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2 कुरिन्थियों भूमिका

भूमिका
जब कुरिन्‍थुस नगर की कलीसिया के साथ संत पौलुस के संबंध कुछ तनावपूर्ण थे, तब उस कठिन समय में भी संत पौलुस ने अपना पत्र-व्‍यवहार जारी रखा। इस बीच में उन्‍हें स्‍वयं कुरिन्‍थुस चलकर आकस्‍मिक जांच करनी पड़ी (2 कुर 2:1)। लेकिन कलीसिया के कुछ अशान्‍त सदस्‍यों ने पौलुस के प्रति गंभीर आक्रमणकारी रुख अपनाया। पौलुस तुरन्‍त इफिसुस नगर को वापस गये। फिर भी वह अपने विरोधियों से मेल-मिलाप करने की हार्दिक इच्‍छा करते थे। पौलुस ने तीतुस को उनके पास भेजा और तब वह स्‍वयं उनकी ओर निकल पड़े। वह मकिदुनिया प्रदेश तक ही पहुंचे, कि तीतुस आकर यह सुखद समाचार देते हैं कि विरोधियों से मेल-मिलाप हो गया है! इस समाचार से सांत्‍वना पाकर पौलुस ने यह नया पत्र लिखा (2 कुर 7:6)।
प्रस्‍तुत पत्र के प्रथम भाग में संत पौलुस कुरिन्‍थुस नगर की कलीसिया के साथ अपने संबंधों की चर्चा करते हैं। वह इस भाग में उन कारणों पर प्रकाश डालते हैं कि उन्‍होंने क्‍यों विरोधियों को विरोध और अपमान का इतनी कठोरता से उत्तर दिया। इसी भाग में वह अपनी प्रसन्नता भी अभिव्‍यक्‍त करते हैं कि उनकी कठोरता का अच्‍छा परिणाम ही निकला, और विरोधियों ने पश्‍चात्ताप और मेल-मिलाप किया।
तत्‍पश्‍चात् संत पौलुस यहूदा प्रदेश के गरीब मसीहियों की सहायतार्थ उदार दान देने का अनुरोध कुरिन्‍थुस की कलीसिया से करते हैं।
अंतिम अध्‍यायों में प्रेरित पौलुस अपने “प्रेरितत्‍व” का बचाव करते हैं। कुरिन्‍थुस नगर की कलीसिया में कुछ ऐसे लोग आ गये थे, जिन्‍होंने स्‍वयं को “सच्‍चे” प्रेरित घोषित कर रखा था, और प्रेरित पौलुस को “झूठा”!
विषय-वस्‍तु की रूप-रेखा
भूमिका 1:1-11
पौलुस और कुरिन्‍थुस नगर की कलीसिया 1:12−7:16
यहूदा प्रदेश के गरीब मसीहियों के लिए दान 8:1−9:15
पौलुस का अपने प्रेरितत्‍व का बचाव 10:1−13:10
उपसंहार 13:11-14

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