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इफिसियों भूमिका

भूमिका
प्रस्‍तुत पत्र का मुख्‍य संदेश परमेश्‍वर की यह मंगलमय इच्‍छा है कि समय पूरा होने पर ऐसा प्रबन्‍ध हो कि स्‍वर्ग और पृथ्‍वी की समस्‍त वस्‍तुओं का मसीह में ऐक्‍य हो जाए (1:10)। इस पत्र के द्वारा लेखक पौलुस परमेश्‍वर के समस्‍त भक्‍तों से अनुरोध करते हैं कि वे परमेश्‍वर की योजना के अनुरूप आचरण करें, ताकि समस्‍त मानव जाति मसीह में एक हो सके। इस पत्र की विषय-वस्‍तु तथा “कुलुस्‍से नगर की कलीसिया के नाम पत्र” की विषय-वस्‍तु में बड़ी समानता है।
पत्र के प्रथम भाग में (अध्‍याय 1 से 3 तक) लेखक एकता के विषय को विकसित करता है कि किस प्रकार पिता परमेश्‍वर ने अपने निज लोगों के साथ अन्‍य लोगों को भी चुना, किस प्रकार उन्‍हें क्षमा प्राप्‍त हुई, और मानव-पुत्र येशु के द्वारा वे किस प्रकार अपने पापों से मुक्‍त होकर स्‍वतंत्र हो गये। इस विषय के अन्‍त में बताया गया कि किस प्रकार उन्‍हें पवित्र आत्‍मा के द्वारा परमेश्‍वर की महान आशिष का वचन दिया गया है।
द्वितीय भाग में (अध्‍याय 4 से 6 तक) लेखक अपने पाठकों से अनुरोध करता है कि वे इस प्रकार अपना जीवन व्‍यतीत करें, जिससे एक साथ मिल-जुल कर रहने से मसीह में उनकी एकता वास्‍तविक, सार्थक बन सके।
मसीह में विश्‍वासी भाई-बहिनों की एकता को स्‍पष्‍ट करने के लिए अनेक अलंकारों, रूपकों, उपमाओं का प्रयोग किया गया है, जैसे: कलीसिया “देह” के समान है और मसीह कलीसिया के “शीर्ष” [सिर] हैं; अथवा कलीसिया एक भवन के सदृश है और मसीह उसकी नींव का पत्‍थर हैं; अथवा कलीसिया एक पत्‍नी के समान है जिसे मसीह ने प्रेम से अपनाया है।
पत्र चरमोत्‍कर्ष पर तब पहुँचता है, जब लेखक मसीह में परमेश्‍वर की कृपा, अनुग्रह का वर्णन करता है। हर एक वस्‍तु मसीह के प्रेम, बलिदान, क्षमा, अनुग्रह तथा शुद्धता के प्रकाश में देखी गई है।
विषय-वस्‍तु की रूपरेखा
भूमिका 1:1-2
मसीह और कलीसिया 1:3—3:21
मसीह में नया जीवन 4:1—6:20
उपसंहार 6:21-24

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