अय्यूब 38

38
यहोवा का अय्यूब को उत्तर
1 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूँ उत्तर दिया#38:1 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूँ उत्तर दिया: यह विशेष करके अय्यूब के लिए है, इसलिए नहीं कि वह इस पुस्तक का मुख्य नायक है परन्तु इसलिए कि वह कुड़कुड़ा रहा है और शिकायत कर रहा है।,
2“यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर
युक्ति को बिगाड़ना चाहता है?
3पुरुष के समान अपनी कमर बाँध ले,
क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे। (अय्यू. 40:7)
4“जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली, तब तू कहाँ था?
यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे।
5उसकी नाप किसने ठहराई, क्या तू जानता है
उस पर किसने सूत खींचा?
6उसकी नींव कौन सी वस्तु पर रखी गई,
या किसने उसके कोने का पत्थर बैठाया,
7जबकि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे
और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे?
8“फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला,
तब किसने द्वार बन्द कर उसको रोक दिया;
9जबकि मैंने उसको बादल पहनाया
और घोर अंधकार में लपेट दिया,
10और उसके लिये सीमा बाँधा
और यह कहकर बेंड़े और किवाड़ें लगा दिए,
11‘यहीं तक आ, और आगे न बढ़,
और तेरी उमड़नेवाली लहरें यहीं थम जाएँ।’
12“क्या तूने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी,
और पौ को उसका स्थान जताया है,
13ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश में करे,
और दुष्ट लोग उसमें से झाड़ दिए जाएँ?
14वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है,
और सब वस्तुएँ मानो वस्त्र पहने हुए दिखाई देती हैं।
15दुष्टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है,
और उनकी बढ़ाई हुई बाँह तोड़ी जाती है।
16“क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुँचा है,
या गहरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?
17 क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए#38:17 क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए: अर्थात् भूलोक के वे फाटक जहाँ मृत्यु का राज है या मृत्युलोक में खुलनेवाले फाटक।,
क्या तू घोर अंधकार के फाटकों को कभी देखने पाया है?
18क्या तूने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है?
यदि तू यह सब जानता है, तो बता दे।
19“उजियाले के निवास का मार्ग कहाँ है,
और अंधियारे का स्थान कहाँ है?
20क्या तू उसे उसकी सीमा तक हटा सकता है,
और उसके घर की डगर पहचान सकता है?
21निःसन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ था,
और तू बहुत आयु का है।
22फिर क्या तू कभी हिम के भण्डार में पैठा,
या कभी ओलों के भण्डार को तूने देखा है,
23जिसको मैंने संकट के समय और युद्ध
और लड़ाई के दिन के लिये रख छोड़ा है?
24किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है,
और पूर्वी वायु पृथ्वी पर बहाई जाती है?
25“महावृष्टि के लिये किसने नाला काटा,
और कड़कनेवाली बिजली के लिये मार्ग बनाया है,
26कि निर्जन देश में और जंगल में जहाँ कोई मनुष्य नहीं रहता मेंह बरसाकर,
27उजाड़ ही उजाड़ देश को सींचे, और हरी घास उगाए?
28क्या मेंह का कोई पिता है,
और ओस की बूँदें किसने उत्पन्न की?
29किसके गर्भ से बर्फ निकला है,
और आकाश से गिरे हुए पाले को कौन उत्पन्न करता है?
30जल पत्थर के समान जम जाता है,
और गहरे पानी के ऊपर जमावट होती है।
31“क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूँथ सकता
या मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है?
32क्या तू राशियों को ठीक-ठीक समय पर उदय कर सकता,
या सप्तर्षि को साथियों समेत लिए चल सकता है?
33क्या तू आकाशमण्डल की विधियाँ जानता
और पृथ्वी पर उनका अधिकार ठहरा सकता है?
34क्या तू बादलों तक अपनी वाणी पहुँचा सकता है,
ताकि बहुत जल बरस कर तुझे छिपा ले?
35क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है, कि वह जाए,
और तुझ से कहे, ‘मैं उपस्थित हूँ?’
36किसने अन्तःकरण में बुद्धि उपजाई,
और मन में समझने की शक्ति किसने दी है?
37कौन बुद्धि से बादलों को गिन सकता है?
और कौन आकाश के कुप्पों को उण्डेल सकता है,
38जब धूलि जम जाती है,
और ढेले एक दूसरे से सट जाते हैं?
39“क्या तू सिंहनी के लिये अहेर पकड़ सकता,
और जवान सिंहों का पेट भर सकता है,
40जब वे माँद में बैठे हों
और आड़ में घात लगाए दबक कर बैठे हों?
41फिर जब कौवे के बच्चे परमेश्वर की दुहाई देते हुए निराहार उड़ते फिरते हैं,
तब उनको आहार कौन देता है?

वर्तमान में चयनित:

अय्यूब 38: IRVHin

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