके फ़िरौन के भवन में पहुँचा दिया। जब मिस्र और कनान देश का रुपया समाप्‍त हो गया, तब सब मिस्री यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे, “हम को भोजनवस्तु दे; क्या हम रुपये के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएँ?” यूसुफ ने कहा, “यदि रुपये न हों तो अपने पशु दे दो, और मैं उनके बदले तुम्हें खाने को दूँगा।” तब वे अपने पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उनको घोड़ों, भेड़–बकरियों, गाय–बैलों और गदहों के बदले खाने को देने लगा : उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं के बदले भोजन देकर उनका पालन–पोषण करता रहा। वह वर्ष तो यों कट गया; तब अगले वर्ष में उन्होंने उसके पास आकर कहा, “हम अपने प्रभु से यह बात छिपा न रखेंगे कि हमारा रुपया समाप्‍त हो गया है, और हमारे सब प्रकार के पशु हमारे प्रभु के पास आ चुके हैं; इसलिये अब हमारे प्रभु के सामने हमारे शरीर और भूमि छोड़कर और कुछ नहीं रहा। हम तेरे देखते क्यों मरें, और हमारी भूमि क्यों उजड़ जाए? हमको और हमारी भूमि को भोजन वस्तु के बदले मोल ले, कि हम अपनी भूमि समेत फ़िरौन के दास हों : और हमको बीज दे कि हम मरने न पाएँ, वरन् जीवित रहें, और भूमि न उजड़े।” तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि को फ़िरौन के लिये मोल लिया; क्योंकि उस भयंकर अकाल के पड़ने से मिस्रियों को अपना अपना खेत बेच डालना पड़ा। इस प्रकार सारी भूमि फ़िरौन की हो गई; और एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सारे मिस्र देश में जो प्रजा रहती थी, उसको उसने नगरों में लाकर बसा दिया। पर याजकों की भूमि उसने मोल न ली; क्योंकि याजकों के लिये फ़िरौन की ओर से नित्य भोजन का बन्दोबस्त था, और नित्य जो भोजन फ़िरौन उनको देता था वही वे खाते थे, इस कारण उनको अपनी भूमि बेचनी न पड़ी। तब यूसुफ ने प्रजा के लोगों से कहा, “सुनो, मैं ने आज के दिन तुम को और तुम्हारी भूमि को भी फ़िरौन के लिये मोल लिया है; देखो, तुम्हारे लिये यहाँ बीज है, इसे भूमि में बोओ। और जो कुछ उपजे उसका पंचमांश फ़िरौन को देना, बाकी चार अंश तुम्हारे रहेंगे कि तुम उसे अपने खेतों में बोओ, और अपने अपने बाल–बच्‍चों और घर के अन्य लोगों समेत खाया करो। उन्होंने कहा, “तू ने हमको बचा लिया है; हमारे प्रभु के अनुग्रह की दृष्‍टि हम पर बनी रहे, और हम फ़िरौन के दास होकर रहेंगे।” इस प्रकार यूसुफ ने मिस्र की भूमि के विषय में ऐसा नियम ठहराया, जो आज के दिन तक चला आता है कि पंचमांश फ़िरौन को मिला करे; केवल याजकों ही की भूमि फ़िरौन की नहीं हुई। इस्राएली मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगे; और वहाँ की भूमि उनके वश में थी; और वे फूले–फले, और अत्यन्त बढ़ गए। मिस्र देश में याक़ूब सत्रह वर्ष जीवित रहा : इस प्रकार याक़ूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष की हुई। जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उसने अपने पुत्र यूसुफ को बुलवाकर कहा, “यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रखकर शपथ खा कि तू मेरे साथ कृपा और सच्‍चाई का यह काम करेगा कि मुझे मिस्र में मिट्टी न देगा। जब मैं अपने बापदादों के संग सो जाऊँगा, तब तू मुझे मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के क़ब्रिस्तान में रखेगा।” तब यूसुफ ने कहा, “मैं तेरे वचन के अनुसार करूँगा।” फिर उसने कहा, “मुझ से शपथ खा।” अत: उसने उससे शपथ खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाकर प्रार्थना की।