काँह्भई अन्दरा ते, यनिके माहणुये रे मना ते, बुरे-बुरे बचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, बुरी नज़र, निंध्या, घमण्ड, कने मूर्खता निकलां इ। ये सब बुरियां गल्लां माहणुये रे अन्दरा तेई निकल़ां इयां कने माहणुये जो अपवित्र कराँ इयां।”