इसलिये हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन पर ध्यान लगाया करो। जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण कीं, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा। मैं प्रभु में बहुत आनन्दित हूँ कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारी चिन्ता मेरे विषय में फिर जागृत हुई है; निश्चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूँ; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूँ; उसी में सन्तोष करूँ। मैं दीन होना भी जानता हूँ और बढ़ना भी जानता हूँ; हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना, भूखा रहना, और बढ़ना–घटना सीखा है।
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