प्रेरितों 1
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प्रस्तावना
1हे थिओफिलुस! मैंने अपनी पहली पुस्तक में उन सब बातों का वर्णन किया, जिन्हें येशु आरंभ से उस दिन तक करते और सिखाते रहे#लू 1:3 2जिस दिन वह स्वर्ग में उठा लिये गये। उस से पहले येशु ने प्रेरितों को, जिन्हें उन्होंने स्वयं चुना था, पवित्र आत्मा द्वारा#1:2 अथवा, “जिन्हें उन्होंने पवित्र आत्मा द्वारा चुन लिया था।” आदेश दिया।#लू 6:13 3येशु ने अपने दु:ख-भोग के बाद उन प्रेरितों के संमुख बहुत-से प्रमाण प्रस्तुत किए कि वह जीवित हैं। वह चालीस दिन तक उन्हें दिखाई देते रहे और उनसे परमेश्वर के राज्य के विषय में बात करते रहे। 4येशु ने प्रेरितों के साथ भोजन करते समय#1:4 अथवा, “उनके साथ रहते समय” उन्हें आज्ञा दी कि वे यरूशलेम नगर नहीं छोड़ें, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। उन्होंने कहा, “मैंने तुम लोगों को उस प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया है।#यो 15:26; लू 24:49 5योहन ने तो जल से बपतिस्मा दिया था, परन्तु थोड़े ही दिनों बाद तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा दिया जायेगा।”#मत 3:11
येशु का स्वर्गारोहण
6जब प्रेरित येशु के साथ एकत्र थे, तब उन्होंने यह प्रश्न किया, “प्रभु! क्या आप इस समय इस्राएलियों का राज्य पुन: स्थापित करेंगे?”#लू 24:21; प्रे 3:21 7येशु ने उत्तर दिया, “पिता ने जो काल और निश्चित समय अपने निजी अधिकार में रखे हैं, उन्हें जानना तुम्हारा काम नहीं है।#मक 13:32 8किन्तु पवित्र आत्मा तुम पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम यरूशलेम में, समस्त यहूदा और सामरी प्रदेशों में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होगे।” 9इतना कहने के पश्चात् येशु उनके देखते-देखते ऊपर उठा लिये गये और एक बादल ने उन्हें शिष्यों की आँखों से ओझल कर दिया।#मक 16:19; लू 24:51; यो 6:62; 2 रा 2:11; दान 7:13
10येशु के आरोहण के समय प्रेरित आकाश की ओर एकटक देख रहे थे। तब उज्ज्वल वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास अचानक आ खड़े हुए और#लू 24:4 11बोले, “गलीली पुरुषो! आप खड़े-खड़े आकाश की ओर क्यों देख रहे हो? यही येशु, जो आप के बीच से स्वर्ग में उठा लिये गये हैं, उसी तरह फिर आयेंगे, जिस तरह आप लोगों ने उन्हें स्वर्ग की ओर जाते देखा है।”
प्रेरितों का समुदाय
12प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से यरूशलेम लौटे। यह पहाड़ यरूशलेम के निकट, एक विश्राम-दिवस की यात्रा#1:12 लगभग एक किलोमीटर। की दूरी पर है। 13वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर#1:13 अथवा, “ऊपरी मंजिल के कमरे में”। चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे : पतरस तथा योहन, याकूब तथा अन्द्रेयास, फिलिप तथा थोमस, बरतोलोमी तथा मत्ती, हलफई का पुत्र याकूब तथा “धर्मोत्साही”#1:13 अथवा “उग्रपंथी” शिमोन और याकूब का पुत्र यहूदा।#लू 6:13-16 14ये सब, कई स्त्रियों के साथ, येशु की माता मरियम तथा उनके भाइयों#1:14 अथवा, “भाई-बहिनों”। सहित, एक-चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे।#प्रे 2:1; यो 7:3-5; मत 13:55
मत्तियस की नियुिक्त
15उन्हीं दिनों पतरस विश्वासी भाई-बहिनों के बीच खड़े हुए, जो लगभग एक सौ बीस व्यक्तियों का समुदाय था। पतरस ने कहा, 16“ भाइयो! यह अनिवार्य था कि धर्मग्रन्थ की वह भविष्यवाणी पूरी हो जाये, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यूदस [यहूदा] के विषय में की थी। यूदस तो येशु को गिरफ्तार करने वालों का अगुआ बन गया।#भज 41:9 17वह हम लोगों में गिना जाता था और धर्मसेवा में हमारा संभागी ठहराया गया था।
18“उसने अपने अधर्म की कमाई से एक खेत खरीदा। वह उस में मुँह के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सारी अँतड़ियाँ बाहर निकल आयीं।#मत 27:3-10; प्रज्ञ 4:19 19यह बात यरूशलेम के सब निवासियों को मालूम हो गयी; इस कारण वह खेत उनकी भाषा में ‘हकेलदमा’ अर्थात् ‘रक्त का खेत’ कहलाता है।
20“भजन-संहिता में यह लेख भी है : ‘उसका निवास स्थान उजड़ जाए; उस में कोई भी निवास नहीं करे’ और ‘कोई दूसरा उसका पद ग्रहण करे।’#भज 69:25; 109:8 21इसलिए उचित है कि जितने समय तक प्रभु येशु हमारे बीच आते-जाते रहे,#यो 15:27 22अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण के दिन तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बने।” 23इस पर उन्होंने दो व्यक्तियों को प्रस्तुत किया−यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता था और जिसका उपनाम युस्तुस था, और मत्तियस को। 24तब उन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की, “प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि तूने इन दोनों में से किस को चुना है,#यो 2:24-25; 6:70 25ताकि वह उस धर्मसेवा तथा प्रेरित-पद का स्थान ग्रहण करे, जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्थान को चला गया।” 26उन्होंने उन दोनों के लिए चिट्ठी डाली। चिट्ठी मत्तियस के नाम निकली और वह ग्यारह प्रेरितों के साथ सम्मिलित कर लिया गया।#नीति 16:33
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