तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो। प्रभु निकट है। किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।
इसलिये हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो। जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण कीं, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूँ कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारी चिन्ता मेरे विषय में फिर जागृत हुई है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूँ; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूँ; उसी में सन्तोष करूँ। मैं दीन होना भी जानता हूँ और बढ़ना भी जानता हूँ; हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना–घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ।
तौभी तुम ने भला किया कि मेरे क्लेश में मेरे सहभागी हुए। हे फिलिप्पियो, तुम आप भी जानते हो कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में, जब मैं मकिदुनिया से विदा हुआ, तब तुम्हें छोड़ और किसी मण्डली ने लेने देने के विषय में मेरी सहायता नहीं की। इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था, तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन् दो बार कुछ भेजा था। यह नहीं कि मैं दान चाहता हूँ परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूँ जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए। मेरे पास सब कुछ है, वरन् बहुतायत से भी है; जो वस्तुएँ तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पाकर मैं तृप्त हो गया हूँ, वह तो सुखदायक सुगन्ध, ग्रहण करने योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है। मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है, तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।