इब्रानियों 2
2
मुक्ति-सन्देश का महत्व
1इसलिए हमें जो सन्देश मिला है, उस पर अच्छी तरह ध्यान देना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम मार्ग से भटक जायें। 2यदि स्वर्गदूतों द्वारा दिये हुए सन्देश का इतना महत्व था कि उसके प्रत्येक अतिक्रमण अथवा तिरस्कार को उचित दण्ड मिला,#प्रे 7:38,53; गल 3:19 3तो हम कैसे बच सकेंगे, यदि हम उस महान् मुक्ति का तिरस्कार करेंगे, जिसकी घोषणा पहले पहल प्रभु द्वारा हुई थी? जिन लोगों ने प्रभु को सुना, उन्होंने उनके सन्देश को हमारे लिए प्रमाणित किया।#इब्र 10:29; 12:25 4परमेश्वर ने भी चिह्नों, चमत्कारों, नाना प्रकार के सामर्थ्यपूर्ण कार्यों और अपनी इच्छा के अनुसार प्रदत्त पवित्र आत्मा के वरदानों द्वारा उनकी साक्षी का समर्थन किया।#मक 16:20; 1 कुर 12:4,11
मसीह मुक्तिदाता हैं
5परमेश्वर ने उस भावी संसार को, जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन नहीं किया है। 6धर्मग्रंथ के किसी स्थान पर कोई यह साक्षी देता है,
“मनुष्य क्या है, जो तू उसकी सुधि ले?
मनुष्य का पुत्र क्या है, जो तू उसकी देखभाल
करे?#भज 8:4-6
7तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ काल के लिए छोटा
बनाया
और उसे महिमा तथा सम्मान का मुकुट
पहनाया।
8तूने सब कुछ उसके पैरों तले अधीन कर
दिया।”
जब परमेश्वर ने सब कुछ उसके अधीन कर दिया, तो उसने कुछ भी ऐसा नहीं छोड़ा जो उसके अधीन न हो। वास्तव में हम अब तक यह नहीं देखते कि सब कुछ उसके अधीन है।#1 कुर 15:27 9परन्तु हम यह देखते हैं कि येशु कुछ काल के लिए स्वर्गदूतों से छोटे बनाए गए थे, किन्तु मृत्यु की यन्त्रणा सहने के कारण येशु को महिमा और सम्मान का मुकुट पहनाया गया है। इस प्रकार वह परमेश्वर की कृपा से प्रत्येक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद चख सके।#फिल 2:8-9
10परमेश्वर, जिसके कारण और जिसके द्वारा सब कुछ होता है, बहुत-से पुत्र-पुत्रियों#2:10 मूल में “पुत्रों”। को महिमा तक ले जाना चाहता था। इसलिए यह उचित था कि वह उन सब की मुक्ति के प्रवर्तक को, अर्थात् येशु को दु:खभोग द्वारा पूर्ण सिद्ध बनाए।#रोम 11:36 11जो पवित्र करता है और जो पवित्र किये जाते हैं, उन सब का पिता एक ही है; इसलिए येशु को उन्हें अपने भाई-बहिन#2:11 अथवा, “भाई”; मूल बहुवचन का द्विलिंगी अर्थ भी होता है। मानने में लज्जा नहीं होती#मक 3:34-35; मत 25:40; यो 20:17 12और वह कहते हैं, “मैं अपने भाई-बहिनों† के सामने तेरे नाम का बखान करूँगा। मैं सभा के बीच तेरा गुणगान करूँगा।”#भज 22:22 13फिर, “मैं तुझ-परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखूँगा”; और फिर, “मैं और वह सन्तति, जिसे परमेश्वर ने मुझे दिया है, हम प्रस्तुत हैं।”#यश 8:17-18 (यू. पाठ); 2 शम 22:3
14परिवार की समस्त सन्तति का रक्त-मांस एक ही होता है, इसलिए येशु ने भी हमारा रक्त-मांस धारण किया, जिससे वह अपनी मृत्यु द्वारा मृत्यु पर अधिकार रखने वाले शैतान को परास्त करें#2 तिम 1:10; यो 12:31; प्रक 12:10; 1 कुर 15:56 15और उन मनुष्यों को मुक्त कर दें, जो मृत्यु के भय के कारण जीवन-भर दासत्व में जकड़े रहे। 16निस्संदेह येशु स्वर्गदूतों की नहीं, बल्कि अब्राहम के वंशजों की सुधि लेते हैं।#यश 41:8-9 17इसलिए यह आवश्यक था कि वह सभी बातों में अपने भाई-बहिनों† के सदृश बन जायें, जिससे वह परमेश्वर-सम्बन्धी बातों में मनुष्यों के दयालु और विश्वस्त महापुरोहित के रूप में प्रजा के पापों का प्रायश्चित कर सकें।#भज 22:22; फिल 2:7 18येशु की परीक्षा ली गयी है और उन्होंने स्वयं दु:ख भोगा है इसलिए वह परीक्षा में पड़े हुए लोगों की सहायता कर सकते हैं।#इब्र 4:15
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इब्रानियों 2: HINCLBSI
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