इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए, और जिस–जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो–दो करके अपने आगे भेजा। उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं, परन्तु मजदूर थोड़े हैं; इसलिये खेत के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे। जाओ; देखो, मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ। इसलिये न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो। जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’ यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा, तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ–पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर–घर न फिरना। जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ। वहाँ के बीमारों को चंगा करो और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
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