अय्यूब 15:1-21
अय्यूब 15:1-21 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
तब तेमानी एलीपज ने कहा, “क्या बुद्धिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, या अपने अन्त:करण को पूरबी पवन से भरे? क्या वह निष्फल वचनों से, या व्यर्थ बातों से वाद–विवाद करे? वरन् तू परमेश्वर का भय मानना छोड़ देता, और परमेश्वर पर ध्यान लगाना औरों से छुड़ाता है। तू अपने मुँह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है। मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुँह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरुद्ध साक्षी देते हैं। “क्या पहला मनुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहले हुई? क्या तू परमेश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुद्धि का ठेका तू ही ने ले रखा है? तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं? हम लोगों में तो पक्के बालवाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं। परमेश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या वे तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं? तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है, और तू आँख से क्यों सैन करता है? तू भी अपनी आत्मा परमेश्वर के विरुद्ध करता है, और अपने मुँह से व्यर्थ बातें निकलने देता है। मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? या जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके? देख, वह अपने पवित्रजनों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है। फिर मनुष्य अधिक घिनौना और भ्रष्ट है, जो कुटिलता को पानी के समान पीता है। “मैं तुझे समझा दूँगा, इसलिये मेरी सुन ले, जो मैं ने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ। (वे ही बातें जो बुद्धिमानों ने अपने पुरखाओं से सुनकर बिना छिपाए बताई हैं, केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता जाता नहीं था)। दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और बलात्कारी के वर्षों की गिनती ठहराई हुई है। उसके कान में डरावना शब्द गूँजता रहता है, कुशल के समय भी नाश करनेवाला उस पर आ पड़ता है।
अय्यूब 15:1-21 पवित्र बाइबल (HERV)
इस पर तेमान नगर के निवासी एलीपज ने अय्यूब को उत्तर देते हुए कहा: “अय्यूब, य़दि तू सचमुच बुद्धिमान होता तो रोते शब्दों से तू उत्तर न देता। क्या तू सोचता है कि कोई विवेकी पुरुष पूर्व की लू की तरह उत्तर देता है? क्या तू सोचता है कि कोई बुद्धिमान पुरुष व्यर्थ के शब्दों से और उन भाषणों से तर्क करेगा जिनका कोई लाभ नहीं? अय्यूब, यदि तू मनमानी करता है तो कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की न तो आदर करेगा, न ही उससे प्रार्थना करेगा। तू जिन बातों को कहता है वह तेरा पाप साफ साफ दिखाती हैं। अय्यूब, तू चतुराई भरे शब्दों का प्रयोग करके अपने पाप को छिपाने का प्रयत्न कर रहा है। तू उचित नहीं यह प्रमाणित करने की मुझे आवश्यकता नहीं है। क्योंकि तू स्वयं अपने मुख से जो बातें कहता है, वह दिखाती हैं कि तू बुरा है और तेरे ओंठ स्वयं तेरे विरुद्ध बोलते हैं। “अय्यूब, क्या तू सोचता है कि जन्म लेने वाला पहला व्यक्ति तू ही है? और पहाड़ों की रचना से भी पहले तेरा जन्म हुआ। क्या तूने परमेश्वर की रहस्यपूर्ण योजनाऐं सुनी थी क्या तू सोचा करता है कि एक मात्र तू ही बुद्धिमान है? अय्यूब, तू हम से अधिक कुछ नहीं जानता है। वे सभी बातें हम समझते हैं, जिनकी तुझको समझ है। वे लोग जिनके बाल सफेद हैं और वृद्ध पुरुष हैं वे हमसे सहमत रहते हैं। हाँ, तेरे पिता से भी वृद्ध लोग हमारे पक्ष में हैं। परमेश्वर तुझको सुख देने का प्रयत्न करता है, किन्तु यह तेरे लिये पर्याप्त नहीं है। परमेश्वर का सुसन्देश बड़ी नम्रता के साथ हमने तुझे सुनाया। अय्यूब, क्यों तेरा हृदय तुझे खींच ले जाता है? तू क्रोध में क्यों हम पर आँखें तरेरता है? जब तू इन क्रोध भरे वचनों को कहता है, तो तू परमेश्वर के विरुद्ध होता है। “सचमुच कोई मनुष्य पवित्र नहीं हो सकता। मनुष्य स्त्री से पैदा हुआ है, और धरती पर रहता है, अत: वह उचित नहीं हो सकता। यहाँ तक कि परमेश्वर अपने दूतों तक का विश्वास नहीं करता है। यहाँ तक कि स्वर्ग जहाँ स्वर्गदूत रहते हैं पवित्र नहीं है। मनुष्य तो और अधिक पापी है। वह मनुष्य मलिन और घिनौना है वह बुराई को जल की तरह गटकता है। “अय्यूब, मेरी बात तू सुन और मैं उसकी व्याख्या तुझसे करूँगा। मैं तुझे बताऊँगा, जो मैं जानता हूँ। मैं तुझको वे बातें बताऊँगा, जिन्हें विवेकी पुरुषों ने मुझ को बताया है और विवेकी पुरुषों को उनके पूर्वजों ने बताई थी। उन विवेकी पुरुषों ने कुछ भी मुझसे नहीं छिपाया। केवल उनके पूर्वजों को ही देश दिया गया था। उनके देश में कोई परदेशी नहीं था। दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा झेलेगा और क्रूर जन उन सभी वर्षों में जो उसके लिये निश्चित किये गये है, दु:ख उठाता रहेगा। उसके कानों में भयंकर ध्वनियाँ होगी। जब वह सोचेगा कि वह सुरक्षित है तभी उसके शत्रु उस पर हमला करेंगे।
अय्यूब 15:1-21 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
तेमान नगर के रहने वाले एलीपज ने कहा: ‘क्या बुद्धिमान मनुष्य थोथे ज्ञान के बल पर उत्तर देता है? अथवा पूरवी वायु के सदृश निस्सार और हानिकारक तर्क करता है? क्या उसको बेकार की बातों से अपनी सफाई देना चाहिए; या ऐसी बातों से जिनका कोई परिणाम नहीं निकलता? तुम तो परमेश्वर का भय ही त्याग रहे हो, और दूसरों की ईश-भक्ति में बाधा बन रहे हो। तुम्हारी अधार्मिकता ही तुम्हें विवश करती है। और तुम इस प्रकार की बातें करते हो; तुमने धूर्त की जबान चुनी है! मैं नहीं, वरन् तुम्हारा मुँह ही तुम्हें दोषी ठहाराता है; तुम्हारे ओंठ तुम्हारे विरुद्ध गवाही देते हैं। ‘क्या तुम ही इस पृथ्वी पर सर्वप्रथम पैदा हुए हो? क्या तुम्हारा जन्म इन पहाड़ियों से पहले हुआ है? क्या तुमने परमेश्वर की विद्वत मण्डली में बैठकर ज्ञान प्राप्त किया है? क्या बुद्धि का ठेका केवल तुमने ले रखा है? ऐसी कौन-सी बात है, जो तुम जानते हो, और हम नहीं जानते? तुममें ऐसी कौन-सी समझ है, जो हममें नहीं है? हमारे मध्य पके बाल वाले वृद्ध और बुजुर्ग दोनों प्रकार के आयु वाले मनुष्य हैं, जो तुम्हारे पिता से अधिक उम्र के हैं! क्या परमेश्वर के शान्तिदायक वचन अथवा तुमसे कहे गए कोमल वचन तुम्हारी दृष्टि में कोई महत्व नहीं रखते? तुम्हारा हृदय तुम्हें कहाँ ले जा रहा है? तुम्हारी आँखें आवेश में क्यों चमक रही हैं? इसलिए कि तुम परमेश्वर के प्रति अपना क्रोध प्रकट करते हो, और अपने मुँह से निरर्थक शब्द निकलने देते हो। मनुष्य की हस्ती ही क्या है कि वह पाप से स्वयं शुद्ध हो सके? जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है, क्या वह कभी धार्मिक बन सकता है? देखो, परमेश्वर अपने पवित्र जनों पर भी विश्वास नहीं करता, उसकी दृष्टि में स्वर्ग भी निर्मल नहीं है; तब उसके सम्मुख मनुष्य, जो जन्म से घृणास्पद और भ्रष्ट है, जो पाप को पानी की तरह पीता है, कितना अशुद्ध होगा! ‘मैं तुम्हें सन्मार्ग दिखाऊंगा, मेरी बात सुनो; जो दर्शन मैंने पाया है, वह मैं तुम पर प्रकट करूँगा। ये बातें बुद्धिमानों ने कही हैं; उनके पूर्वजों ने उनसे नहीं छिपायी थीं। उन्हें ही यह देश दिया गया था, और उनके मध्य कोई विदेशी नहीं रहता था। सुनो : दुर्जन जीवन-भर पीड़ा में छटपटाता है, अत्याचारी अपनी निश्चित अल्पायु में जोर आजमाता है। उसके कानों में डरावनी आवाजें गूँजती हैं; सुख-समृद्धि के दिनों में विनाश करने वाला उस पर टूट पड़ता है!
अय्यूब 15:1-21 Hindi Holy Bible (HHBD)
तब तेमानी एलीपज ने कहा, क्या बुद्धिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, वा अपने अन्त:करण को पूरबी पवन से भरे? क्या वह निष्फल वचनों से, वा व्यर्थ बातों से वादविवाद करे? वरन तू भय मानना छोड़ देता, और ईश्वर का ध्यान करना औरों से छुड़ाता है। तू अपने मुंह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है। मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुंह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरुद्ध साक्षी देते हैं। क्या पहिला मनुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहिले हुई? क्या तू ईश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुद्धि का ठेका तू ही ने ले रखा है? तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं? हम लोगों में तो पक्के बाल वाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं। ईश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या ये तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं? तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है? और तू आंख से क्यों सैन करता है? तू भी अपनी आत्मा ईश्वर के विरुद्ध करता है, और अपने मुंह से व्यर्थ बातें निकलने देता है। मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके? देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है। फिर मनुष्य अधिक घिनौना और मलीन है जो कुटिलता को पानी की नाईं पीता है। मैं तुझे समझा दूंगा, इसलिये मेरी सुन ले, जो मैं ने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ। (वे ही बातें जो बुद्धिमानों ने अपने पुरखाओं से सुन कर बिना छिपाए बताया है। केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता जाता नहीं था।) दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और बलात्कारी के वर्षों की गिनती ठहराई हुई है। उसके कान में डरावना शब्द गूंजता रहता है, कुशल के समय भी नाशक उस पर आ पड़ता है।
अय्यूब 15:1-21 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
तब तेमानी एलीपज ने कहा “क्या बुद्धिमान को उचित है कि अज्ञानता के साथ उत्तर दे, या अपने अन्तःकरण को पूर्वी पवन से भरे? क्या वह निष्फल वचनों से, या व्यर्थ बातों से वाद-विवाद करे? वरन् तू परमेश्वर का भय मानना छोड़ देता, और परमेश्वर की भक्ति करना औरों से भी छुड़ाता है। तू अपने मुँह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त लोगों के बोलने की रीति पर बोलता है। मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुँह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरुद्ध साक्षी देते हैं। “क्या पहला मनुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ों से भी पहले हुई? क्या तू परमेश्वर की सभा में बैठा सुनता था? क्या बुद्धि का ठेका तू ही ने ले रखा है (यिर्म. 23:18, 1 कुरि. 2:16) तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं? हम लोगों में तो पक्के बाल वाले और अति पुरनिये मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं। परमेश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिये कोमल हैं, क्या ये तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं? तेरा मन क्यों तुझे खींच ले जाता है? और तू आँख से क्यों इशारे करता है? तू भी अपनी आत्मा परमेश्वर के विरुद्ध करता है, और अपने मुँह से व्यर्थ बातें निकलने देता है। मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निर्दोष हो सके? देख, वह अपने पवित्रों पर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है। फिर मनुष्य अधिक घिनौना और भ्रष्ट है जो कुटिलता को पानी के समान पीता है। “मैं तुझे समझा दूँगा, इसलिए मेरी सुन ले, जो मैंने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ। (वे ही बातें जो बुद्धिमानों ने अपने पुरखाओं से सुनकर बिना छिपाए बताया है। केवल उन्हीं को देश दिया गया था, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता-जाता नहीं था।) दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और उपद्रवी के वर्षों की गिनती ठहराई हुई है। उसके कान में डरावना शब्द गूँजता रहता है, कुशल के समय भी नाश करनेवाला उस पर आ पड़ता है।
अय्यूब 15:1-21 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
इसके बाद तेमानी एलिफाज़ के उद्गार ये थे: “क्या किसी बुद्धिमान के उद्गार खोखले विचार हो सकते हैं तथा क्या वह पूर्वी पवन से अपना पेट भर सकता है? क्या वह निरर्थक सत्यों के आधार पर विचार कर सकता है? वह उन शब्दों का प्रयोग कर सकता है? जिनका कोई लाभ नहीं बनता? तुमने तो परमेश्वर के सम्मान को ही त्याग दिया है, तथा तुमने परमेश्वर की श्रद्धा में विघ्न डाले. तुम्हारा पाप ही तुम्हारे शब्दों की प्रेरणा है, तथा तुमने धूर्तों के शब्दों का प्रयोग किये हैं. ये तो तुम्हारा मुंह ही है, जो तुझे दोषी ठहरा रहा है, मैं नहीं; तुम्हारे ही शब्द तुम पर आरोप लगा रहे हैं. “क्या समस्त मानव जाति में तुम सर्वप्रथम जन्मे हो? अथवा क्या पर्वतों के अस्तित्व में आने के पूर्व तुम्हारा पालन पोषण हुआ था? क्या तुम्हें परमेश्वर की गुप्त अभिलाषा सुनाई दे रही है? क्या तुम ज्ञान को स्वयं तक सीमित रखे हुए हो? तुम्हें ऐसा क्या मालूम है, जो हमें मालूम नहीं है? तुमने वह क्या समझ लिया है, जो हम समझ न पाए हैं? हमारे मध्य सफेद बाल के वृद्ध विद्यमान हैं, ये तुम्हारे पिता से अधिक आयु के भी हैं. क्या परमेश्वर से मिली सांत्वना तुम्हारी दृष्टि में पर्याप्त है, वे शब्द भी जो तुमसे सौम्यतापूर्वक से कहे गए हैं? क्यों तुम्हारा हृदय उदासीन हो गया है? क्यों तुम्हारे नेत्र क्रोध में चमक रहे हैं? कि तुम्हारा हृदय परमेश्वर के विरुद्ध हो गया है, तथा तुम अब ऐसे शब्द व्यर्थ रूप से उच्चार रहे हो? “मनुष्य है ही क्या, जो उसे शुद्ध रखा जाए अथवा वह, जो स्त्री से पैदा हुआ, निर्दोष हो? ध्यान दो, यदि परमेश्वर अपने पवित्र लोगों पर भी विश्वास नहीं करते, तथा स्वर्ग उनकी दृष्टि में शुद्ध नहीं है. तब मनुष्य कितना निकृष्ट होगा, जो घृणित तथा भ्रष्ट है, जो पाप को जल समान पिया करता है! “यह मैं तुम्हें समझाऊंगा मेरी सुनो जो कुछ मैंने देखा है; मैं उसी की घोषणा करूंगा, जो कुछ बुद्धिमानों ने बताया है, जिसे उन्होंने अपने पूर्वजों से भी गुप्त नहीं रखा है. (जिन्हें मात्र यह देश प्रदान किया गया था तथा उनके मध्य कोई भी विदेशी न था): दुर्वृत्त अपने समस्त जीवनकाल में पीड़ा से तड़पता रहता है. तथा बलात्कारी के लिए समस्त वर्ष सीमित रख दिए गए हैं. उसके कानों में आतंक संबंधी ध्वनियां गूंजती रहती हैं; जबकि शान्तिकाल में विनाश उस पर टूट पड़ता है.