उसके बच्चे सुरक्षा से दूर हैं, और वे फाटक में पीसे जाते हैं, और कोई नहीं है जो उन्हें छुड़ाए। उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं, वरन् कटीली बाड़ में से भी निकाल लेते हैं; और प्यासा उनके धन के लिये फन्दा लगाता है। क्योंकि विपत्ति धूल से उत्पन्न नहीं होती, और न कष्ट भूमि में से उगता है; परन्तु जैसे चिंगारियाँ ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं, वैसे ही मनुष्य कष्ट भोगने के लिये उत्पन्न हुआ है। “परन्तु मैं तो परमेश्वर ही को खोजता रहूँगा और अपना मुक़द्दमा परमेश्वर पर छोड़ दूँगा; वह तो ऐसे बड़े काम करता है जिनकी थाह नहीं लगती, और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जाते। वही पृथ्वी के ऊपर वर्षा करता, और खेतों पर जल बरसाता है। इसी रीति वह नम्र लोगों को ऊँचे स्थान पर बिठाता है, और शोक का पहिरावा पहिने हुए लोग ऊँचे पर पहुँचकर बचते हैं। वह धूर्त लोगों की कल्पनाएँ व्यर्थ कर देता है, और उनके हाथों से कुछ भी बन नहीं पड़ता। वह बुद्धिमानों को उनकी धूर्तता ही में फँसाता है; और कुटिल लोगों की युक्ति दूर की जाती है। उन पर दिन को अन्धेरा छा जाता है, और दिन दुपहरी में वे रात के समान टटोलते फिरते हैं। परन्तु वह दरिद्रों को उनके वचनरूपी तलवार से और बलवानों के हाथ से बचाता है। इसलिये कंगालों को आशा होती है, और कुटिल मनुष्यों का मुँह बन्द हो जाता है। “देख, क्या ही धन्य है वह मनुष्य, जिसको परमेश्वर ताड़ना देता है; इसलिये तू सर्वशक्तिमान की ताड़ना को तुच्छ मत जान। क्योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बाँधता है; वही मारता है, और वही अपने हाथों से चंगा भी करता है। वह तुझे छ: विपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन् सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी। अकाल में वह तुझे मृत्यु से, और युद्ध में तलवार की धार से बचा लेगा। तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब विनाश आए, तब भी तुझे भय न होगा। तू विनाश और अकाल के दिनों में हँसमुख रहेगा, और तुझे बनैले जन्तुओं से डर न लगेगा। वरन् मैदान के पत्थर भी तुझ से वाचा बाँधे रहेंगे, और वनपशु तुझ से मेल रखेंगे। तुझे निश्चय होगा कि तेरा डेरा कुशल से है, और जब तू अपने निवास में देखे तब कोई वस्तु खोई न होगी। तुझे यह भी निश्चय होगा कि मेरे बहुत वंश होंगे, और मेरी सन्तान पृथ्वी की घास के तुल्य बहुत होगी। जैसे पूलियों का ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है, वैसे ही तू पूरी आयु का होकर क़ब्र को पहुँचेगा। देख, हम ने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है; इसे तू सुन, और अपने लाभ के लिये ध्यान में रख।”
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