प्रेरितों 17:16-34
प्रेरितों 17:16-34 पवित्र बाइबल (HERV)
पौलुस एथेंस में तिमुथियुस और सिलास की प्रतीक्षा करते हुए नगर को मूर्तियों से भरा हुआ देखकर मन ही मन तिलमिला रहा था। इसलिए हर दिन वह यहूदी आराधनालय में यहूदियों और यूनानी भक्तों से वाद-विवाद करता रहता था। वहाँ हाट-बाजार में जो कोई होता वह उससे भी हर दिन बहस करता रहता। कुछ इपीकुरी और स्तोइकी दार्शनिक भी उससे शास्त्रार्थ करने लगे। उनमें से कुछ ने कहा, “यह अंटशंट बोलने वाला कहना क्या चाहता है?” दूसरों ने कहा, “यह तो विदेशी देवताओं का प्रचारक मालूम होता है।” उन्होंने यह इसलिए कहा था कि वह यीशु के बारे में उपदेश देता था और उसके फिर से जी उठने का प्रचार करता था। वे उसे पकड़कर अरियुपगुस की सभा में अपने साथ ले गये और बोले, “क्या हम जान सकते हैं कि तू जिसे लोगों के सामने रख रहा है, वह नयी शिक्षा क्या है? तू कुछ विचित्र बातें हमारे कानों में डाल रहा है, सो हम जानना चाहते हैं कि इन बातों का अर्थ क्या है?” (वहाँ रह रहे एथेंस के सभी लोग और परदेसी केवल कुछ नया सुनने या उन्हीं बातों की चर्चा के अतिरिक्त किसी भी और बात में अपना समय नहीं लगाते थे।) तब पौलुस ने अरियुपगुस के सामने खड़े होकर कहा, “हे एथेंस के लोगो! मैं देख रहा हूँ तुम हर प्रकार से धार्मिक हो। घूमते फिरते तुम्हारी उपासना की वस्तुओं को देखते हुए मुझे एक ऐसी वेदी भी मिली जिस पर लिखा था, ‘अज्ञात परमेश्वर’ के लिये सो तुम बिना जाने ही जिस की उपासना करते हो, मैं तुम्हें उसी का वचन सुनाता हूँ। “परमेश्वर, जिसने इस जगत की और इस जगत के भीतर जो कुछ है, उसकी रचना की वही धरती और आकाश का प्रभु है। वह हाथों से बनाये मन्दिरों में नहीं रहता। उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं है सो मनुष्य के हाथों से उसकी सेवा नहीं हो सकती। वही सब को जीवन, साँसें और अन्य सभी कुछ दिया करता है। एक ही मनुष्य से उसने मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया ताकि वे समूची धरती पर बस जायें और उसी ने लोगों का समय निश्चित कर दिया और उस स्थान की, जहाँ वे रहें सीमाएँ बाँध दीं। “उस का प्रयोजन यह था कि लोग परमेश्वर को खोजें। हो सकता है वे उसे उस तक पहुँच कर पा लें। इतना होने पर भी हममें से किसी से भी वह दूर नहीं हैं: क्योंकि उसी में हम रहते हैं उसी में हमारी गति है और उसी में है हमारा अस्तित्व। इसी प्रकार स्वयं तुम्हारे ही कुछ लेखकों ने भी कहा है, ‘क्योंकि हम उसके ही बच्चे हैं।’ “और क्योंकि हम परमेश्वर की संतान हैं इसलिए हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह दिव्य अस्तित्व सोने या चाँदी या पत्थर की बनी मानव कल्पना या कारीगरी से बनी किसी मूर्ति जैसा है। ऐसे अज्ञान के युग की परमेश्वर ने उपेक्षा कर दी है और अब हर कहीं के मनुष्यों को वह मन फिराव ने का आदेश दे रहा है। उसने एक दिन निश्चित किया है जब वह अपने नियुक्त किये गये एक पुरुष के द्वारा न्याय के साथ जगत का निर्णय करेगा। मरे हुओं में से उसे जिलाकर उसने हर किसी को इस बात का प्रमाण दिया है।” जब उन्होंने मरे हुओं में से जी उठने की बात सुनी तो उनमें से कुछ तो उसकी हँसी उड़ाने लगे किन्तु कुछ ने कहा, “हम इस विषय पर तेरा प्रवचन फिर कभी सुनेंगे।” तब पौलुस उन्हें छोड़ कर चल दिया। कुछ लोगों ने विश्वास ग्रहण कर लिया और उसके साथ हो लिये। इनमें अरियुपगुस का सदस्य दियुनुसियुस और दमरिस नामक एक महिला तथा उनके साथ के और लोग भी थे।
प्रेरितों 17:16-34 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
जब पौलुस अथेने नगर में सीलास और तिमोथी की प्रतीक्षा कर रहे थे, तो नगर में देवी-देवताओं की मूर्तियों की भरमार देख कर उन्हें बहुत क्षोभ हुआ। इस कारण वह न केवल सभागृह में यहूदियों तथा ईश्वर-भक्तों के साथ, बल्कि प्रतिदिन चौक में आने-जाने वाले लोगों के साथ भी तर्क-वितर्क करते थे। वहाँ कुछ एपिकूरी तथा स्तोइकी दार्शनिकों से भी उनका सम्पर्क हुआ। उनमें से कुछ लोगों ने कहा, “यह बकवादी हम से क्या कहना चाहता है?” दूसरों ने कहा, “यह विदेशी देवताओं का प्रचारक जान पड़ता है”, क्योंकि पौलुस येशु तथा “पुनरुत्थान” का शुभ समाचार सुना रहे थे। इसलिए वे पौलुस को अपने साथ अरियोपिगुस परिषद में ले गये और उनसे कहा, “क्या हम जान सकते हैं कि आप यह कौन-सी नयी शिक्षा दे रहे हैं? आप कुछ ऐसी बातें कहते हैं जो हमारे कानों को अनोखी लगती हैं। हम जानना चाहते हैं कि उनका अर्थ क्या है।” क्योंकि अथेने नगर के सब निवासी और वहाँ के रहने वाले विदेशी नयी-नयी बातें सुनाने अथवा सुनने के अतिरिक्त और किसी काम में समय नहीं बिताते थे। अरियोपिगुस परिषद के सामने खड़े होकर पौलुस ने यह कहा, “अथेने नगर के रहने वाले सज्जनो! मैं देख रहा हूँ कि आप लोग हर प्रकार से बड़े धर्म-प्रेमी हैं। जब मैं घूमता-फिरता आपकी आराध्य वस्तुओं को देख रहा था, तो मुझे एक वेदी मिली जिस पर यह लिखा था, ‘अज्ञात देवता को’। आप लोग अनजाने जिसकी पूजा करते हैं, मैं उसी का संदेश आपको सुनाता हूँ। “जिस परमेश्वर ने विश्व तथा उसमें जो कुछ है, वह सब बनाया है, और जो आकाश और पृथ्वी का प्रभु है, वह हाथ से बनाये हुए मन्दिरों में निवास नहीं करता। और न उसे किसी वस्तु का अभाव है कि वह मनुष्यों के हाथों से सेवा ग्रहण करे; क्योंकि वह तो स्वयं सब को जीवन, प्राण और सब वस्तुएं प्रदान करता है। उसने एक ही मूल से समस्त मनुष्यजाति को उत्पन्न किया है कि वह सारी पृथ्वी पर बस जाए। उसने मनुष्यों के नियत समयों और निवास के सीमा-क्षेत्रों को निर्धारित किया है कि वे परमेश्वर को ढूंढ़े और उसे खोजते हुए सम्भवत: उसे प्राप्त करें − यद्यपि वास्तव में वह हम में से किसी से भी दूर नहीं है। क्योंकि उसी में हम जीवित रहते, चलते-फिरते तथा अस्तित्व रखते हैं। आपके ही कुछ कवियों ने कहा, ‘हम भी ईश्वर की संतान हैं।’ यदि हम परमेश्वर की संतान हैं, तो हमें यह नहीं समझना चाहिए कि परमात्मा सोने, चाँदी या पत्थर की मूर्ति के सदृश है, जो मनुष्य की कला तथा कल्पना की उपज है। “परमेश्वर ने अज्ञानता के युगों को अनदेखा कर दिया; परन्तु अब उसकी आज्ञा यह है कि सर्वत्र सभी मनुष्य पश्चात्ताप करें, क्योंकि उसने वह दिन निश्चित किया है, जिस में वह एक पूर्व-निर्धारित व्यक्ति द्वारा समस्त संसार का न्यायपूर्वक विचार करेगा। परमेश्वर ने उस व्यक्ति को मृतकों में से पुनर्जीवित कर सब को अपने इस निश्चय का प्रमाण दिया है।” मृतकों के पुनरुत्थान की बात सुनते ही कुछ लोगों ने उपहास किया; परन्तु कुछ लोगों ने यह कहा, “इस विषय पर हम फिर कभी आपकी बात सुनेंगे।” अत: पौलुस उनके बीच से चले गये। फिर भी कुछ व्यक्ति उनके साथ हो लिये और विश्वासी बन गये, जैसे परिषद् का सदस्य दियोनिसियुस, दमरिस नामक महिला तथा अन्य कई व्यक्ति।
प्रेरितों 17:16-34 Hindi Holy Bible (HHBD)
जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। तब इपिकूरी और स्तोईकी पण्डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बकवादी क्या कहना चाहता है परन्तु औरों ने कहा; वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इन का अर्थ क्या है? (इसलिये कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहां रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा; हे अथेने के लोगों मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े मानने वाले हो। क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, कि अनजाने ईश्वर के लिये। सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूं। जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। उस ने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियां सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाईं हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानों को इसलिये बान्धा है। कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोल कर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं! क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि हम तो उसी के वंश भी हैं। सो परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं, कि ईश्वरत्व, सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। इसलिये परमेश्वर आज्ञानता के समयों में अनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है॥ मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो ठट्ठा करने लगे, और कितनों ने कहा, यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे। इस पर पौलुस उन के बीच में से निकल गया। परन्तु कई एक मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया, जिन में दियुनुसियुस अरियुपगी था, और दमरिस नाम एक स्त्री थी, और उन के साथ और भी कितने लोग थे॥
प्रेरितों 17:16-34 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
जब पौलुस एथेंस में उनकी बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। अत: वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से, और चौक में जो लोग उससे मिलते थे उनसे हर दिन वाद–विवाद किया करता था। तब इपिकूरी और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है”– क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, “क्या हम जान सकते हैं कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिये हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है।” (इसलिये कि सब एथेंसवासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे, नई–नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।) तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़े होकर कहा, “हे एथेंस के लोगो, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। क्योंकि मैं फिरते हुए जब तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, ‘अनजाने ईश्वर के लिये।’ इसलिये जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ। जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर, हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता; न किसी वस्तु की आवश्यकता के कारण मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह स्वयं ही सब को जीवन और श्वास और सब कुछ देता है। उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास की सीमाओं को इसलिये बाँधा है, कि वे परमेश्वर को ढूँढ़ें, कदाचित उसे टटोलकर पाएँ, तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं। क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते–फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसा तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी के वंशज हैं।’ अत: परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं कि ईश्वरत्व सोने या रूपे या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। इसलिये परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है, और उसे मरे हुओं में से जिलाकर यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कुछ तो ठट्ठा करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।” इस पर पौलुस उनके बीच में से निकल गया। परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया; जिनमें दियुनुसियुस जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नामक एक स्त्री थी, और उनके साथ और भी लोग थे।
प्रेरितों 17:16-34 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
जब पौलुस एथेंस में उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल उठा। अतः वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उनसे हर दिन वाद-विवाद किया करता था। तब इपिकूरी और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,” क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, “क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है?” (इसलिए कि सब एथेंस वासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई-नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।) तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा, “हे एथेंस के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, ‘अनजाने ईश्वर के लिये।’ इसलिए जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ। जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। (1 राजा. 8:27, 2 इति. 6:18, भज. 146:6) न किसी वस्तु की आवश्यकता के कारण मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और श्वास और सब कुछ देता है। (यशा. 42:5, भज. 50:12, भज. 50:12) उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास के सीमाओं को इसलिए बाँधा है, (व्यव. 32:8) कि वे परमेश्वर को ढूँढ़े, और शायद वे उसके पास पहुँच सके, और वास्तव में, वह हम में से किसी से दूर नहीं हैं। (यशा. 55:6, यिर्म. 23:23) क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी के वंश भी हैं।’ अतः परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं कि ईश्वरत्व, सोने या चाँदी या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। (उत्प. 1:27, यशा. 40:18-20, यशा. 44:10-17) इसलिए परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” (भज. 9:8, भज. 72:2-4, भज. 96:13, भज. 98:9, यशा. 2:4) मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो उपहास करने लगे, और कितनों ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।” इस पर पौलुस उनके बीच में से चला गया। परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया; जिनमें दियुनुसियुस जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नामक एक स्त्री थी, और उनके साथ और भी कितने लोग थे।
प्रेरितों 17:16-34 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
जब पौलॉस अथेनॉन नगर में सीलास और तिमोथियॉस की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह यह देखकर कि सारा नगर मूर्तियों से भरा हुआ है, आत्मा में बहुत दुःखी हो उठे. इसलिये वह यहूदी सभागृह में हर रोज़ यहूदियों, भक्त यूनानियों और नगर चौक में उपस्थित व्यक्तियों से वाद-विवाद करने लगे. कुछ ऍपीक्यूरी और स्तोइकवादी दार्शनिक भी उनसे बातचीत करते रहे. उनमें से कुछ आपस में कह रहे थे, “क्या कहना चाहता है यह खोखला बकवादी?” कुछ अन्यों ने कहा, “ऐसा लगता है वह कुछ नए देवताओं का प्रचारक है!” क्योंकि पौलॉस के प्रचार का विषय था मसीह येशु और पुनरुत्थान. इसलिये वे पौलॉस को एरियोपागुस नामक आराधनालय में ले गए. वहां उन्होंने पौलॉस से प्रश्न किया, “आपके द्वारा दी जा रही यह नई शिक्षा क्या है, क्या आप हमें समझाएंगे? क्योंकि आपके द्वारा बतायी गई बातें हमारे लिए अनोखी हैं. हम जानना चाहते हैं कि इनका मतलब क्या है.” सभी अथेनॉनवासियों और वहां आए परदेशियों की रीति थी कि वे अपना सारा समय किसी अन्य काम में नहीं परंतु नए-नए विषयों को सुनने या कहने में ही लगाया करते थे. एरियोपागुस आराधनालय में पौलॉस ने उनके मध्य जा खड़े होकर उन्हें संबोधित करते हुए कहा: “अथेनॉनवासियों! आपके विषय में मेरा मानना है कि आप हर ओर से बहुत ही धार्मिक हैं. क्योंकि जब मैंने टहलते हुए आपकी पूजा की चीज़ों पर गौर किया, मुझे एक वेदी ऐसी भी दिखाई दी जिस पर ये शब्द खुद हुए थे: अनजाने ईश्वर को. आप जिनकी आराधना अनजाने में करते हैं, मैं आपसे उन्हीं का वर्णन करूंगा. “वह परमेश्वर जिन्होंने विश्व और उसमें की सब वस्तुओं की सृष्टि की, जो स्वर्ग और पृथ्वी के स्वामी हैं, न तो वह मनुष्य के बनाए मंदिरों में वास करते हैं और न ही उन्हें ज़रूरत है किसी मनुष्य की सेवा की—वह किसी पर निर्भर नहीं हैं क्योंकि वही सबके जीवन, सांस तथा सभी आवश्यक वस्तुओं के देनेवाले हैं. वही हैं, जिन्होंने एक ही मूल पुरुष से सारे संसार पर बसा देने के लक्ष्य से हर एक जाति को बनाया तथा उनके ठहराए हुए समय तथा निवास सीमाओं का निर्धारण भी किया कि वे परमेश्वर की खोज करें और कहीं उन्हें खोजते-खोजते प्राप्त भी कर लें—यद्यपि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं हैं. क्योंकि उन्हीं में हमारा जीवन, हमारा चलना फिरना तथा हमारा अस्तित्व बना है—ठीक वैसा ही जैसा कि आप ही के अपने कुछ कवियों ने भी कहा है: ‘हम भी उनके वंशज हैं.’ “इसलिये परमेश्वर के वंशज होने के कारण हमारी यह धारणा अनुचित है कि ईश्वरत्व सोने-चांदी, पत्थर, कलाकार की कलाकृति तथा मनुष्य के विचार के समान है. अब तक तो परमेश्वर इस अज्ञानता की अनदेखी करते रहे हैं किंतु अब परमेश्वर हर जगह प्रत्येक व्यक्ति को पश्चाताप का बुलावा दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने एक दिन तय किया है जिसमें वह धार्मिकता में स्वयं अपने द्वारा ठहराए हुए उस व्यक्ति के माध्यम से संसार का न्याय करेंगे जिन्हें उन्होंने मरे हुओं में से दोबारा जीवित करने के द्वारा सभी मनुष्यों के सामने प्रमाणित कर दिया है.” जैसे ही उन लोगों ने मरे हुओं में से जी उठने का वर्णन सुना, उनमें से कुछ तो ठट्ठा करने लगे किंतु कुछ अन्यों ने कहा, “इस विषय में हम आपसे और अधिक सुनना चाहेंगे.” उस समय पौलॉस उनके मध्य से चले गए किंतु कुछ ने उनका अनुचरण करते हुए प्रभु में विश्वास किया. उनमें एरियोपागुस का सदस्य दियोनुसियॉस, दामारिस नामक एक महिला तथा कुछ अन्य व्यक्ति थे.