नीतिवचन 8:1-36

नीतिवचन 8:1-36 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

क्या बुद्धि नहीं पुकारती है, क्या समझ ऊँचे शब्द से नहीं बोलती है? वह तो ऊँचे स्थानों पर मार्ग की एक ओर और तिर्मुहानियों में खड़ी होती है; फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊँचे स्वर से कहती है, “हे मनुष्यो, मैं तुम को पुकारती हूँ, और मेरी बात सब आदमियों के लिये है। हे भोलो, चतुराई सीखो; और हे मूर्खो, अपने मन में समझ लो। सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूँगी, और जब मुँह खोलूँगी, तब उससे सीधी बातें निकलेंगी; क्योंकि मुझ से सच्‍चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्‍टता की बातों से मुझ को घृणा आती है। मेरे मुँह की सब बातें धर्म की होती हैं, उनमें से कोई टेढ़ी या उलट फेर की बात नहीं निकलती है। समझवाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान प्राप्‍त करनेवालों के लिये अति सीधी हैं। चाँदी नहीं, मेरी शिक्षा ही को लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो। क्योंकि बुद्धि, मूँगे से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है। मैं जो बुद्धि हूँ, चतुराई में वास करती हूँ, और ज्ञान और विवेक को प्राप्‍त करती हूँ। यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड, अहंकार और बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से भी मैं बैर रखती हूँ। उत्तम युक्‍ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मैं तो समझ हूँ, और पराक्रम भी मेरा है। मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से विचार करते हैं; मेरे ही द्वारा राजा हाकिम और रईस, और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं। जो मुझ से प्रेम रखते हैं, उनसे मैं भी प्रेम रखती हूँ, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं। धन और प्रतिष्‍ठा मेरे पास हैं, वरन् ठहरनेवाला धन और धर्म भी हैं। मेरा फल चोखे सोने से, वरन् कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चाँदी से अच्छी है। मैं धर्म के मार्ग में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूँ, जिससे मैं अपने प्रेमियों को परमार्थ का भागी करूँ, और उनके भण्डारों को भर दूँ। “यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन् अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहले उत्पन्न किया। मैं सदा से वरन् आदि ही से पृथ्वी की सृष्‍टि से पहले ही से ठहराई गई हूँ। जब न तो गहिरा सागर था और न जल के सोते थे, तब ही से मैं उत्पन्न हुई। जब पहाड़ और पहाड़ियाँ स्थिर न की गई थीं, तब ही से मैं उत्पन्न हुई। जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इनसे पहले मैं उत्पन्न हुई। जब उसने आकाश को स्थिर किया, तब मैं वहाँ थी, जब उसने गहिरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया, जब उसने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया, और गहिरे सागर के सोते फूटने लगे, जब उसने समुद्र की सीमा ठहराई, कि जल उसकी आज्ञा का उल्‍लंघन न कर सके, और जब वह पृथ्वी की नींव की डोरी लगाता था, तब मैं कारीगर सी उसके पास थी; और प्रतिदिन मैं उसकी प्रसन्नता थी, और हर समय उसके सामने आनन्दित रहती थी। मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था। “इसलिये अब हे मेरे पुत्रो, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन् मेरी डेवढ़ी पर प्रतिदिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खंभों के पास दृष्‍टि लगाए रहता है। क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उससे प्रसन्न होता है। परन्तु जो मेरा अपराध करता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझ से बैर रखते वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं।”

नीतिवचन 8:1-36 पवित्र बाइबल (HERV)

क्या सुबुद्धि तुझको पुकारती नहीं है? क्या समझबूझ ऊँची आवाज नहीं देती? वह राह के किनारे ऊँचे स्थानों पर खड़ी रहती है जहाँ मार्ग मिलते हैं। वह नगर को जाने वाले द्वारों के सहारे उपर सिंह द्वार के ऊपर पुकार कर कहती है, “हे लोगों, मैं तुमको पुकारती हूँ, मैं सारी मानव जाति हेतु आवाज़ उठाती हूँ। अरे भोले लोगों! दूर दृष्टि प्राप्त करो, तुम, जो मूर्ख बने हो, समझ बूझ अपनाओ। सुनो! क्योंकि मेरे पास कहने को उत्तम बातें हैं, अपना मुख खोलती हूँ, जो कहने को उचित हैं। मेरे मुख से तो वही निकलता है जो सत्य हैं, क्योंकि मेरे होंठों को दुष्टता से घृणा हैं। मेरे मुख के सभी शब्द न्यायपूर्ण होते हैं कोई भी कुटिल, अथवा भ्रान्त नहीं हैं। विचारशील जन के लिये वे सब साफ़ है और ज्ञानी जन के लिये सब दोष रहित है। चाँदी नहीं बल्कि तू मेरी शिक्षा ग्रहण कर उत्तम स्वर्ग नहीं बल्कि तू ज्ञान ले। सुबुद्धि, रत्नों, मणि माणिकों से अधिक मूल्यवान है। तेरी ऐसी मनचाही कोई वस्तु जिससे उसकी तुलना हो।” “मैं सुबुद्धि, विवेक के संग रहती हूँ, मैं ज्ञान रखती हूँ, और भले—बुरे का भेद जानती हूँ। यहोवा का डरना, पाप से घृणा करना है। गर्व और अहंकार, कुटिल व्यवहार और पतनोन्मुख बातों से मैं घृणा करती हूँ। मेरे परामर्श और न्याय उचित होते हैं। मेरे पास समझ—बूझ और सामर्थ्य है। मेरे ही साहारे राजा राज्य करते हैं, और शासक नियम रचते हैं, जो न्याय पूर्ण है। मेरी ही सहायता से धरती के सब महानुभाव शासक राज चलाते हैं। जो मुझसे प्रेम करते हैं, मैं भी उन्हें प्रेम करती हूँ, मुझे जो खोजते हैं, मुझको पा लेते हैं। सम्पत्तियाँ और आदर मेरे साथ हैं। मैं खरी सम्पत्ति और यश देती हूँ। मेरा फल स्वर्ण से उत्तम है। मैं जो उपजाती हूँ, वह शुद्ध चाँदी से अधिक है। मैं न्याय के मार्ग के सहारे नेकी की राह पर चलती रहती हूँ। मुझसे जो प्रेम करते उन्हें मैं धन देती हूँ, और उनके भण्डार भर देती हूँ। “यहोवा ने मुझे अपनी रचना के प्रथम अपने पुरातन कर्मो से पहले ही रचा है। मेरी रचना सनातन काल से हुई। आदि से, जगत की रचना के पहले से हुई। जब सागर नहीं थे, जब जल से लबालब सोते नहीं थे, मुझे जन्म दिया गया। मुझे पर्वतों—पहाड़ियों की स्थापना से पहले ही जन्म दिया गया। धरती की रचना, या उसके खेत अथवा जब धरती के धूल कण रचे गये। मेरा अस्तित्व उससे भी पहले वहाँ था। जब उसने आकाश का वितान ताना था और उसने सागर के दूसरे छोर पर क्षितिज को रेखांकित किया था। उसने जब आकाश में सघन मेघ टिकाये थे, और गहन सागर के स्रोत निर्धारित किये, उसने समुद्र की सीमा बांधी थी जिससे जल उसकी आज्ञा कभी न लाँघे, धरती की नीवों का सूत्रपात उसने किया, तब मैं उसके साथ कुशल शिल्पी सी थी। मैं दिन—प्रतिदिन आनन्द से परिपूर्ण होती चली गयी। उसके सामने सदा आनन्द मनाती। उसकी पूरी दुनिया से मैं आनन्दित थी। मेरी खुशी समूची मानवता थी। “तो अब, मेरे पुत्रों, मेरी बात सुनो। वो धन्य है! जो जन मेरी राह पर चलते हैं। मेरे उपदेश सुनो और बुद्धिमान बनो। इनकी उपेक्षा मत करो। वही जन धन्य है, जो मेरी बात सुनता और रोज मेरे द्वारों पर दृष्टि लगाये रहता एवं मेरी ड्योढ़ी पर बाट जोहता रहता है। क्योंकि जो मुझको पा लेता वही जीवन पाता और वह यहोवा का अनुग्रह पाता है। किन्तु जो मुझको, पाने में चूकता, वह तो अपनी ही हानि करता है। मुझसे जो भी जन सतत बैर रखते हैं, वे जन तो मृत्यु के प्यारे बन जाते हैं!”

नीतिवचन 8:1-36 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

बुद्धि तुम्‍हें आवाज दे रही है; समझ उच्‍च स्‍वर में तुम्‍हें पुकार रही है। वह मार्ग के किनारे ऊंचे स्‍थानों पर, रास्‍तों के मिलने के स्‍थान पर आकर खड़ी है। नगर के सम्‍मुख, प्रवेश-द्वार के समीप दरवाजों के पैठार पर खड़ी होकर वह उच्‍च स्‍वर में पुकार रही है: ‘ओ प्रतिष्‍ठित लोगो, मैं तुम से बोल रही हूं; ओ साधारण लोगो, मेरी पुकार तुम्‍हारे लिए भी है। ओ सीधे-सादे लोगो, चतुराई सीखो; ओ मूर्ख लोगो, समझ की बात पर हृदय लगाओ। मेरी बात सुनो, क्‍योंकि मैं तुम से श्रेष्‍ठ वचन कहूंगी; मेरे मुख से केवल उचित बातें ही निकलेंगी। मेरा मुंह केवल सत्‍य वचन ही कहेगा मेरे ओंठों को दुष्‍ट वचन से घृणा है। मेरे मुख के सब वचन धार्मिक होते हैं, उनमें छल-कपट और उलट-फेर नहीं होता। ये समझदार मनुष्‍यों के लिए सहज हैं, और ज्ञान पिपासुओं के लिए सीधे-सादे। चांदी को नहीं, वरन् मेरी शिक्षा को ग्रहण करो; सोने को नहीं, बल्‍कि मेरे ज्ञान को प्राप्‍त करो। क्‍योंकि मैं-बुद्धि मोतियों से श्रेष्‍ठ हूं; तुम्‍हारी किसी भी इष्‍ट वस्‍तु से मेरी तुलना नहीं हो सकती। ‘मैं समझ में निवास करती हूं; मुझे ज्ञान और विवेक उपलब्‍ध हैं। बुराई से घृणा करना ही प्रभु की भक्‍ति करना है; मैं घमण्‍ड, अहंकार और दुराचरण से, छल-कपटपूर्ण बातों से घृणा करती हूं। मुझमें सम्‍मति और खरी बुद्धि है, मुझ में समझ है, शक्‍ति भी मेरी है। मुझ-बुद्धि के द्वारा ही राजा राज्‍य करते हैं; मेरी सहायता से शासक न्‍यायपूर्ण निर्णय करते हैं। मेरे द्वारा ही शासक राज्‍य करते हैं, उच्‍चाधिकारी पृथ्‍वी पर शासन करते हैं। जो मुझसे प्रेम करते हैं, मैं उनसे प्रेम करती हूं; जो मुझे ढूंढ़ने में जमीन-आसमान एक कर देते हैं, वे मुझे पाते हैं। सम्‍पत्ति और सम्‍मान, शाश्‍वत धन और धार्मिकता मेरे पास हैं। मेरा फल सोने से, नहीं, शुद्ध सोने से श्रेष्‍ठ है; मेरी उपज उत्तम चांदी से अच्‍छी है। मैं धर्म के मार्ग में, न्‍याय के पथ पर चलती हूं; और अपने प्रेमियों को धन-सम्‍पत्ति से पूर्ण करे देती हूं, उनके खजानों को भर देती हूं।’ प्रभु ने अपने समस्‍त सृष्‍टि-कार्यों में सर्वप्रथम, अपना रचना-कार्य आरम्‍भ करने से पूर्व मुझे ही पहले उत्‍पन्न किया था। युगों के आरम्‍भ से, आदि से ही, पृथ्‍वी की रचना के पहले से मैं ही गढ़ी गई। जब न गहरा महासागर था, और न जल से भरे हुए झरने थे, तब मेरा जन्‍म हुआ। जब पहाड़ों का अस्‍तित्‍व भी न था, जब पहाड़ियों का आकार गढ़ा नहीं गया था, तब मैं ही उत्‍पन्न हुई थी। जब प्रभु ने भूमि और मैदान बनाए, जब उसने पृथ्‍वी का प्रथम धूलि-कण रचा, उसके पुर्व मैं अस्‍तित्‍व में आई। जब प्रभु ने आकाश की रचना की तब मैं वहां थी; जब उसने गहरे महासागर के ऊपर वितान खींचा था, तब भी मैं उपस्‍थित थी। जब उसने ऊपर, आकाश मण्‍डल को स्‍थिर किया, जब उसने गहरे महासागर के झरनों का मुंह खोला, जब उसने सागर की सीमा निर्धारित की, कि जल उसकी आज्ञा का उल्‍लंघन कर उस सीमा को पार न करे; जब उसने पृथ्‍वी की नींव के चिह्‍न लगाए, तब मैं एक कुशल कारीगर के समान, उस के समीप ही थी। मैं प्रतिदिन उसको प्रसन्न करती थी; मैं सदा उसके सम्‍मुख आनन्‍द मनाती थी। मैं उसके द्वारा बसायी गई पृथ्‍वी से आनन्‍दित थी; मैं मनुष्‍य जाति से प्रसन्न थी। अब, हे मेरे शिष्‍यों, मेरी बात सुनो: मेरे मार्ग पर चलनेवाले लोग धन्‍य हैं! शिक्षा की बात सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ; मेरे शिष्‍यों, शिक्षा की उपेक्षा मत करना। मेरी बात को सुननेवाला मनुष्‍य धन्‍य है। वह प्रतिदिन मेरे द्वार पर आस लगाए खड़ा रहता है; वह मेरी प्रतीक्षा में द्वार पर पलकें बिछाए रहता है। मेरे शिष्‍यो, जो मनुष्‍य मुझ को प्राप्‍त कर लेता है, वह जीवन को पा जाता है; वह प्रभु की कृपा का पात्र बन जाता है। पर जो मुझे चूक जाता है, वह अपने पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारता है; जो मुझसे घृणा करता है वह मृत्‍यु को प्‍यार करता है।

नीतिवचन 8:1-36 Hindi Holy Bible (HHBD)

क्या बुद्धि नहीं पुकारती है, क्या समझ ऊंचे शब्द से नहीं बोलती है? वह तो ऊंचे स्थानों पर मार्ग की एक ओर, और तिर्मुहानियों में खड़ी होती है; फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊंचे स्वर से कहती है, हे मनुष्यों, मैं तुम को पुकारती हूं, और मेरी बात सब आदमियों के लिये है। हे भोलो, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूंगी, और जब मुंह खोलूंगी, तब उस से सीधी बातें निकलेंगी; क्योंकि मुझ से सच्चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है॥ मेरे मुंह की सब बातें धर्म की होती हैं, उन में से कोई टेढ़ी वा उलट फेर की बात नहीं निकलती है। समझ वाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान के प्राप्त करने वालों के लिये अति सीधी हैं। चान्दी नहीं, मेरी शिक्षा ही को लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़ कर ज्ञान को ग्रहण करो। क्योंकि बुद्धि, मूंगे से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है। मैं जो बुद्धि हूं, सो चतुराई में वास करती हूं, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूं। यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड, अंहकार, और बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से भी मैं बैर रखती हूं। उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मैं तो समझ हूं, और पराक्रम भी मेरा है। मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से विचार करते हैं; मेरे ही द्वारा राजा हाकिम और रईस, और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं। जो मुझ से प्रेम रखते हैं, उन से मैं भी प्रेम रखती हूं, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठ कर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं। धन और प्रतिष्ठा मेरे पास है, वरन ठहरने वाला धन और धर्म भी हैं। मेरा फल चोखे सोने से, वरन कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चान्दी से अच्छी है। मैं धर्म की बाट में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूं, जिस से मैं अपने प्रेमियों को परमार्थ के भागी करूं, और उनके भण्डारों को भर दूं। यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहिले उत्पन्न किया। मैं सदा से वरन आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि के पहिले ही से ठहराई गई हूं। जब न तो गहिरा सागर था, और न जल के सोते थे तब ही से मैं उत्पन्न हुई। जब पहाड़ वा पहाड़ियां स्थिर न की गई थीं, जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इन से पहिले मैं उत्पन्न हुई। जब उस ने अकाश को स्थिर किया, तब मैं वहां थी, जब उस ने गहिरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया, जब उस ने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया, और गहिरे सागर के सोते फूटने लगे, जब उस ने समुद्र का सिवाना ठहराया, कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके, और जब वह पृथ्वी की नेव की डोरी लगाता था, तब मैं कारीगर सी उसके पास थी; और प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्नता थी, और हर समय उसके साम्हने आनन्दित रहती थी। मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था॥ इसलिये अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन मेरी डेवढ़ी पर प्रति दिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खंभों के पास दृष्टि लगाए रहता है। क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उस से प्रसन्न होता है। परन्तु जो मेरा अपराध करता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझ से बैर रखते वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं॥

नीतिवचन 8:1-36 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

क्या बुद्धि नहीं पुकारती है? क्या समझ ऊँचे शब्द से नहीं बोलती है? बुद्धि तो मार्ग के ऊँचे स्थानों पर, और चौराहों में खड़ी होती है; फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊँचे स्वर से कहती है, “हे लोगों, मैं तुम को पुकारती हूँ, और मेरी बातें सब मनुष्यों के लिये हैं। हे भोलों, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूँगी, और जब मुँह खोलूँगी, तब उससे सीधी बातें निकलेंगी; क्योंकि मुझसे सच्चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है। मेरे मुँह की सब बातें धर्म की होती हैं, उनमें से कोई टेढ़ी या उलट-फेर की बात नहीं निकलती है। समझवाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान प्राप्त करनेवालों के लिये अति सीधी हैं। चाँदी नहीं, मेरी शिक्षा ही को चुन लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो। क्योंकि बुद्धि, बहुमूल्य रत्नों से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है। मैं जो बुद्धि हूँ, और मैं चतुराई में वास करती हूँ, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूँ। यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड और अहंकार, बुरी चाल से, और उलट-फेर की बात से मैं बैर रखती हूँ। उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मुझ में समझ है, और पराक्रम भी मेरा है। मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से शासन करते हैं; (रोम. 13:1) मेरे ही द्वारा राजा, हाकिम और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं। जो मुझसे प्रेम रखते हैं, उनसे मैं भी प्रेम रखती हूँ, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं। धन और प्रतिष्ठा, शाश्‍वत धन और धार्मिकता मेरे पास हैं। मेरा फल शुद्ध सोने से, वरन् कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चाँदी से अच्छी है। मैं धर्म के मार्ग में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूँ, जिससे मैं अपने प्रेमियों को धन-सम्पत्ति का भागी करूँ, और उनके भण्डारों को भर दूँ। “यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन् अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहले उत्पन्न किया। मैं सदा से वरन् आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि से पहले ही से ठहराई गई हूँ। जब न तो गहरा सागर था, और न जल के सोते थे, तब ही से मैं उत्पन्न हुई। जब पहाड़ और पहाड़ियाँ स्थिर न की गई थीं, तब ही से मैं उत्पन्न हुई। (यूह. 1:1,2, यूह. 17:24, कुलु. 1:17) जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इनसे पहले मैं उत्पन्न हुई। जब उसने आकाश को स्थिर किया, तब मैं वहाँ थी, जब उसने गहरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया, जब उसने आकाशमण्डल को ऊपर से स्थिर किया, और गहरे सागर के सोते फूटने लगे, जब उसने समुद्र की सीमा ठहराई, कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके, और जब वह पृथ्वी की नींव की डोरी लगाता था, तब मैं प्रधान कारीगर के समान उसके पास थी; और प्रतिदिन मैं उसकी प्रसन्नता थी, और हर समय उसके सामने आनन्दित रहती थी। मैं उसकी बसाई हुई पृथ्वी से प्रसन्न थी और मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था। “इसलिए अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। शिक्षा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसको अनसुना न करो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन् मेरी डेवढ़ी पर प्रतिदिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारों के खम्भों के पास दृष्टि लगाए रहता है। क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उससे प्रसन्न होता है। परन्तु जो मुझे ढूँढ़ने में विफल होता है, वह अपने ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझसे बैर रखते, वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं।”

नीतिवचन 8:1-36 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

क्या ज्ञान आह्वान नहीं करता? क्या समझ उच्च स्वर में नहीं पुकारती? वह गलियों के ऊंचे मार्ग पर, चौराहों पर जाकर खड़ी हो जाती है; वह नगर प्रवेश द्वार के सामने खड़ी रहती है, उसके द्वार के सामने खड़ी होकर वह उच्च स्वर में पुकारती रहती है: “मनुष्यो, मैं तुम्हें संबोधित कर रही हूं; मेरी पुकार मनुष्यों की सन्तति के लिए है. साधारण सरल व्यक्तियो, चतुराई सीख लो; अज्ञानियो, बुद्धिमत्ता सीख लो. क्योंकि मैं तुम पर उत्कृष्ट बातें प्रकट करूंगी; मेरे मुख से वही सब निकलेगा जो सुसंगत ही है, क्योंकि मेरे मुख से मात्र सत्य ही निकलेगा, मेरे होंठों के लिए दुष्टता घृणास्पद है. मेरे मुख से निकला हर एक शब्द धर्ममय ही होता है; उनमें न तो छल-कपट होता है, न ही कोई उलट फेर का विषय. जिस किसी ने इनका मूल्य पहचान लिया है, उनके लिए ये उपयुक्त हैं, और जिन्हें ज्ञान की उपलब्धि हो चुकी है, उनके लिए ये उत्तम हैं. चांदी के स्थान पर मेरी शिक्षा को संग्रहीत करो, वैसे ही उत्कृष्ट स्वर्ण के स्थान पर ज्ञान को, क्योंकि ज्ञान रत्नों से अधिक कीमती है, और तुम्हारे द्वारा अभिलाषित किसी भी वस्तु से इसकी तुलना नहीं की जा सकती. “मैं ज्ञान हूं और व्यवहार कुशलता के साथ मेरा सह अस्तित्व है, मेरे पास ज्ञान और विवेक है. पाप से घृणा ही याहवेह के प्रति श्रद्धा है; मुझे घृणा है अहंकार, गर्वोक्ति, बुराई तथा छलपूर्ण बातों से. मुझमें ही परामर्श है, सद्बुद्धि है; मुझमें समझ है, मुझमें शक्ति निहित है. मेरे द्वारा राजा शासन करते हैं, मेरे ही द्वारा वे न्याय संगत निर्णय लेते हैं. मेरे द्वारा ही शासक शासन करते हैं, और समस्त न्यायाध्यक्ष मेरे द्वारा ही न्याय करते हैं. जिन्हें मुझसे प्रेम है, वे सभी मुझे भी प्रिय हैं, जो मुझे खोजते हैं, मुझे प्राप्‍त भी कर लेते हैं. मेरे साथ ही संलग्न हैं समृद्धि और सम्मान इनके साथ ही चिरस्थायी निधि तथा धार्मिकता. मेरा फल स्वर्ण से, हां, उत्कृष्ट स्वर्ण से उत्तम; तथा जो कुछ मुझसे निकलता है, वह चांदी से उत्कृष्ट है. धार्मिकता मेरा मार्ग है, जिस पर मैं चालचलन करता हूं, न्यायशीलता ही मेरा मार्ग है, परिणामस्वरूप, जिन्हें मुझसे प्रेम है, उन्हें धन प्राप्‍त हो जाता है और उनके भण्डारगृह परिपूर्ण भरे रहते हैं. “जब याहवेह ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की, इसके पूर्व कि वह किसी वस्तु की सृष्टि करते, मैं उनके साथ था; युगों पूर्व ही, सर्वप्रथम, पृथ्वी के अस्तित्व में आने के पूर्व ही मैं अस्तित्व में था. महासागरों के अस्तित्व में आने के पूर्व, जब सोते ही न थे, मुझे जन्म दिया गया. इसके पूर्व कि पर्वतों को आकार दिया गया, और पहाड़ियां अस्तित्व में आयीं, मैं अस्तित्व में था; इसके पूर्व कि परमेश्वर ने पृथ्वी तथा पृथ्वी की सतह पर मैदानों की रचना की, अथवा भूमि पर सर्वप्रथम धूल देखी गई. जब परमेश्वर ने आकाशमंडल की स्थापना की, मैं अस्तित्व में था, जब उन्होंने महासागर पर क्षितिज रेखा का निर्माण किया, जब उन्होंने आकाश को हमारे ऊपर सुदृढ़ कर दिया, जब उन्होंने महासागर के सोते प्रतिष्ठित किए, जब उन्होंने महासागर की सीमाएं बांध दी, कि जल उनके आदेश का उल्लंघन न कर सके, जब उन्होंने पृथ्वी की नींव रेखांकित की. उस समय मैं उनके साथ साथ कार्यरत था. एक प्रधान कारीगर के समान प्रतिदिन मैं ही उनके हर्ष का कारण था, सदैव मैं उनके समक्ष आनंदित होता रहता था, उनके द्वारा बसाए संसार में तथा इसके मनुष्यों में मेरा आनंद था. “मेरे पुत्रो, ध्यान से सुनो; मेरे निर्देश सुनकर बुद्धिमान हो जाओ. इनका परित्याग कभी न करना; धन्य होते हैं वे, जो मेरी नीतियों पर चलते हैं. धन्य होता है वह व्यक्ति, जो इन शिक्षाओं के समक्ष ठहरा रहता है, जिसे द्वार पर मेरी प्रतीक्षा रहती है. जिसने मुझे प्राप्‍त कर लिया, उसने जीवन प्राप्‍त कर लिया, उसने याहवेह की कृपादृष्टि प्राप्‍त कर ली. किंतु वह, जो मुझे पाने में असफल होता है, वह स्वयं का नुकसान कर लेता है; वे सभी, जो मुझसे घृणा करते हैं, वे मृत्यु का आलिंगन करते हैं.”