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लूकस 11

11
आदर्श प्रार्थना
1एक समय येशु किसी स्‍थान पर प्रार्थना कर रहे थे। प्रार्थना समाप्‍त होने पर उनके एक शिष्‍य ने उनसे कहा, “प्रभु! हमें प्रार्थना करना सिखाइए, जैसे योहन ने अपने शिष्‍यों को सिखाया है।”#लू 5:33 2येशु ने शिष्‍यों से कहा, “जब तुम प्रार्थना करते हो, तब यह कहो :
पिता! तेरा नाम पवित्र माना जाए।
तेरा राज्‍य आए।#मत 6:9-13
3हमें प्रतिदिन हमारा दैनिक भोजन#11:3 अथवा, ‘दिन भर की रोटी’, अथवा ‘आवश्‍यक भोजन’, ‘आनेवाले दिन का भोजन’ दिया कर।
4हमारे पाप क्षमा कर,
क्‍योंकि हम भी अपने सब अपराधियों
को क्षमा करते हैं
और हमें परीक्षा में न डाल।”
आग्रहपूर्ण प्रार्थना
5येशु ने उन से यह भी कहा, “मान लो कि तुम में कोई आधी रात को अपने किसी मित्र के पास जा कर कहे, ‘मित्र, मुझे तीन रोटियाँ उधार दो, 6क्‍योंकि मेरा एक मित्र सफर में मेरे यहाँ पहुँचा है और उसे खिलाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है।’ 7और वह घर के भीतर से उत्तर दे, ‘मुझे तंग न करो। अब तो द्वार बन्‍द हो चुका है। मेरे बाल-बच्‍चे मेरे साथ बिस्‍तर पर हैं। मैं उठ कर तुम को कुछ नहीं दे सकता।’#मत 26:10 8मैं तुम से कहता हूँ−वह मित्रता के नाते भले ही उठ कर उसे कुछ न दे, किन्‍तु उसके लज्‍जा छोड़कर माँगने के कारण वह उठेगा और उसकी आवश्‍यकता पूरी करेगा।#लू 18:5
प्रार्थना का प्रभाव
9“मैं तुम से कहता हूँ−माँगो तो तुम्‍हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ तो तुम्‍हारे लिए खोला जाएगा।#मत 7:7-11 10क्‍योंकि जो माँगता है, उसे मिलता है; जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए द्वार खोला जाता है।
11“यदि तुम्‍हारा पुत्र तुम से मछली माँगे, तो तुम में ऐसा कौन पिता है जो मछली के बदले उसे साँप देगा? 12अथवा अण्‍डा माँगे, तो उसे बिच्‍छू देगा? 13बुरे होने पर भी यदि तुम अपने बच्‍चों को सहज ही अच्‍छी वस्‍तुएँ देते हो, तो स्‍वर्गिक पिता अपने माँगने वालों को पवित्र आत्‍मा क्‍यों नहीं देगा?”
पवित्र आत्‍मा अथवा शैतान की आत्‍मा
14येशु एक भूत को जो गूँगा था, निकाल रहे थे। भूत के निकलते ही गूँगा मनुष्‍य बोलने लगा और लोग अचम्‍भे में पड़ गये।#मत 12:22-30,43-45; मक 3:22-27 15परन्‍तु उन में से कुछ ने कहा, “यह भूतों के नायक बअलजबूल की सहायता से भूतों को निकालता है।”
16कुछ लोगों ने येशु की परीक्षा लेने के लिए उन से स्‍वर्ग का कोई चिह्‍न माँगा।#मक 8:11 17परंतु येशु जानते थे कि वे क्‍या सोच रहे हैं। अत: येशु ने उन से कहा, “जिस राज्‍य में फूट पड़ जाती है, वह उजड़ जाता है और घर के घर ढह जाते हैं। 18यदि शैतान के यहाँ फूट पड़ गई हो, तो उसका राज्‍य कैसे टिका रहेगा? क्‍योंकि तुम कहते हो कि मैं बअलजबूल की सहायता से भूतों को निकालता हूँ। 19यदि मैं बअलजबूल की सहायता से भूतों को निकालता हूँ, तो तुम्‍हारे पुत्र किसकी सहायता से उन्‍हें निकालते हैं? इसलिए वे तुम लोगों का न्‍याय करेंगे। 20परन्‍तु यदि मैं परमेश्‍वर की अंगुली से भूतों को निकालता हूँ, तो निस्‍संदेह परमेश्‍वर का राज्‍य तुम्‍हारे पास आ पहुँचा है।#नि 8:19
21“जब बलवान मनुष्‍य हथियार बाँध कर अपने भवन पर पहरा देता है, तो उसकी धन-सम्‍पत्ति सुरक्षित रहती है। 22किन्‍तु यदि कोई उस से भी अधिक बलवान उस पर टूट पड़े और उसे हरा दे, तो जिन हथियारों पर उसे भरोसा था, वह उन्‍हें उससे छीन लेता और उसकी लूटी धन-सम्‍पत्ति को बाँट देता है।#कुल 2:15
23“जो मेरे साथ नहीं है, वह मेरे विरोध में है और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है।#लू 9:50
अशुद्ध आत्‍मा का आक्रमण
24“जब अशुद्ध आत्‍मा किसी मनुष्‍य से निकल जाती है, तो वह विश्राम की खोज में सूखे स्‍थानों में भटकती फिरती है। विश्राम न मिलने पर वह कहती है, ‘जहाँ से मैं आई हूँ, वहीं अपने घर वापस जाऊंगी’। 25लौटने पर वह उस घर को झाड़ा-बुहारा और सजा-सजाया हुआ पाती है। 26तब वह जाकर अपने से भी अधिक बुरी सात आत्‍माओं को ले आती है और वे उस घर में प्रवेश कर वहीं बस जाती हैं। इस प्रकार उस मनुष्‍य की यह पिछली दशा पहली से भी अधिक बुरी हो जाती है।”#यो 5:14
सच्‍चा सुख
27येशु ये बातें कह ही रहे थे कि भीड़ में से कोई स्‍त्री उन्‍हें सम्‍बोधित करते हुए ऊंचे स्‍वर से बोल उठी, “धन्‍य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्‍य हैं वे स्‍तन जिनका आपने पान किया है!”#लू 1:28,42,48 28परन्‍तु येशु ने कहा, “किन्‍तु वे कहीं अधिक धन्‍य हैं, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं।”#लू 8:15,21
नबी योना का चिह्‍न
29जब और भीड़ एकत्र होने लगी तब येशु कहने लगे,#मत 12:38-42 “यह दुष्‍ट पीढ़ी है। यह चिह्‍न माँगती है, परन्‍तु नबी योना के चिह्‍न को छोड़ इसे और कोई चिह्‍न नहीं दिया जाएगा।#1 कुर 1:22 30जिस प्रकार योना नीनवे महानगर के निवासियों के लिए एक चिह्‍न बन गया था, उसी प्रकार मानव-पुत्र भी इस पीढ़ी के लिए चिह्‍न बन जाएगा। 31न्‍याय के दिन दक्षिण देश की रानी इस पीढ़ी के लोगों के साथ खड़ी होगी और इन्‍हें दोषी ठहराएगी, क्‍योंकि वह सुलेमान की बुद्धि से परिपूर्ण बातें#11:31 अथवा, ‘प्रज्ञ’ सुनने के लिए पृथ्‍वी के छोर से आयी थी, और देखो−यहाँ वह है, जो सुलेमान से भी महान् है!#1 रा 10:1 32न्‍याय के दिन नीनवे के लोग इस पीढ़ी के साथ खड़े होंगे और इसे दोषी ठहराएँगे, क्‍योंकि उन्‍होंने योना का संदेश सुन कर पश्‍चात्ताप किया था, और देखो−यहाँ वह है, जो योना से भी बड़ा है! #योना 3:5
दीपक का दृष्‍टान्‍त
33“दीपक जला कर कोई उसे तहखाने में या पैमाने के नीचे नहीं, बल्‍कि दीवट पर रखता है, जिससे भीतर आने वालों को उसका प्रकाश मिले।#लू 8:16; मत 5:15 34तुम्‍हारी आँख तुम्‍हारे शरीर का दीपक है। यदि तुम्‍हारी आँखें अच्‍छी हैं, तो तुम्‍हारा सारा शरीर भी प्रकाशमान है। किन्‍तु यदि वे खराब हो जाएँ, तो तुम्‍हारा शरीर भी अंधकारमय है।#मत 6:22-23 35इसलिए इस बात का ध्‍यान रखो कि जो ज्‍योति तुम में है, वह अन्‍धकार न हो जाए। 36यदि तुम्‍हारा सारा शरीर प्रकाश में है और उसका कोई अंश अन्‍धकार में नहीं, तो वह वैसा ही सर्वथा प्रकाशमान होगा, जैसा जब दीपक अपनी किरणों से तुम को आलोकित कर देता है।”
फरीसियों और शास्‍त्रियों की भत्‍र्सना
37येशु बोल ही रहे थे कि किसी फरीसी ने उन से यह निवेदन किया, “आप मेरे साथ भोजन करें।” येशु भीतर जा कर भोजन करने बैठे।#लू 7:36; 14:1 38फरीसी को यह देख कर आश्‍चर्य हुआ कि येशु ने भोजन से पहले हाथ-पैर नहीं धोये।#मत 15:2 39प्रभु ने उससे कहा, “तुम फरीसी लोग कटोरों और थालियों को बाहर से तो माँजते हो, परन्‍तु तुम्‍हारे भीतर लालच और दुष्‍टता भरी है।#मत 23:1-36 40मूर्खो! जिसने बाहरी भाग बनाया, क्‍या उसी ने भीतरी भाग नहीं बनाया? 41जो भीतर है, उसमें से दान कर दो, और देखो, सब कुछ तुम्‍हारे लिए शुद्ध हो जाएगा।
42“फरीसियो! धिक्‍कार है तुम लोगों को! क्‍योंकि तुम पुदीने, सदाब और हर प्रकार के साग का दशमांश तो देते हो; लेकिन न्‍याय और परमेश्‍वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो। तुम्‍हारे लिए उचित तो यह था कि तुम इन्‍हें भी करते रहते और उनकी भी उपेक्षा नहीं करते। 43फरीसियो! धिक्‍कार है तुम लोगों को! क्‍योंकि तुम सभागृहों में प्रथम आसन और बाजारों में प्रणाम चाहते हो।#लू 20:46 44धिक्‍कार है तुम लोगों को! क्‍योंकि तुम उन कबरों के समान हो, जो दीख नहीं पड़तीं और जिन पर लोग अनजाने ही चलते-फिरते हैं।”
45इस पर व्‍यवस्‍था के एक आचार्य ने येशु से कहा, “गुरुवर! आप ऐसी बातें कह कर हमारा भी अपमान करते हैं।” 46येशु ने उत्तर दिया, “व्‍यवस्‍था के आचार्यो! धिक्‍कार है तुम लोगो को भी! क्‍योंकि तुम मनुष्‍यों पर ऐसे बोझ लादते हो जिन्‍हें ढोना कठिन है, परन्‍तु स्‍वयं उन्‍हें उठाने के लिए अपनी एक उँगली भी नहीं लगाते। 47धिक्‍कार है तुम लोगों को! क्‍योंकि तुम नबियों के लिए मकबरे बनवाते हो, जब कि तुम्‍हारे पूर्वजों ने उनकी हत्‍या की। 48इस प्रकार तुम अपने पूर्वजों के कर्मों की गवाही देते हो और उन कर्मों से सहमत भी हो, क्‍योंकि उन्‍होंने तो उनकी हत्‍या की और तुम उनके मकबरे बनवाते हो।
49“इसलिए परमेश्‍वर की प्रज्ञ#11:49 अथवा, ‘बुद्धि’ ने यह कहा, ‘मैं उनके पास नबियों और प्रेरितों को भेजूँगी; वे उन में से कितनों की हत्‍या करेंगे और कितनों पर अत्‍याचार करेंगे। 50-51इसलिए संसार के आरम्‍भ से जितने नबियों का रक्‍त बहाया गया है−हाबिल के रक्‍त से ले कर जकर्याह के रक्‍त तक, जो वेदी और मन्‍दिरगर्भ के बीच मारा गया था−उसका हिसाब इस पीढ़ी को चुकाना पड़ेगा। मैं तुम से कहता हूँ, उसका हिसाब इसी पीढ़ी को चुकाना पड़ेगा।#उत 4:8; 2 इत 24:20-21
52“व्‍यवस्‍था के आचार्यो, धिक्‍कार है तुम लोगों को! क्‍योंकि तुम ने ज्ञान की कुंजी ली तो है। पर तुम ने स्‍वयं प्रवेश नहीं किया, और जो प्रवेश कर रहे थे, उन्‍हें रोक दिया।”
53जब येशु उस घर से निकले, तब शास्‍त्री और फरीसी बुरी तरह उनके पीछे पड़ गये और बहुत-सी बातों के सम्‍बन्‍ध में उन से प्रश्‍न करने लगे। 54वे इस ताक में थे कि येशु के मुँह से निकली कोई बात पकड़ें।#लू 20:20

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