उत्पत्ति 1
1
विश्व एवं मनुष्य की रचना का वर्णन
1परमेश्वर ने आरम्भ में आकाश और पृथ्वी को रचा#1:1 पहले पद का अनुवाद यह भी हो सकता है, ‘जब परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाना आरंभ किया तब...।’ ।#यो 1:1-3; रोम 1:20; इब्र 11:3; भज 104 2पृथ्वी आकार-रहित और सुनसान थी। अथाह सागर के ऊपर अन्धकार था। जल की सतह पर परमेश्वर का आत्मा#1:2 अथवा ‘प्रचण्ड पवन’ मंडराता था।
3परमेश्वर ने कहा, ‘प्रकाश हो’, और प्रकाश हो गया।#2 कुर 4:6; 2 मक 7:28 4परमेश्वर ने देखा कि प्रकाश अच्छा है। परमेश्वर ने प्रकाश को अन्धकार से अलग किया। 5परमेश्वर ने प्रकाश को ‘दिन’ तथा अन्धकार को ‘रात’ नाम दिया। सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार पहला दिन बीत गया।
6परमेश्वर ने कहा, ‘जल के मध्य मेहराब#1:6 अथवा, ‘गुम्बज’। प्राचीन विश्वास के अनुसार मेहराब अपने ऊपर के जल को नीचे गिरने से रोकता था। हो, और वह जल को जल से अलग करे।’#2 पत 3:5 7परमेश्वर ने मेहराब बनाया, तथा मेहराब के ऊपर के जल को, उसके नीचे के जल से अलग किया। ऐसा ही हुआ। 8परमेश्वर ने मेहराब को ‘आकाश’ नाम दिया। सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन बीत गया।
9परमेश्वर ने कहा, ‘आकाश के नीचे का जल एक स्थान में एकत्र हो, और सूखी भूमि दिखाई दे।’ ऐसा ही हुआ। 10परमेश्वर ने सूखी भूमि को ‘पृथ्वी’, तथा एकत्रित जल को ‘समुद्र’ नाम दिया। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 11तब परमेश्वर ने पृथ्वी को आज्ञा दी कि वह वनस्पति, बीजधारी पौधे और फलदायक वृक्ष उगाए। पृथ्वी पर उन वृक्षों की जाति के अनुसार उनके फलों में बीज भी हों। ऐसा ही हुआ। 12पृथ्वी ने वनस्पति, जाति-जाति के बीजधारी पौधे, फलदायक वृक्ष, जिनके फलों में बीज थे, उनकी जाति के अनुसार उगाए। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 13सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन बीत गया।
14परमेश्वर ने कहा, ‘दिन को रात से अलग करने के लिए आकाश के मेहराब में ज्योति-पिण्ड हों। वे ऋतु, दिन और वर्ष के चिह्न बनें।#व्य 4:19 15पृथ्वी पर प्रकाश करने के लिए आकाश के मेहराब में ज्योति-पिण्ड हों।’ ऐसा ही हुआ।#भज 136:7 16परमेश्वर ने दो विशाल ज्योति-पिण्ड बनाए : अधिक शक्तिवान ज्योति-पिण्ड को दिन का शासक, और कम शक्तिवान ज्योति-पिण्ड को रात का शासक बनाया। उसने तारे भी बनाए। 17परमेश्वर ने उन्हें आकाश के मेहराब में स्थित किया कि वे पृथ्वी को प्रकाशित करें, 18दिन और रात पर शासन करें और प्रकाश को अन्धकार से अलग करें। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 19सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार चौथा दिन बीत गया।
20परमेश्वर ने कहा, ‘समुद्र जीवित जलचरों के झुण्ड के झुण्ड उत्पन्न करें तथा पक्षी पृथ्वी पर आकाश के मेहराब में उड़ें।’ 21इस प्रकार परमेश्वर ने बड़े-बड़े जल-जन्तुओं और गतिमान जलचरों को, जो झुण्ड के झुण्ड समुद्र में तैरते हैं, उनकी जाति के अनुसार उत्पन्न किया। उसने सब पंखवाले पक्षियों को भी उनकी जाति के अनुसार उत्पन्न किया। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 22परमेश्वर ने उन्हें यह आशिष दी, ‘फलो-फूलो, और समुद्रों को भर दो। पक्षी भी पृथ्वी में असंख्य हो जाएँ।’ 23सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन बीत गया।
24परमेश्वर ने कहा, ‘पृथ्वी जीव-जन्तुओं को उनकी जाति के अनुसार उत्पन्न करे, अर्थात् प्रत्येक की जाति के अनुसार पालतू पशु, रेंगने वाले जन्तु, और धरती के वन पशु।’ ऐसा ही हुआ। 25परमेश्वर ने धरती के वन पशुओं, पालतू पशुओं और भूमि पर रेंगनेवाले जन्तुओं को उनकी जाति के अनुसार बनाया। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं।
26परमेश्वर ने कहा, ‘हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपने सदृश बनाएँ, और समुद्र के जलचरों#1:26 शब्दश: ‘मछलियों’ , आकाश के पक्षियों, पालतू पशुओं, धरती पर रेंगने वाले जन्तुओं और समस्त पृथ्वी पर मनुष्य का अधिकार हो।’ 27अत: परमेश्वर ने अपने स्वरूप में मनुष्य को रचा। परमेश्वर के स्वरूप में उसने मनुष्य की सृष्टि की। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया।#भज 8:6; 1 कुर 11:7; कुल 3:10; मत 19:4; प्रक 17:3 28परमेश्वर ने उन्हें यह आशिष दी, ‘फलो-फूलो और पृथ्वी को भर दो, और उसे अपने अधिकार में कर लो। समुद्र के जलचरों, आकाश के पक्षियों और भूमि के समस्त गतिमान जीव-जन्तुओं पर तुम्हारा अधिकार हो।’ 29परमेश्वर ने कहा, ‘देखो, मैंने समस्त पृथ्वी के प्रत्येक बीजधारी पौधे और फलदायक वृक्ष, जिनके फलों में बीज हैं, तुम्हें प्रदान किए हैं। वे तुमारा आहार हैं। 30धरती के समस्त पशुओं, आकाश के पक्षियों, धरती पर रेंगनेवाले जन्तुओं, प्रत्येक प्राणी को जिसमें जीवन का श्वास है, मैंने सब हरित पौधे आहार के लिए दिए हैं।’ ऐसा ही हुआ। 31परमेश्वर ने अपनी सृष्टि को देखा, और देखो, वह बहुत अच्छी थी। सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार छठा दिन बीत गया।#1 तिम 4:4
Attualmente Selezionati:
उत्पत्ति 1: HINCLBSI
Evidenziazioni
Condividi
Copia
Vuoi avere le tue evidenziazioni salvate su tutti i tuoi dispositivi?Iscriviti o accedi
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.
उत्पत्ति 1
1
विश्व एवं मनुष्य की रचना का वर्णन
1परमेश्वर ने आरम्भ में आकाश और पृथ्वी को रचा#1:1 पहले पद का अनुवाद यह भी हो सकता है, ‘जब परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाना आरंभ किया तब...।’ ।#यो 1:1-3; रोम 1:20; इब्र 11:3; भज 104 2पृथ्वी आकार-रहित और सुनसान थी। अथाह सागर के ऊपर अन्धकार था। जल की सतह पर परमेश्वर का आत्मा#1:2 अथवा ‘प्रचण्ड पवन’ मंडराता था।
3परमेश्वर ने कहा, ‘प्रकाश हो’, और प्रकाश हो गया।#2 कुर 4:6; 2 मक 7:28 4परमेश्वर ने देखा कि प्रकाश अच्छा है। परमेश्वर ने प्रकाश को अन्धकार से अलग किया। 5परमेश्वर ने प्रकाश को ‘दिन’ तथा अन्धकार को ‘रात’ नाम दिया। सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार पहला दिन बीत गया।
6परमेश्वर ने कहा, ‘जल के मध्य मेहराब#1:6 अथवा, ‘गुम्बज’। प्राचीन विश्वास के अनुसार मेहराब अपने ऊपर के जल को नीचे गिरने से रोकता था। हो, और वह जल को जल से अलग करे।’#2 पत 3:5 7परमेश्वर ने मेहराब बनाया, तथा मेहराब के ऊपर के जल को, उसके नीचे के जल से अलग किया। ऐसा ही हुआ। 8परमेश्वर ने मेहराब को ‘आकाश’ नाम दिया। सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन बीत गया।
9परमेश्वर ने कहा, ‘आकाश के नीचे का जल एक स्थान में एकत्र हो, और सूखी भूमि दिखाई दे।’ ऐसा ही हुआ। 10परमेश्वर ने सूखी भूमि को ‘पृथ्वी’, तथा एकत्रित जल को ‘समुद्र’ नाम दिया। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 11तब परमेश्वर ने पृथ्वी को आज्ञा दी कि वह वनस्पति, बीजधारी पौधे और फलदायक वृक्ष उगाए। पृथ्वी पर उन वृक्षों की जाति के अनुसार उनके फलों में बीज भी हों। ऐसा ही हुआ। 12पृथ्वी ने वनस्पति, जाति-जाति के बीजधारी पौधे, फलदायक वृक्ष, जिनके फलों में बीज थे, उनकी जाति के अनुसार उगाए। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 13सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन बीत गया।
14परमेश्वर ने कहा, ‘दिन को रात से अलग करने के लिए आकाश के मेहराब में ज्योति-पिण्ड हों। वे ऋतु, दिन और वर्ष के चिह्न बनें।#व्य 4:19 15पृथ्वी पर प्रकाश करने के लिए आकाश के मेहराब में ज्योति-पिण्ड हों।’ ऐसा ही हुआ।#भज 136:7 16परमेश्वर ने दो विशाल ज्योति-पिण्ड बनाए : अधिक शक्तिवान ज्योति-पिण्ड को दिन का शासक, और कम शक्तिवान ज्योति-पिण्ड को रात का शासक बनाया। उसने तारे भी बनाए। 17परमेश्वर ने उन्हें आकाश के मेहराब में स्थित किया कि वे पृथ्वी को प्रकाशित करें, 18दिन और रात पर शासन करें और प्रकाश को अन्धकार से अलग करें। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 19सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार चौथा दिन बीत गया।
20परमेश्वर ने कहा, ‘समुद्र जीवित जलचरों के झुण्ड के झुण्ड उत्पन्न करें तथा पक्षी पृथ्वी पर आकाश के मेहराब में उड़ें।’ 21इस प्रकार परमेश्वर ने बड़े-बड़े जल-जन्तुओं और गतिमान जलचरों को, जो झुण्ड के झुण्ड समुद्र में तैरते हैं, उनकी जाति के अनुसार उत्पन्न किया। उसने सब पंखवाले पक्षियों को भी उनकी जाति के अनुसार उत्पन्न किया। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं। 22परमेश्वर ने उन्हें यह आशिष दी, ‘फलो-फूलो, और समुद्रों को भर दो। पक्षी भी पृथ्वी में असंख्य हो जाएँ।’ 23सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन बीत गया।
24परमेश्वर ने कहा, ‘पृथ्वी जीव-जन्तुओं को उनकी जाति के अनुसार उत्पन्न करे, अर्थात् प्रत्येक की जाति के अनुसार पालतू पशु, रेंगने वाले जन्तु, और धरती के वन पशु।’ ऐसा ही हुआ। 25परमेश्वर ने धरती के वन पशुओं, पालतू पशुओं और भूमि पर रेंगनेवाले जन्तुओं को उनकी जाति के अनुसार बनाया। परमेश्वर ने देखा कि वे अच्छे हैं।
26परमेश्वर ने कहा, ‘हम मनुष्य को अपने स्वरूप में, अपने सदृश बनाएँ, और समुद्र के जलचरों#1:26 शब्दश: ‘मछलियों’ , आकाश के पक्षियों, पालतू पशुओं, धरती पर रेंगने वाले जन्तुओं और समस्त पृथ्वी पर मनुष्य का अधिकार हो।’ 27अत: परमेश्वर ने अपने स्वरूप में मनुष्य को रचा। परमेश्वर के स्वरूप में उसने मनुष्य की सृष्टि की। परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया।#भज 8:6; 1 कुर 11:7; कुल 3:10; मत 19:4; प्रक 17:3 28परमेश्वर ने उन्हें यह आशिष दी, ‘फलो-फूलो और पृथ्वी को भर दो, और उसे अपने अधिकार में कर लो। समुद्र के जलचरों, आकाश के पक्षियों और भूमि के समस्त गतिमान जीव-जन्तुओं पर तुम्हारा अधिकार हो।’ 29परमेश्वर ने कहा, ‘देखो, मैंने समस्त पृथ्वी के प्रत्येक बीजधारी पौधे और फलदायक वृक्ष, जिनके फलों में बीज हैं, तुम्हें प्रदान किए हैं। वे तुमारा आहार हैं। 30धरती के समस्त पशुओं, आकाश के पक्षियों, धरती पर रेंगनेवाले जन्तुओं, प्रत्येक प्राणी को जिसमें जीवन का श्वास है, मैंने सब हरित पौधे आहार के लिए दिए हैं।’ ऐसा ही हुआ। 31परमेश्वर ने अपनी सृष्टि को देखा, और देखो, वह बहुत अच्छी थी। सन्ध्या हुई, फिर सबेरा हुआ। इस प्रकार छठा दिन बीत गया।#1 तिम 4:4
Attualmente Selezionati:
:
Evidenziazioni
Condividi
Copia
Vuoi avere le tue evidenziazioni salvate su tutti i tuoi dispositivi?Iscriviti o accedi
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.