व्यवस्था-विवरण 30
30
पुन: संस्थापन और आशिष प्राप्त करने की शर्तें
1‘ओ इस्राएल! जब तेरे साथ ये सब बातें घटेंगी, तुझ पर ये आशिषें और अभिशाप पड़ेंगे, जिनको मैंने तेरे सम्मुख प्रस्तुत किया है, और जब उन राष्ट्रों में तेरे लोग अपने हृदय में विचार करेंगे, जहाँ तेरे प्रभु परमेश्वर ने उन्हें जाने को बाध्य किया है,#लेव 26:40 2जब तू और तेरी सन्तान अपने प्रभु परमेश्वर की ओर लौटेंगे, उसकी वाणी को सुनेंगे, उसकी आज्ञाओं का, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, अपने सम्पूर्ण हृदय से, अपने सम्पूर्ण प्राण से पालन करेंगे, 3तब तेरा प्रभु परमेश्वर तेरे भाग्य को बदल देगा। वह तुझ पर दया करेगा। जिन देशों में तेरे प्रभु परमेश्वर ने तेरे लोगों को तितर-बितर कर दिया है, वहाँ से वह उन्हें पुन: एक स्थान पर एकत्र करेगा।#यिर 29:14; यहेज 34:13; यो 11:52 4चाहे तेरे लोग िक्षतिज तक जाने को बाध्य किए गए होंगे, फिर भी तेरा प्रभु परमेश्वर उन्हें वहाँ से एकत्र करेगा। वहाँ से वह उन्हें वापस लाएगा।#नह 1:9; मत 24:31 5तेरा प्रभु परमेश्वर तेरे लोगों को उस देश में लाएगा जिस पर उनके पूर्वजों का अधिकार था, ताकि वे उस पर पुन: अधिकार करें। वह उनके पूर्वजों से अधिक उन्हें समृद्ध और असंख्य करेगा। 6प्रभु परमेश्वर तेरे लोगों का और उनके वंशजों का हृदय विनम्र बनाएगा#30:6 शब्दश:, ‘के हृदय का खतना करेगा’ कि वे अपने प्रभु परमेश्वर को सम्पूर्ण हृदय से, सम्पूर्ण प्राण से प्रेम कर सकें और जीवित रहें। 7तेरा प्रभु परमेश्वर इन अभिशापों को तेरे शत्रुओं और बैरियों पर डालेगा, जिन्होंने तुझे सताया था। 8तू पुन: अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनेगा और उसकी आज्ञाओं के अनुसार, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, कार्य करने लगेगा। 9तेरा प्रभु परमेश्वर तेरे समस्त काम-धन्धों, तेरी देह के फल, तेरे पालतू पशुओं के बच्चों और तेरी भूमि की उपज को अत्यन्त समृद्ध करेगा। 10यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी सुनेगा, जो आज्ञाएँ और संविधियाँ इस व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हुई हैं, उनका पालन करेगा, यदि तू सम्पूर्ण हृदय और प्राण से अपने प्रभु परमेश्वर की ओर लौट आएगा, तो जैसे तेरे पूर्वजों को समृद्ध करने में प्रभु हर्षित होता था, वैसे ही वह तुझे समृद्ध करने में हर्षित होगा।
11‘जिस आज्ञा-पालन का आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, वह न तेरी शक्ति से बाहर है, और न तेरी पहुँच से परे है। 12यह आज्ञा आकाश में नहीं है, कि तू कह सके, “कौन व्यक्ति हमारे लिए आकाश पर चढ़ेगा, और उसको उतारकर हमारे पास लाएगा, कि हम उसको सुन सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें?” #रोम 10:6 13यह आज्ञा समुद्र के उस पार भी नहीं है कि तू कह सके, “कौन व्यक्ति हमारे लिए समुद्र के उस पार जाएगा, और उसको हमारे पास लाएगा कि हम उसको सुन सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें?” 14इसके विपरीत प्रभु का वचन तेरे अत्यन्त निकट है। वह तेरे मुंह में, तेरे हृदय में है, ताकि तू उसके अनुसार कार्य कर सके।#मत 13:23; लू 8:21; 1 यो 2:7,27; प्रव 51:26
15‘देख, मैंने आज तेरे सम्मुख जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख दी है।#भज 1:6; यिर 21:8; रोम 6:23; प्रव 15:16-17 16यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करेगा, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूँ, यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करेगा और उसके मार्ग पर चलेगा, यदि तू उसकी आज्ञाओं, संविधियों और न्याय-सिद्धान्तों का पालन करेगा, तो तू जीवित रहेगा, और असंख्य होगा। प्रभु परमेश्वर तुझ को उस देश में, जिस पर अधिकार करने के लिए तू वहाँ जा रहा है, आशिष देगा। 17परन्तु यदि तेरा हृदय प्रभु की ओर से बदल जाएगा, तू उसकी वाणी नहीं सुनेगा, और दूसरे देवताओं की ओर खिंचकर उनकी वन्दना और पूजा करने लगेगा, 18तो मैं आज यह घोषित करता हूँ, तू निश्चय ही पूर्णत: मिट जाएगा। तू उस भूमि पर, जहाँ तू यर्दन नदी को पार कर अधिकार करने जा रहा है, अधिक दिन जीवित नहीं रहेगा। 19मैं आज आकाश और पृथ्वी को तेरे विरुद्ध साक्षी देने के लिए बुलाऊंगा कि मैंने तेरे सम्मुख जीवन और मृत्यु, आशिष और अभिशाप रख दिए हैं! इसलिए जीवन को चुन, जिससे तू और तेरे वंशज जीवित रहें, 20अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करें, उसकी वाणी सुनें और उससे चिपके रहें। यही तेरे जीवन का अभिप्राय है। इस पर ही तेरी दीर्घायु निर्भर है। तब तू उस भूमि पर निवास कर सकेगा, जिसकी शपथ प्रभु ने तेरे पूर्वजों से, अब्राहम, इसहाक और याकूब से खाई थी कि वह उनको प्रदान करेगा।’ #उत 12:7
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व्यवस्था-विवरण 30: HINCLBSI
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