रोमियों 1:21-32

रोमियों 1:21-32 HINOVBSI

इस कारण कि परमेश्‍वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्‍वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहाँ तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया। वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए, और अविनाशी परमेश्‍वर की महिमा को नाशवान् मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला। इस कारण परमेश्‍वर ने उन्हें उनके मन की अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें। क्योंकि उन्होंने परमेश्‍वर की सच्‍चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्‍टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है! आमीन। इसलिये परमेश्‍वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहाँ तक कि उनकी स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को उससे जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला। वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया। जब उन्होंने परमेश्‍वर को पहिचानना न चाहा, तो परमेश्‍वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करें। इसलिये वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्‍टता, और लोभ, और बैरभाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, बदनाम करनेवाले, परमेश्‍वर से घृणा करनेवाले, दूसरों का अनादर करनेवाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी–बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा न माननेवाले, निर्बुद्धि, विश्‍वासघाती, मयारहित और निर्दय हो गए। वे तो परमेश्‍वर की यह विधि जानते हैं कि ऐसे ऐसे काम करनेवाले मृत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तौभी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं वरन् करनेवालों से प्रसन्न भी होते हैं।