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2 योहन 1

1
अभिवादन
1मैं, धर्मवृद्ध, यह पत्र परमेश्‍वर की उस कृपापात्र “महिला” और उसके बच्‍चों#1 अथवा, “(स्‍थानीय) कलीसिया, और उसके सदस्‍यों” के नाम लिख रहा हूँ, जिनसे मैं सच्‍चा प्रेम करता हूँ। और मैं ही नहीं, बल्‍कि वे सभी, जो सत्‍य को जानते हैं।#1 पत 5:1; 3 यो 1 2यह प्रेम उस सत्‍य पर आधारित है, जो हम में विद्यमान है और अनन्‍तकाल तक हमारे साथ रहेगा।
3यदि हम सत्‍य और प्रेम में बने रहेंगे, तो हमें पिता परमेश्‍वर और पिता के पुत्र येशु मसीह की ओर से कृपा, दया और शान्‍ति प्राप्‍त होगी।
प्रेम और सत्‍य
4मुझे यह देख कर बड़ा आनन्‍द हुआ कि आप के कुछ बच्‍चे#1:4 अथवा, “(स्‍थानीय) कलीसिया, और उसके सदस्‍य” सत्‍य के मार्ग पर चल रहे हैं, जैसा कि हमें पिता की ओर से आदेश मिला है। 5अब, हे महिला! मेरा आप से एक निवेदन है। मैं आप को कोई नया आदेश नहीं, बल्‍कि वही आदेश लिख रहा हूँ, जो हमें प्रारम्‍भ से मिला है कि हम एक दूसरे से प्रेम करें।#1 यो 2:7 6और प्रेम का अर्थ यह है कि हम परमेश्‍वर की आज्ञाओं के मार्ग पर चलते रहें। जो आदेश आप को प्रारम्‍भ से प्राप्‍त है, वह यह है कि आप को प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए।
7भ्रम में डालनेवाले बहुत-से उपदेशक संसार में फैल गये हैं। वे यह नहीं मानते कि येशु मसीह देहधारण कर आये थे। यह भ्रम में डालने वाले और मसीह-विरोधी का लक्षण है।#1 यो 2:18; 4:1-3 8आप लोग सावधान रहें जिससे आप अपने परिश्रम का फल न खो बैठें, बल्‍कि अपना पूरा पुरस्‍कार प्राप्‍त करें।#गल 4:11 9जो कोई मसीह की शिक्षा की सीमा के अन्‍दर नहीं रहता, बल्‍कि उस से बाहर चला जाता है, उसे परमेश्‍वर प्राप्‍त नहीं है। जो शिक्षा की सीमा के अन्‍दर रहता है, उसे पिता और पुत्र, दोनों प्राप्‍त हैं।#1 यो 2:23 10यदि कोई आप लोगों के पास आता है और यह शिक्षा साथ नहीं लाता, तो आप उसको अपने घर में न ठहराएं, और न ही उसका स्‍वागत करें;#2 थिस 3:6; 3 यो 8; 1 रा 13:17 11क्‍योंकि जो व्यक्‍ति उसका स्‍वागत करता है, वह उसके दुष्‍ट कर्मों में सहभागी होता है।
उपसंहार
12मुझे आप लोगों को बहुत कुछ लिखना है, किन्‍तु मैं यह कागज और स्‍याही से नहीं करना चाहता। मुझे आशा है कि मैं आपके यहाँ आ कर आमने-सामने बातचीत करूँगा, जिससे हमारा आनन्‍द परिपूर्ण हो।#3 यो 13
13आपकी निर्वाचित “बहिन” की सन्‍तान#13 अथवा, “(स्‍थानीय) कलीसिया, और उसके सदस्‍यों” आप लोगों को नमस्‍कार कहती है।

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