दानिएल 6:6-28
दानिएल 6:6-28 पवित्र बाइबल (HERV)
सो वे दोनों पर्यवेक्षक और वे प्रांत—अधिपति टोली बना कर राजा के पास गये। उन्होंने कहा, “हे राजा दारा, तुम अमर रहो! हम सभी पर्यवेक्षक, हाकिम, प्रांत—अधिपति, मंत्री और राज्यपाल किसी एक बात पर सहमत हैं। हमारा विचार है कि राजा को यह नियम बना देना चाहिये और हर व्यक्ति को इस नियम का पालन करना चाहिये। वह नियम यह हैं: यदि अगले तीस दिनों तक कोई भी व्यक्ति हे राजा, आपको छोड़ किसी और देवता या व्यक्ति की प्रार्थना करे तो उस व्यक्ति को शेरों की माँद में डाल दिया जाये। अब हे राजा! जिस कागज पर यह नियम लिखा है, तुम उस पर हस्ताक्षर कर दो। इस तरह से यह नियम कभी बदला नहीं जा सकेगा। क्योंकि मीदियों और फ़ारसियों के नियम न तो बदले जा सकते हैं और न ही मिटाए जा सकते हैं।” सो राजा दारा ने यह नियम बना कर उस पर हस्ताक्षर कर दिये। दानिय्येल तो सदा ही प्रतिदिन तीन बार परमेश्वर से प्रार्थना किया करता था। हर दिन तीन बार दानिय्येल अपने घुटनों के बल झुक कर अपने परमेश्वर की प्रार्थना करता और उसका गुणगान करता था। दानिय्येल ने जब इस नये नियम के बारे में सुना तो वह अपने घर चला गया। दानिय्येल अपने मकान की छत के ऊपर, अपने कमरे में चला गया। दानिय्येल उन खिड़कियों के पास गया जो यरूशलम की ओर खुलती थीं। फिर वह अपने घटनों के बल झुका जैसे सदा किया करता था, उसने वैसे ही प्रार्थना की। फिर वे लोग झुण्ड बना कर दानिय्येल के यहाँ जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने दानिय्येल को प्रार्थना करते और परमेश्वर से दया माँगते पाया। बस फिर क्या था। वे लोग राजा के पास जा पहुँचे और उन्होंने राजा से उस नियम के बारे में बात की जो उसने बनाया था। उन्होंने कहा, “हे राजा दारा, आपने एक नियम बनाया है। जिसके अनुसार अगले तीस दिनों तक यदि कोई व्यक्ति किसी देवता से अथवा तेरे अतिरिक्त किसी व्यक्ति से प्रार्थना करता है तो, राजन, उसे शेरों की माँद में फेंकवा दिया जायेगा। बताइये क्या आपने इस नियम पर हस्ताक्षर नहीं किये थे” राजा ने उत्तर दिया, “हाँ, मैंने उस नियम पर हस्ताक्षर किये थे और मादियों और फारसियों के नियम अटल होते हैं। न तो वे बदले जा सकते हैं, और न ही मिटाये जा सकते हैं।” इस पर उन लोगों ने राजा से कहा, “दानिय्येल नाम का वह व्यक्ति आपकी बात पर ध्यान नहीं दे रहा है। दानिय्येल यहूदा के बन्दियों में से एक हैं। जिस नियम पर आपने हस्ताक्षर किये हैं, दानिय्येल उस पर ध्यान नहीं दे रहा है। दानिय्येल अभी भी हर दिन तीन बार अपने परमेश्वर की प्रार्थना करता है।” राजा ने जब सुना तो बहुत दु:खी और व्याकुल हो उठा। राजा ने दानिय्येल को बचाने की ठान ली। दानिय्येल को बचाने की कोई उपाय सोचते सोचते उसे शाम हो गयी। इसके बाद वे लोग झुण्ड बना कर राजा के पास पहुँचे। उन्होंने राजा से कहा, “हे राजन, मादियों और फ़ारसियों की व्यवस्था के अनुसार जिस नियम अथवा आदेश पर राजा हस्ताक्षर कर दे, वह न तो कभी बदला जा सकता है और न ही कभी मिटाया जा सकता है।” सो राजा दारा ने आदेश दे दिया। वे लोग दानिय्येल को पकड़ लाये और उसे शेरों की मांद में फेंक दिया। राजा ने दानिय्येल से कहा, “मुझे आशा है कि तू जिस परमेश्वर की सदा उपासना करता है, वह तेरी रक्षा करेगा।” एक बड़ा सा पत्थर लाया गया और उसे शेरों की मांद के द्वार पर अड़ा दिया गया। फिर राजा ने अपनी अंगूठी ली और उस पत्थर पर अपनी मुहर लगा दी। साथ ही उसने अपने हाकिमों की अंगूठियों की मुहरें भी उस पत्थर पर लगा दीं। इसका यह अभिप्राय था कि उस पत्थर को कोई भी हटा नहीं सकता था और शेरों की उस माँद से दानिय्येल को बाहर नहीं ला सकता था। इसके बाद राजा दारा अपने महल को वापस चला गया। उस रात उसने खाना नहीं खाया। वह नहीं चाहता था कि कोई उसके पास आये और उसका मन बहलाये। राजा सारी रात सो नहीं पाया। अगली सुबह जैसे ही सूरज का प्रकाश फैलने लगा, राजा दारा जाग गया और शेरों की माँद की ओर दौड़ा। राजा बहुत चिंतित था। राजा जब शेरों की मांद के पास गया तो वहाँ उसने दानिय्येवल को ज़ोर से आवाज़ लगाई। राजा ने कहा, “हे दानिय्येल, हे जीवित परमेश्वर के सेवक, क्या तेरा परमेश्वर तुझे शेरों से बचा पाने में समर्थ हो सका है तू तो सदा ही अपने परमेश्वर की सेवा करता रहा है।” दानिय्येल ने उत्तर दिया, “राजा, अमर रहे! मेरे परमेश्वर ने मुझे बचाने के लिये अपना स्वर्गदुत भेजा था। उस स्वर्गदूत ने शेरों के मुँह बन्द कर दिये। शेरों ने मुझे कोई हानि नही पहुँचाई क्योंकि मेरा परमेश्वर जानता है कि मैं निरपराध हूँ। मैंने राजा के प्रति कभी कोई बुरा नही किया है।” राजा दारा बहुत प्रसन्न था। राजा ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे दानिय्येल को शेरों की माँद से बाहर खींच लें। जब दानिय्येल को शेरों की माँद से बाहर लाया गया तो उन्हें उस पर कहीं कोई घाव नहीं दिखाई दिया। शेरों ने दानिय्येल को कोई हानि नहीं पहुँचाई थी क्योंकि दानिय्येल को अपने परमेश्वर पर विश्वास था। इसके बाद राजा ने उन लोगों को जिन्होंने दानिय्येल पर अभियोग लगा कर उसे शेरों की माँद में डलवाया था, बुलवाने का आदेश दिया और उन लोगों को, उनकी पत्नियों को और उनके बच्चों को शेरों की माँद में फेंकवा दिया गया। इससे पहले कि वे शेरों की मांद में धरती पर गिरते, शेरों ने उन्हें दबोच लिया। शेर उनके शरीरों को खा गये और फिर उनकी हड्डियों को भी चबा गये। इस पर राजा दारा ने सारी धरती के लोगों, दूसरी जाति के विभिन्न भाषा बोलनेवालों को यह पत्र लिखा: शुभकामनाएँ। मैं एक नया नियम बना रहा हूँ। मेरे राज्य के हर भाग के लोगों के लिये यह नियम होगा। तुम सभी लोगों को दानिय्येल के परमेश्वर का भय मानना चाहिये और उसका आदर करना चाहिये। दानिय्येल का परमेश्वर जीवित परमेश्वर है। परमेश्वर सदा—सदा अमर रहता है! साम्राज्य उसका कभी समाप्त नहीं होगा उसके शासन का अन्त कभी नहीं होगा परमेश्वर लोगों को बचाता है और रक्षा करता है। स्वर्ग में और धरती के ऊपर परमेश्वर अद्भुत आश्चर्यपूर्ण कर्म करता है! परमेश्वर ने दानिय्येल को शेरों से बचा लिया। इस तरह जब दारा का राजा था और जिन दिनों फारसी राजा कुस्रू की हूकुमत थी, दानिय्येल ने सफलता प्राप्त की।
दानिएल 6:6-28 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
अत: ये अध्यक्ष और क्षत्रप एक मत होकर सम्राट दारा के पास आए और उन्होंने उससे यह कहा, ‘महाराज दारा, आप लाखों वर्ष जीएं! आपके राज्य के अध्यक्षों, हाकिमों, क्षत्रपों, मन्त्रियों और राज्यपालों ने एक मत से यह निर्णय लिया है कि महाराज को यह परामर्श दें कि आप यह आदेश और निषेधाज्ञा प्रसारित करें कि जो व्यक्ति तीस दिन की अवधि के दौरान आपके अतिरिक्त किसी देवता अथवा मनुष्य से विनती करेगा तो वह सिंहों की मांद में डाला जाएगा। अब, महाराज, इस निषेधाज्ञा को पक्का कर दीजिए और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर दीजिए, जिससे, मादी और फारसी संविधान के अनुसार उसमें न परिवर्तन हो सकता है और न उसको रद्द ही किया जा सकता है।’ अत: सम्राट दारा ने उस पत्र पर हस्ताक्षर कर निषेधाज्ञा जारी कर दी। जब दानिएल को यह मालूम हुआ कि निषेधाज्ञा के पत्र पर सम्राट दारा का हस्ताक्षर हो गया, तब वह अपने घर गए। उनके घर की ऊपरी मंजिल के कमरे की खिड़कियां यरूशलेम नगर की दिशा में खुलती थीं। वह दिन में तीन बार घुटने टेककर परमेश्वर से प्रार्थना करते और उसको धन्यवाद दिया करते थे। आज भी उन्होंने वैसा ही किया। उसी समय अध्यक्ष और क्षत्रप आए जो एक मत हो गए थे। उन्होंने दानिएल को अपने परमेश्वर से निवेदन करते और विनती करते हुए पाया। अत: वे सम्राट दारा के पास आए, और उन्होंने निषेधाज्ञा के सम्बन्ध में उसके सामने कहा, ‘महाराज, क्या आपने निषेधाज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया था कि जो व्यक्ति तीस दिन की अवधि के दौरान आपके अतिरिक्त किसी देवता अथवा मनुष्य से विनती करेगा, तो वह सिंहों की मांद में डाला जाएगा?’ सम्राट ने उत्तर दिया, ‘मादी और फारसी संविधान के अनुसार यह निषेधाज्ञा पक्की है, और उसमें न परिवर्तन हो सकता है, और न उसको रद्द किया जा सकता है।’ अध्यक्षों और क्षत्रपों ने सम्राट दारा के सम्मुख कहा, “महाराज, वह दानिएल, जो यहूदा प्रदेश के निष्कासितों में से एक हैं, आपकी उपेक्षा करते हैं। जिस निषेधाज्ञा-पत्र पर आपने हस्ताक्षर किया है, वह उस पर ध्यान नहीं देते। महाराज, वह अपने परमेश्वर से दिन में तीन बार विनती करते हैं।’ ये बातें सुनकर सम्राट दारा को बड़ा दु:ख हुआ। वह दानिएल को बचाने के लिए उपाय सोचने लगा। वह सबेरे से शाम तक दानिएल की रक्षा के लिए मन ही मन प्रयत्न करता रहा। तब अध्यक्ष और क्षत्रप जो एक मत हो गए थे सम्राट दारा के पास फिर आए। उन्होंने सम्राट से कहा, ‘महाराज, स्मरण रखिए: मादी और फारसी संविधान का यह कानून है: राजा द्वारा ठहराए गए अध्यादेश अथवा निषेधाज्ञा में न परिवर्तन हो सकता है और न उसको रद्द किया जा सकता है।’ अत: सम्राट दारा ने दानिएल को बन्दी बनाने का आदेश दे दिया। दानिएल को पकड़कर लाया गया, और उनको सिंहों की मांद में डाल दिया गया। सम्राट ने दानिएल से कहा, ‘ओ दानिएल, जिस परमेश्वर की तुम निरन्तर सेवा करते हो, वह तुम्हारी रक्षा करे!’ तब सम्राट के कर्मचारी एक बड़ा पत्थर लाए। उन्होंने उसको मांद के मुंह पर रख दिया। इसके बाद सम्राट दारा ने अपनी अंगूठी तथा सामंतों की अंगूठियों से मांद के मुंह पर मोहर लगा दी कि दानिएल की दशा को बदला न जा सके। तत्पश्चात् सम्राट दारा अपने महल में चला गया। उसने उस रात भोजन नहीं किया। उसने अपने मनोरंजन करनेवालों को मना कर दिया; अत: उस रात में उसके पास कोई नहीं आया। उसकी आंखों से नींद उड़ गई। सबेरे, सूरज निकलते ही सम्राट दारा पलंग से उठा और अविलम्ब सिंहों की मांद की ओर गया। वह मांद के पास पहुँचा, जहां दानिएल बन्द थे। उसने दु:ख भरी आवाज में दानिएल को पुकारा, ‘ओ दानिएल, जीवित परमेश्वर के सेवक! क्या तुम्हारे परमेश्वर ने जिसकी तुम निरन्तर सेवा करते हो, तुम्हें सिंहों के मुंह से बचा लिया?’ दानिएल ने सम्राट से कहा, ‘महाराज, आप लाखों वर्ष जीएं! मेरे परमेश्वर ने अपना एक दूत भेजा, जिसने सिंहों का मुंह बन्द कर दिया; क्योंकि मैं परमेश्वर की दृष्टि में निर्दोष था, इसलिए सिंहों ने मेरा अनिष्ट नहीं किया। महाराज, इसी प्रकार मैं आपके सम्मुख भी निरापराध हूँ; क्योंकि मैंने कोई गलती नहीं की है।’ यह सुनकर सम्राट दारा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने दानिएल को मांद से बाहर निकालने का आदेश दिया। सम्राट के कर्मचारियों ने दानिएल को मांद से बाहर निकाला। दानिएल के शरीर पर खरोंच भी नहीं लगी थी; क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर भरोसा करते थे। तब सम्राट दारा के आदेश से वे लोग लाए गए जिन्होंने दानिएल पर दोष लगाया था। वे अपनी पत्नियों और बाल-बच्चों के साथ सिंहों की मांद में फेंक दिए गए। वे मांद के तल पर अभी पहुँचे भी न थे कि सिंहों ने ऊपर उछल कर उनको अपने-अपने मुंह में पकड़ लिया, और उनकी हड्डियों सहित उनको चबा डाला। सम्राट दारा ने अपने साम्राज्य के अन्तर्गत पृथ्वी की सब कौमों, राष्ट्रों और भाषाओं के लोगों को यह परिपत्र लिखा : ‘तुम्हारी सुख-समृद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े! मैं यह राजाज्ञा प्रसारित कर रहा हूं कि मेरे साम्राज्य के समस्त स्त्री-पुरुष दानिएल के परमेश्वर के सम्मुख कांपते और डरते रहेंगे, क्योंकि केवल वही जीवित परमेश्वर है; वह युगानुयुग विद्यमान है। उसका राज्य कभी नष्ट न होगा, उसके शासन का कभी अन्त न होगा। वह संकट से मुक्त करता, और प्राणों की रक्षा करता है; वह आकाश में अद्भुत चिह्न दिखाता, और पृथ्वी पर आश्चर्य कर्म करता है। उसी ने सिंहों के मुंह से दानिएल को बचाया।’ इस प्रकार दानिएल सम्राट दारा और फारसी सम्राट कुस्रू के राज्यकाल में सुख-चैन से जीवन व्यतीत करते रहे।
दानिएल 6:6-28 Hindi Holy Bible (HHBD)
तब वे अध्यक्ष और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उस से कहा, हे राजा दारा, तू युगयुग जीवित रहे। राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और गवर्नरों ने भी आपास में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य वा देवता से बिनती करे, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाए। इसलिये अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिस से यह बात मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार अदल-बदल न हो सके। तब दारा राजा ने उस आज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया॥ जब दानिय्येल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताक्षर किया गया है, तब वह अपने घर में गया जिसकी उपरौठी कोठरी की खिड़कियां यरूशलेम के सामने खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के साम्हने घुटने टेक कर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा। तब उन पुरूषों ने उतावली से आकर दानिय्येल को अपने परमेश्वर के सामने बिनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया। सो वे राजा के पास जा कर, उसकी राजआज्ञा के विषय में उस से कहने लगे, हे राजा, क्या तू ने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़ किसी मनुष्य वा देवता से बिनती करेगा, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाएगा? राजा ने उत्तर दिया, हां, मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार यह बात स्थिर है। तब उन्होंने राजा से कहा, यहूदी बंधुओं में से जो दानिय्येल है, उसने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताक्षर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार बिनती किया करता है॥ यह वचन सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्येल के बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसके बचाने का यत्न करता रहा। तब वे पुरूष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, हे राजा, यह जान रख, कि मादियों और फारसियों में यह व्यवस्था है कि जो जो मनाही वा आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती॥ तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्येल लाकर सिंहों की मान्द में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्येल से कहा, तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए! तब एक पत्थर लाकर उस गड़हे के मुंह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी से, और अपने प्रधानों की अंगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने ने पाए। तब राजा अपने महल में चला गया, और उस रात को बिना भोजन पड़ा रहा; और उसके पास सुख विलास की कोई वस्तु नहीं पहुंचाई गई, और उसे नींद भी नहीं आई॥ भोर को पौ फटते ही राजा उठा, और सिंहों के गड़हे की ओर फुर्ती से चला गया। जब राजा गड़हे के निकट आया, तब शोक भरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्येल से कहा, हे दानिय्येल, हे जीवते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है? तब दानिय्येल ने राजा से कहा, हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे! मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुंह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके साम्हने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैं ने कोई भूल नहीं की। तब राजा ने बहुत आनन्दित हो कर, दानिय्येल को गड़हे में से निकालने की आज्ञा दी। सो दानिय्येल गड़हे में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिन्ह न पाया गया, क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था। और राजा ने आज्ञा दी कि जिन पुरूषों ने दानिय्येल की चुगली खाई थी, वे अपने अपने लड़के-बालों और स्त्रियों समेत लाकर सिंहों के गड़हे में डाल दिए जाएं; और वे गड़हे की पेंदी तक भी न पहुंचे कि सिंहों ने उन पर झपट कर सब हड्डियों समेत उन को चबा डाला॥ तब दारा राजा ने सारी पृथ्वी के रहने वाले देश-देश और जाति-जाति के सब लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वालों के पास यह लिखा, तुम्हारा बहुत कुशल हो। मैं यह आज्ञा देता हूं कि जहां जहां मेरे राज्य का अधिकार है, वहां के लोग दानिय्येल के परमेश्वर के सम्मुख कांपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीवता और युगानयुग तक रहने वाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी। जिसने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ाने वाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिन्हों और चमत्कारों का प्रगट करने वाला है। और दानिय्येल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनों के राज्य के दिनों में भाग्यवान् रहा॥
दानिएल 6:6-28 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
तब वे अध्यक्ष और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उससे कहा, “हे राजा दारा, तू युगयुग जीवित रहे। राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और गवर्नरों ने भी आपस में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य या देवता से विनती करे, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाए। इसलिये अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिससे यह बात, मादियों और फ़ारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार, बदली न जा सके।” तब दारा राजा ने उस आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। जब दानिय्येल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताक्षर किया गया है, तब वह अपने घर में गया जिसकी उपरौठी कोठरी की खिड़कियाँ यरूशलेम की ओर खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा। तब उन पुरुषों ने उतावली से आकर दानिय्येल को अपने परमेश्वर के सामने विनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया। अत: वे राजा के पास जाकर, उसकी राजआज्ञा के विषय में उससे कहने लगे, “हे राजा, क्या तू ने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़, किसी मनुष्य या देवता से विनती करेगा, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाएगा?” राजा ने उत्तर दिया, “हाँ, मादियों और फ़ारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार यह बात स्थिर है।” तब उन्होंने राजा से कहा, “यहूदी बन्दियों में से जो दानिय्येल है, उस ने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताक्षर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार विनती किया करता है।” यह बात सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्येल को बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसे बचाने का यत्न करता रहा। तब वे पुरुष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, “हे राजा, यह जान रख कि मादियों और फ़ारसियों में यह व्यवस्था है कि जो जो निषेधाज्ञा या आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती।” तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्येल को लाकर सिंहों की माँद में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्येल से कहा, “तेरा परमेश्वर, जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए!” तब एक पत्थर लाकर उस गड़हे के मुँह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अँगूठी से, और अपने प्रधानों की अँगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने न पाए। तब राजा अपने महल में चला गया, और उस रात को बिना भोजन पड़ा रहा; और उसके पास सुख विलास की कोई वस्तु नहीं पहुँचाई गई, और उसे नींद भी नहीं आई। भोर को पौ फटते ही राजा उठा और सिंहों के गड़हे की ओर फुर्ती से चला गया। जब राजा गड़हे के निकट आया, तब शोकभरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्येल से कहा, “हे दानिय्येल, हे जीवते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है?” तब दानिय्येल ने राजा से कहा, “हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे! मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुँह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके सामने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैं ने कोई भूल नहीं की।” तब राजा ने बहुत आनन्दित होकर, दानिय्येल को गड़हे में से निकालने की आज्ञा दी। अत: दानिय्येल गड़हे में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिह्न न पाया गया, क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था। तब राजा ने आज्ञा दी कि जिन पुरुषों ने दानिय्येल की चुगली खाई थी, वे अपने अपने बाल–बच्चों और स्त्रियों समेत लाकर सिंहों के गड़हे में डाल दिए जाएँ; और वे गड़हे की पेंदी तक भी न पहुँचे कि सिंहों ने उन पर झपटकर सब हड्डियों समेत उनको चबा डाला। तब दारा राजा ने सारी पृथ्वी के रहनेवाले देश–देश और जाति–जाति के सब लोगों, और भिन्न–भिन्न भाषा बोलनेवालों के पास यह लिखा : “तुम्हारा बहुत कुशल हो! मैं यह आज्ञा देता हूँ कि जहाँ जहाँ मेरे राज्य का अधिकार है, वहाँ के लोग दानिय्येल के परमेश्वर के सम्मुख काँपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीवता और युगानयुग तक रहनेवाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी। जिसने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ानेवाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिह्नों और चमत्कारों का प्रगट करनेवाला है।” इस प्रकार दानिय्येल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनों के राज्य के दिनों में सुख–चैन से रहा।
दानिएल 6:6-28 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
तब वे अध्यक्ष और अधिपति राजा के पास उतावली से आए, और उससे कहा, “हे राजा दारा, तू युग-युग जीवित रहे। राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और राज्यपालों ने आपस में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य या देवता से विनती करे, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाए। इसलिए अब हे राजा, ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिससे यह बात मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार अदल-बदल न हो सके।” तब दारा राजा ने उस आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। जब दानिय्येल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताक्षर किया गया है, तब वह अपने घर में गया जिसकी ऊपरी कोठरी की खिड़कियाँ यरूशलेम की ओर खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा। तब उन पुरुषों ने उतावली से आकर दानिय्येल को अपने परमेश्वर के सामने विनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया। तब वे राजा के पास जाकर, उसकी राजआज्ञा के विषय में उससे कहने लगे, “हे राजा, क्या तूने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़ किसी मनुष्य या देवता से विनती करेगा, वह सिंहों की माँद में डाल दिया जाएगा?” राजा ने उत्तर दिया, “हाँ, मादियों और फारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार यह बात स्थिर है।” तब उन्होंने राजा से कहा, “यहूदी बंधुओं में से जो दानिय्येल है, उसने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताक्षर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार विनती किया करता है।” यह वचन सुनकर, राजा बहुत उदास हुआ, और दानिय्येल को बचाने के उपाय सोचने लगा; और सूर्य के अस्त होने तक उसके बचाने का यत्न करता रहा। तब वे पुरुष राजा के पास उतावली से आकर कहने लगे, “हे राजा, यह जान रख, कि मादियों और फारसियों में यह व्यवस्था है कि जो-जो मनाही या आज्ञा राजा ठहराए, वह नहीं बदल सकती।” तब राजा ने आज्ञा दी, और दानिय्येल लाकर सिंहों की माँद में डाल दिया गया। उस समय राजा ने दानिय्येल से कहा, “तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए!” तब एक पत्थर लाकर उस माँद के मुँह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी से, और अपने प्रधानों की अँगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने न पाए। तब राजा अपने महल में चला गया, और उस रात को बिना भोजन पड़ा रहा; और उसके पास सुख-विलास की कोई वस्तु नहीं पहुँचाई गई, और उसे नींद भी नहीं आई। भोर को पौ फटते ही राजा उठा, और सिंहों के माँद की ओर फुर्ती से चला गया। जब राजा माँद के निकट आया, तब शोकभरी वाणी से चिल्लाने लगा और दानिय्येल से कहा, “हे दानिय्येल, हे जीविते परमेश्वर के दास, क्या तेरा परमेश्वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है?” तब दानिय्येल ने राजा से कहा, “हे राजा, तू युग-युग जीवित रहे! मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुँह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है, कि मैं उसके सामने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैंने कोई भूल नहीं की।” (यशा. 63:9, भज. 34:7) तब राजा ने बहुत आनन्दित होकर, दानिय्येल को माँद में से निकालने की आज्ञा दी। अतः दानिय्येल माँद में से निकाला गया, और उस पर हानि का कोई चिन्ह न पाया गया, क्योंकि वह अपने परमेश्वर पर विश्वास रखता था। तब राजा ने आज्ञा दी कि जिन पुरुषों ने दानिय्येल की चुगली की थी, वे अपने-अपने बाल-बच्चों और स्त्रियों समेत लाकर सिंहों की माँद में डाल दिए जाएँ; और वे माँद की पेंदी तक भी न पहुँचे कि सिंहों ने उन पर झपटकर सब हड्डियों समेत उनको चबा डाला। तब दारा राजा ने सारी पृथ्वी के रहनेवाले देश-देश और जाति-जाति के सब लोगों, और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालों के पास यह लिखा, “तुम्हारा बहुत कुशल हो! मैं यह आज्ञा देता हूँ कि जहाँ-जहाँ मेरे राज्य का अधिकार है, वहाँ के लोग दानिय्येल के परमेश्वर के सम्मुख काँपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीविता और युगानुयुग तक रहनेवाला परमेश्वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी। (दानि. 7:27, भज. 99:1-3) जिसने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ानेवाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिन्हों और चमत्कारों का प्रगट करनेवाला है।” और दानिय्येल, दारा और कुस्रू फारसी, दोनों के राज्य के दिनों में सुख-चैन से रहा।
दानिएल 6:6-28 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
इसलिये ये प्रशासक और प्रधान एक दल के रूप में राजा के पास गये और उन्होंने कहा: “राजा दारयावेश, चिरंजीवी हों! राज्य के सब शाही प्रशासक, मुखिया, प्रधान, सलाहकार, और राज्यपाल इस बात पर सहमत हुए कि राजा एक राजाज्ञा निकाले और उस आज्ञा को पालन करने के लिये कहें कि अगले तीस दिनों तक कोई भी व्यक्ति महाराजा को छोड़ किसी और देवता या मानव प्राणी से प्रार्थना करे, तो वह सिंहों की मांद में डाल दिया जाए. हे महाराज, अब आप ऐसी आज्ञा दें और इसे लिखित में दे दें ताकि यह बदली न जा सके—मेदियों और फ़ारसियों के कानून के अनुसार जिसे रद्द नहीं किया जा सकता.” तब राजा दारयावेश ने उस आज्ञा को लिखित में कर दिया. जब दानिएल को मालूम हुआ कि ऐसी आज्ञा निकाली गई है, तो वह अपने घर जाकर ऊपर के कमरे में गया, जहां खिड़कियां येरूशलेम की ओर खुली रहती थी. दिन में तीन बार घुटना टेककर उसने अपने परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए प्रार्थना किया, जैसे कि वह पहले भी करता था. तब वे व्यक्ति एक दल के रूप में वहां गये और उन्होंने दानिएल को परमेश्वर से प्रार्थना करते और मदद मांगते हुए पाया. अतः वे राजा के पास गये और उसे उसके राजाज्ञा के बारे में कहने लगे: “क्या आपने ऐसी आज्ञा नहीं निकाली है कि अगले तीस दिनों तक कोई भी व्यक्ति महाराजा को छोड़ किसी और देवता या मानव प्राणी से प्रार्थना करे, तो उसे सिंहों की मांद में डाल दिया जाएगा?” राजा ने उत्तर दिया, “यह आज्ञा तो है—जिसे मेदियों एवं फ़ारसियों के कानून के अनुसार रद्द नहीं किया जा सकता.” तब उन्होंने राजा से कहा, “दानिएल, जो यहूदाह से लाये गए बंधुआ लोगों में से एक है, हे महाराज, वह आपकी या आपके द्वारा निकाले गये लिखित आज्ञा की परवाह नहीं करता है. वह अभी भी दिन में तीन बार प्रार्थना करता है.” यह बात सुनकर राजा बहुत उदास हुआ; उसने दानिएल को बचाने का संकल्प कर लिया था और सूर्यास्त होने तक वह दानिएल को बचाने की हर कोशिश करता रहा. तब लोग एक दल के रूप में राजा दारयावेश के पास गये और उन्होंने उनसे कहा, “हे महाराज, आप यह बात याद रखें कि मेदिया और फ़ारसी कानून के अनुसार राजा के द्वारा दिया गया कोई भी फैसला या राजाज्ञा बदली नहीं जा सकती.” तब राजा ने आज्ञा दी, और वे दानिएल को लाकर उसे सिंहों की मांद में डाल दिये. राजा ने दानिएल से कहा, “तुम्हारा परमेश्वर, जिसकी सेवा तुम निष्ठापूर्वक करते हो, वही तुझे बचाएं!” एक पत्थर लाकर मांद के मुहाने पर रख दिया गया, और राजा ने अपने स्वयं की मुहरवाली अंगूठी और अपने प्रभावशाली लोगों की अंगूठियों से उस पर मुहर लगा दी, ताकि दानिएल की स्थिति में किसी भी प्रकार का बदलाव न किया जा सके. तब राजा अपने महल में लौट आया गया और उसने पूरी रात बिना कुछ खाएं और बिना किसी मनोरंजन के बिताया. और वह सो न सका. बड़े सुबह, राजा उठा और जल्दी से सिंहों की मांद पर गया. जब वह मांद के पास पहुंचा, तो उसने एक पीड़ा भरी आवाज में दानिएल को पुकारा, “हे दानिएल, जीवित परमेश्वर के सेवक, क्या तुम्हारे उस परमेश्वर ने तुम्हें सिंहों से बचाकर रखा है, जिसकी तुम निष्ठापूर्वक सेवा करते हो?” तब दानिएल ने उत्तर दिया, “हे राजा, आप चिरंजीवी हों! मेरे परमेश्वर ने अपना स्वर्गदूत भेजकर सिंहों के मुंह को बंद कर दिया. उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की, क्योंकि मैं उसकी दृष्टि में निर्दोष पाया गया. और हे महाराज, आपके सामने भी मैंने कोई अपराध नहीं किया है.” तब राजा अति आनंदित हुआ और उसने आज्ञा दी कि दानिएल को मांद से बाहर निकाला जाए. और जब दानिएल को मांद से ऊपर खींचकर बाहर निकाला गया, तो उसमें किसी भी प्रकार का चोट का निशान नहीं पाया गया, क्योंकि उसने अपने परमेश्वर पर भरोसा रखा था. वे व्यक्ति, जिन्होंने दानिएल पर झूठा दोष लगाया था, वे राजा की आज्ञा पर लाये गए, और उन्हें उनकी पत्नियों और बच्चों समेत सिंहों के मांद में डाल दिया गया. और इसके पहले कि ये मांद के तल तक पहुंचें, सिंहों ने झपटकर उन्हें पकड़ लिया और हड्डियों समेत उनको चबा डाला. तब राजा दारयावेश ने सारी पृथ्वी में सब जाति और हर भाषा के लोगों को यह लिखा: “आप सब बहुत उन्नति करें! “मैं यह आज्ञा देता हूं कि मेरे राज्य में हर जगह के लोग दानिएल के परमेश्वर का भय माने और उनका आदर करें. “क्योंकि वही जीवित परमेश्वर हैं और वह सदाकाल तक बने रहते हैं; उनका राज्य कभी नाश नहीं होगा, और उनका प्रभुत्व कभी समाप्त नहीं होगा. वह छुड़ाते हैं और वह बचाते हैं; वह स्वर्ग और पृथ्वी पर चिन्ह और चमत्कार दिखाते हैं. उन्होंने दानिएल को सिंहों की शक्ति से बचाया है.” इस प्रकार दानिएल, दारयावेश और फारस देश के कोरेश के शासनकाल में उन्नति करते गए.