उससे ऊँचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुँह को ढाँपे थे और दो से अपने पाँवों को, और दो से उड़ रहे थे। वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे : “सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।” और पुकारनेवाले के शब्द से डेवढ़ियों की नींवें डोल उठीं, और भवन धूएँ से भर गया।
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