उत्‍पत्ति 3

3
मनुष्‍य का पतन
1उन सब वन-प्राणियों में जिन्‍हें प्रभु परमेश्‍वर ने रचा था, सबसे अधिक धूर्त सांप था। उसने स्‍त्री से पूछा, ‘क्‍या सचमुच परमेश्‍वर ने कहा है कि तुम उद्यान के किसी भी पेड़ का फल न खाना?’#प्रक 12:9; यो 8:44; प्रज्ञ 2:24 2स्‍त्री ने सांप को उत्तर दिया, ‘हम उद्यान के पेड़ों का फल खा सकते हैं। 3परन्‍तु परमेश्‍वर ने कहा है, “उद्यान के मध्‍य में लगे पेड़ का फल न खाना, उसे स्‍पर्श भी नहीं करना, अन्‍यथा तुम मर जाओगे।” ’ 4सांप ने स्‍त्री से कहा, ‘तुम नहीं मरोगे।#2 कुर 11:3; 1 तिम 2:14 5परमेश्‍वर जानता है कि जब तुम उसे खाओगे तब तुम्‍हारी आंखें खुल जाएंगी। तुम भले और बुरे को जानकर परमेश्‍वर के समान बन जाओगे।’#यहेज 28:2 6स्‍त्री ने देखा कि आहार के लिए वृक्ष उत्तम है। वह आंखों को लुभाता है, और बुद्धिमान बनने के लिए वांछनीय है। अत: उसने उसका फल तोड़ा, और उस को खाया। उसने अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था, और उसने भी खाया।#रोम 5:12-19 7तब दोनों की आंखें खुल गईं, और उन्‍हें ज्ञात हुआ कि वे नग्‍न हैं। अत: उन्‍होंने अंजीर के पत्तों को सी कर लंगोट बनाए।
8जब संध्‍या समय हवा बहने लगी, तब उन्‍होंने उद्यान में प्रभु परमेश्‍वर की पग-ध्‍वनि सुनी। मनुष्‍य और उसकी पत्‍नी ने प्रभु परमेश्‍वर की उपस्‍थिति से स्‍वयं को उद्यान के वृक्षों में छिपा लिया। 9परन्‍तु प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को पुकारा, ‘तू कहाँ है?’ 10उसने उत्तर दिया, ‘मैंने उद्यान में तेरी पग-ध्‍वनि सुनी। मैं डर गया, क्‍योंकि मैं नंगा था। इसलिए मैंने स्‍वयं को छिपा लिया है।’ 11प्रभु परमेश्‍वर ने पूछा, ‘किसने तुझसे कहा कि तू नंगा है? क्‍या तूने उस पेड़ का फल खाया है, जिसे न खाने के लिए मैंने तुझे आज्ञा दी थी?’ 12मनुष्‍य ने उत्तर दिया, ‘जो स्‍त्री तूने मेरे साथ रहने के लिए दी है, उसने उस पेड़ का फल मुझे दिया, और मैंने उसे खा लिया।’ 13प्रभु परमेश्‍वर ने स्‍त्री से पूछा, ‘यह तूने क्‍या किया?’ स्‍त्री ने उत्तर दिया, ‘सांप ने मुझे बहका दिया और मैंने फल खा लिया।’ 14प्रभु परमेश्‍वर ने सांप से कहा,
‘तूने यह कार्य किया,
इसलिए तू समस्‍त पालतू पशुओं तथा सब
वन-पशुओं में शापित है!
तू पेट के बल चलेगा।
तू आजीवन धूल चाटता रहेगा।#यश 65:25
15मैं तेरे और स्‍त्री के बीच,
तेरे वंश और स्‍त्री के वंश के मध्‍य
शत्रुता उत्‍पन्न करूँगा।
वह तेरा सिर कुचलेगा,
और तू उसकी एड़ी डसेगा।’#प्रक 12:17; रोम 16:20
16प्रभु परमेश्‍वर ने स्‍त्री से कहा,
‘मैं तेरी प्रसव-पीड़ा को असहनीय
बनाऊंगा।
तू पीड़ा से ही बच्‍चों को जन्‍म देगी।
तेरी इच्‍छाएं पति के लिए होंगी।
वह तुझ पर शासन करेगा।’
17प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य से कहा,
‘तूने अपनी पत्‍नी की बात सुनी,
और उस पेड़ का फल खाया
जिसके विषय में मैंने आज्ञा दी थी
कि “उसका फल न खाना।”
अतएव तेरे कारण भूमि शापित हुई।
उसकी फसल खाने के लिए तुझे जीवनभर
कठोर परिश्रम करना पड़ेगा।#इब्र 6:8; रोम 8:20
18वह तेरे लिए कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी,
जब तू खेत की उपज खाएगा।
19तू तब तक अपने पसीने की रोटी खाएगा,
जब तक उस भूमि में न लौटे जिससे तू
बनाया गया था।
तू तो मिट्टी है,
और मिट्टी में ही मिल जाएगा।’#भज 90:3
20मनुष्‍य ने अपनी पत्‍नी का नाम हव्‍वा#3:20इब्रानी शब्‍द का अर्थ संभवत: ‘जीवनदायिनी’ है। रखा, क्‍योंकि वह समस्‍त जीवन-धारी प्राणियों की माता बनी। 21प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य और उसकी पत्‍नी को चमड़े के वस्‍त्र बनाकर पहिनाए।
22प्रभु परमेश्‍वर ने कहा, ‘देखो, मनुष्‍य भले और बुरे को जानकर हममें से एक के समान बन गया है। अब कहीं ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल तोड़ ले, और उसे खाकर अमर हो जाए।’#प्रक 22:14 23अत: प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य को अदन के उद्यान से भेज दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे, जिसमें से उसे बनाया गया था। 24उसने मनुष्‍य को निकाल दिया। उसने जीवन के वृक्ष की ओर जाने वाले मार्ग की रखवाली करने के लिए अदन के उद्यान की पूर्व दिशा में करूबों को#3:24 विशिष्‍ट प्रकार के स्‍वर्गदूत, जिनके पंख होते हैं; अथवा ‘पंखधारी प्राणी’ तथा चारों ओर घूमने वाली ज्‍वालामय तलवार को नियुक्‍त किया।#यहेज 28:16

Àwon tá yàn lọ́wọ́lọ́wọ́ báyìí:

उत्‍पत्ति 3: HINCLBSI

Ìsàmì-sí

Pín

Daako

None

Ṣé o fẹ́ fi àwọn ohun pàtàkì pamọ́ sórí gbogbo àwọn ẹ̀rọ rẹ? Wọlé pẹ̀lú àkántì tuntun tàbí wọlé pẹ̀lú àkántì tí tẹ́lẹ̀