यशायाह 66
66
प्रभु का न्याय और सियोन की समृद्धि
1प्रभु यों कहता है :
‘आकाश मेरा सिंहासन है और
पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है!
तब तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे?
वह स्थान कहाँ है, जहाँ मैं विश्राम कर
सकता हूं?’#मत 5:34; प्रे 7:49
2प्रभु कहता है :
‘इन सबको स्वयं मेरे हाथों ने बनाया है,
अत: ये सब वस्तुएँ मेरी ही हैं।
पर मैं उस मनुष्य पर ध्यान दूंगा,
जो विनम्र है जो आत्मा में पीड़ित है
जो मेरे वचन में श्रद्धा रखता है।
3‘जो आराधक बलि चढ़ाने के लिए
बैल का वध करता है,
वह मानो मनुष्य की हत्या करता है;
जो आराधक मेमने की बलि करता है
वह मानो कुत्ते की गरदन तोड़ता है;
जो आराधक अन्न-बलि चढ़ाता है,
वह मानो सूअर का रक्त अर्पित करता है;
जो आराधक ‘स्मृति-बलि’ में लोबान जलाता है
वह मानो मूर्ति की पूजा करता है।#66:3 अथवा, “कुछ आराधक बलि चढ़ाने के लिए बैल का वध करते हैं, किन्तु वे मनुष्य की हत्या भी करते हैं! कुछ अधिक....., किन्तु.....” (इसी प्रकार शेष वाक्यों में)।
ऐसे आराधक
आराधना की अपनी ही पद्धति चुनते हैं,
उनके प्राण ऐसी ही घृणित आराधना से प्रसन्न
होते हैं।
4इसलिए मैं भी उनके लिए विपत्ति चुनूंगा;
जिन बातों से वे डरते हैं;
उन्हीं को मैं उन पर लाऊंगा।
मैंने उनको पुकारा था,
पर उन्होंने मुझे उत्तर नहीं दिया;
जब मैं उनसे बोला, तो उन्होंने नहीं सुना :
किन्तु उन्होंने वही किया जो मेरी दृष्टि में बुरा था;
उन्होंने उसको पसन्द किया, जो मुझे नापसन्द था।’
5प्रभु के वचन से डरनेवाले लोगो,
प्रभु का यह वचन सुनो :
‘तुम्हारे जाति-भाई जो तुमसे घृणा करते हैं,
जो तुम्हें मेरे नाम के कारण
सभागृह से बहिष्कृत करते हैं,
और यह कहते हैं : “प्रभु की महिमा हो,
कि हम भी तुम्हारे आनन्द को देखें।”
तुम्हारे ये जाति-भाई ही लज्जित होंगे।
6‘सुनो, नगर में कोलाहल हो रहा है,
मन्दिर में आवाज सुनाई दे रही है।
यह प्रभु की आवाज है,
वह अपने शत्रुओं को
उनके दुष्कर्मों का फल दे रहा है।#प्रक 16:1,17
7‘प्रसव-पीड़ा के पूर्व ही उसने शिशु को जन्म
दिया;
उसे प्रसव-पीड़ा नहीं हुई
और उससे एक बालक उत्पन्न हुआ।#प्रक 12:5
8ऐसा चमत्कार क्या कभी किसी ने सुना?
क्या किसी ने अपनी आंखों से
ऐसा चमत्कार देखा?
क्या कोई देश एक दिन में उत्पन्न हो सकता है?
क्या कोई राष्ट्र एक क्षण में जन्म ले सकता है?
सियोन को जब प्रसव-पीड़ा हुई थी,
उस क्षण ही उसने
अपनी संतान को जन्म दिया था।’
9प्रभु कहता है, ‘क्या मैं जन्म का समय
हो जाने पर भी जन्म न होने दूं?
मैं ही जन्मदाता हूं :
अत: क्या मैं गर्भ का द्वार ही बन्द कर दूं?’
यह तुम्हारे परमेश्वर की वाणी है।
10‘ओ यरूशलेम के प्रेमियो!
यरूशलेम के साथ हर्षित हो,
उसके साथ आनन्द मनाओ।
ओ यरूशलेम के लिए शोक करनेवालो!
अब तुम उसके हर्ष में सम्मिलित हो।
11ओ यरूशलेम के पुत्र-पुत्रियो!
तुम अपनी मां के सांत्वना देनेवाले
स्तनों का पान कर तृप्त होगे!
तुम उसके महिमामय स्तनों का
अपार आनन्द के साथ पान करोगे।
12प्रभु यों कहता है :
‘मैं यरूशलेम की समृद्धि को
नदी की बाढ़ के सदृश बनाऊंगा;
राष्ट्रों की सम्पत्ति को
उमड़ती हुई जल-धारा के समान
उसकी ओर प्रवाहित करूंगा।
ओ यरूशलेम के पुत्र-पुत्रियो!
तुम अपनी मां का स्तन-पान करोगे!
वह तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाएगी।
तुम उसके घुटनों पर कूदोगे।
13जैसे मां अपने बच्चों को सान्त्वना देती है,
वैसे ही मैं तुम्हें सान्त्वना दूंगा,
तुम यरूशलेम में सान्त्वना प्राप्त करोगे।
14‘तुम अपनी मां-यरूशलेम के दर्शन करोगे,
और तुम्हारा हृदय हर्ष से भर जाएगा;
तुम्हारी हड्डियाँ हरी घास की तरह लहलहा
उठेंगी।
तब तुम्हें ज्ञात होगा कि प्रभु का वरदहस्त #66:14 अथवा, ‘कृपापूर्ण हाथ’, वरदान देने अथवा रक्षा करने वाला हाथ।
अपने सेवकों पर रहता है,
पर उसका क्रोध
अपने शत्रुओं के प्रति भड़क उठता है।’
15देखो, प्रभु अग्नि में आएगा,
और उसके रथ बवंडर के सदृश वेगवान
होंगे।
वह अपनी क्रोधाग्नि प्रकट करेगा,
और अग्नि-ज्वाला के साथ अपना प्रकोप!
16प्रभु हर एक प्राणी का अग्नि के माध्यम से
और अपनी तलवार के द्वारा न्याय करेगा;
वह अनेक लोगों का वध करेगा।
17‘जो लोग पूजा-उद्यानों की ओर पंिक्त में जाने के लिए स्वयं को पवित्र और शुद्ध करते हैं, और वहां सूअर का मांस, अन्य घृणित वस्तुएँ तथा चूहे खाते हैं, उन सब का एक साथ अन्त हो जाएगा।’ प्रभु की यह वाणी है।
18‘मैं उनके काम और उनके विचार जानता हूं। मैं सब राष्ट्रों और सब भाषाओं की कौमों को एकत्र करने के लिए आ रहा हूं। वे यरूशलेम में आएंगे और मेरे वैभव का दर्शन करेंगे। 19मैं उनके मध्य एक चिह्न स्थापित करूंगा। मैं उनमें से अपने बचे हुए लोगों को अनेक राष्ट्रों में तथा उन सुदूर राष्ट्रों में भेजूंगा जिन्होंने न मेरा नाम सुना है, और न मेरी महिमा के दर्शन किए हैं : तर्शीश, धनुर्धारी पूत और लूद, तूबल और यवन; उन राष्ट्रों में वे मेरी महिमा प्रकट करेंगे।’ 20प्रभु की यह वाणी है : ‘जैसे इस्राएली आराधक अन्नबलि को शुद्ध पात्र में रखकर प्रभु-गृह में लाते हैं, वैसे ही वे सभी राष्ट्रों में से तुम्हारे जाति-भाई-बन्धुओं को घोड़ों, रथों, पालकियों, खच्चरों और ऊंटनियों पर बैठा कर पवित्र पर्वत यरूशलेम में लाएंगे, और मुझे भेंट के रूप में अर्पित करेंगे।
21‘मैं-प्रभु यह कहता हूं : मैं उन में से कुछ
व्यक्तियों को पुरोहित और उपपुरोहित पद पर
नियुक्त करूंगा।’
22प्रभु यह कहता है;
‘जिस प्रकार नया आकाश और नई पृथ्वी,
जो मैं बनानेवाला हूं,
मेरे सम्मुख स्थिर रहेंगे,
उसी प्रकार तुम्हारे वंशज और तुम्हारा नाम
स्थिर रहेंगे।#2 पत 3:13; प्रक 21:1
23मैं-प्रभु यह कहता हूं;
नए चांद के दिन से
दूसरे नए चांद के दिन तक,
एक विश्राम-दिवस से
दूसरे विश्राम-दिवस तक
समस्त प्राणी मेरी आराधना के लिए
मेरे सम्मुख उपस्थित होंगे।
24‘वे नगर से बाहर निकलेंगे, और उन लोगों के शव देखेंगे जिन्होंने मुझ से विद्रोह किया था। कीड़े उन के शव को निरन्तर खाते रहेंगे, उनको भस्म करने वाली अग्नि कभी न बुझेगी। सब प्राणियों को उन से घृणा होगी।’#मक 9:48; यहूदी 16:17
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यशायाह 66: HINCLBSI
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