मत्ती 5
5
पहाड़ी-उपदेश#लू 6:20-49
1येशु विशाल जनसमूह को देखकर पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ बैठ गये। उनके शिष्य उनके पास आए#लू 6:17; मक 3:13; यो 6:3 2और वह यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगे :
धन्य-वचन
3“धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं;
क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।#यश 57:15; भज 34:19
4धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं;
क्योंकि उन्हें सान्त्वना मिलेगी।#भज 126:5; यश 61:3; प्रक 7:17
5धन्य हैं वे जो नम्र हैं;
क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।#भज 37:11; मत 11:29; तीत 3:2
6धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और
प्यासे हैं;
क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे।#यश 55:1-2; प्रव 24:21
7धन्य हैं वे, जो दयालु हैं;
क्योंकि उन पर दया की जाएगी।#याक 2:13
8धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है;
क्योंकि वे परमेश्वर के दर्शन करेंगे।#भज 24:4; 51:10; 73:1; 1 यो 3:2-3
9धन्य हैं वे, जो मेल-मिलाप कराते हैं;
क्योंकि वे परमेश्वर की संतान कहलाएँगे।#इब्र 12:14
10धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार
सहते हैं;
क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।#1 पत 3:14; 4:13; याक 1:2,12
11“धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।#1 पत 4:14 12खुश हो और आनन्द मनाओ; क्योंकि स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया था।#याक 5:10; इब्र 11:33-38; 2 इत 36:16; प्रव 2:8
पृथ्वी का नमक
13“तुम पृथ्वी का नमक हो। यदि नमक अपना गुण खो दे, तो वह किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाता है।#मक 9:50; लू 14:34-35; अय्य 6:6
संसार की ज्योति
14“तुम संसार की ज्योति हो। पहाड़ पर बसा हुआ नगर छिप नहीं सकता। 15लोग दीपक जला कर पैमाने के नीचे नहीं, बल्कि दीवट पर रखते हैं, जहाँ से वह घर के सब लोगों को प्रकाश देता है।#मक 4:21 16इसी प्रकार तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिस से वह तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें।#इफ 5:8-9; 1 पत 2:12
व्यवस्था-पालन
17“यह न समझो कि मैं व्यवस्था अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।#मत 3:15; रोम 3:31; 10:4 18मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ − आकाश और पृथ्वी भले ही टल जाएँ, किन्तु व्यवस्था की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी पूरा हुए बिना नहीं टलेगा#लू 16:17; 21:33 ।#5:18 अथवा, ‘जब तक आकाश और पृथ्वी न टल जाएँ और सब कुछ पूरा न हो जाए, तब तक व्यवस्था की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी नहीं टल सकता।’ 19इसलिए जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में से एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में सबसे छोटा समझा जाएगा।#याक 2:10; 1 कुर 15:9 किन्तु जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जाएगा। 20मैं तुम लोगों से कहता हूँ, यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं कर सकोगे।
क्रोध और हत्या
21“तुम लोगों ने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया था : ‘हत्या मत करना।’ यदि कोई हत्या करे, तो वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जाएगा।#नि 20:13; 21:12; लेव 24:17; व्य 17:8 22परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, जो कोई अपने भाई अथवा बहिन#5:22 मूल में, ‘भाई’। पर क्रोध करता है, वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जाएगा। यदि वह अपने भाई अथवा बहिन से अपशब्द कहे, तो वह धर्म-महासभा में दण्ड के योग्य ठहराया जाएगा और जो कोई अपने भाई अथवा बहिन से कहेगा, ‘अरे मूर्ख’, तो वह नरक की आग के योग्य ठहराया जाएगा।#1 यो 3:15
भाई-बहिन से मेल-मिलाप
23“जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँ याद आए कि मेरे भाई अथवा बहिन को मुझ से कोई शिकायत है,#मक 11:25 24तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़कर पहले अपने भाई-बहिन से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।
25“कचहरी जाते समय रास्ते में ही अपने मुद्दई से समझौता कर लो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाधीश के हवाले कर दे, न्यायाधीश तुम्हें सिपाही के हवाले कर दे और सिपाही तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।#मत 6:14-15; 18:35; लू 12:58-59 26मैं तुम से सच कहता हूँ, जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक तुम वहाँ से छूटने नहीं पाओगे।
दुराचार
27“तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया था : ‘व्यभिचार मत करना’।#नि 20:14 28परन्तु मैं तुम से कहता हूँ : जो कोई बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका है।#अय्य 31:1; 2 पत 2:14
29“यदि तुम्हारी दाहिनी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाए, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।#मत 18:8-9; मक 9:42,47; कुल 3:5 30और यदि तुम्हारा दाहिना हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाए, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न जाए।
विवाह का बन्धन
31“यह भी कहा गया था : ‘जो अपनी पत्नी का परित्याग करता है, वह उसे त्याग-पत्र दे दे।’#मत 19:3-9; व्य 24:1 32परन्तु मैं तुम से कहता हूँ : व्यभिचार#5:32 अथवा, ‘अवैध संबंध’ को छोड़ किसी अन्य कारण से जो कोई अपनी पत्नी का परित्याग करता है, वह उस से व्यभिचार कराता है और जो परित्यक्ता से विवाह करता है, वह व्यभिचार करता है।#लू 16:18; 1 कुर 7:10-11
सौगंध और सच्चाई
33“तुम लोगों ने यह भी सुना है कि पूर्वजों से कहा गया था : ‘झूठी शपथ मत खाना। परन्तु प्रभु के सामने खायी हुई शपथ को पूरा करना।’#नि 20:7; लेव 19:12; गण 30:2 34परन्तु मैं तुम से कहता हूँ : शपथ कभी नहीं खाना − न स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है;#मत 23:16-22; यश 66:1; प्रे 7:49 35न पृथ्वी की, क्योंकि वह उसका पायदान है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह राजाधिराज का नगर है।#भज 48:2 36और न अपने सिर की शपथ खाना, क्योंकि तुम इसका एक भी बाल सफेद या काला नहीं कर सकते। 37तुम्हारी बात इतनी हो − हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। जो इस से अधिक है, वह बुराई से उत्पन्न हुआ है।#2 कुर 1:17; याक 5:12
प्रतिकार न करना
38“तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया था : ‘आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत।’#लेव 24:19-20 39परन्तु मैं तुम से कहता हूँ − दुष्ट का सामना नहीं करो।#यो 18:22-23; लेव 19:18 यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो।#लू 6:27-36 40जो मुकदमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहता है, उसे अपनी चादर भी ले लेने दो।#1 कुर 6:7 41और यदि कोई तुम्हें एक किलोमीटर#5:41 मूल में, ‘एक हजार कदम’ बेगार में ले जाए, तो तुम उसके साथ दो किलोमीटर चले जाओ। 42जो तुम से माँगता है, उसे दे दो और जो तुम से उधार लेना चाहता है, उससे मुँह न मोड़ो।
शत्रुओं से प्रेम
43“तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया था : ‘अपने पड़ोसी से प्रेम करना और अपने बैरी से बैर।’#लेव 19:18; प्रव 12:4-7 44परन्तु मैं तुम से कहता हूँ − अपने शत्रुओं से प्रेम करो और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।#नि 23:4-5; लू 23:34; प्रे 7:59-60; रोम 12:14-20 45इससे तुम अपने स्वर्गिक पिता की सन्तान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।#इफ 5:1; प्रव 4:10 46यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो तुम्हें क्या पुरस्कार मिलेगा? क्या चुंगी-अधिकारी भी ऐसा नहीं करते? 47और यदि तुम अपने भाइयों और बहिनों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बड़ा काम करते हो? क्या गैर-यहूदी भी ऐसा नहीं करते? 48इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।#लेव 19:2
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