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मारकुस 7

7
परम्‍परा-पालन का प्रश्‍न
1जब फरीसी और यरूशलेम से आए हुए कुछ शास्‍त्री येशु के पास एकत्र हुए,#मत 15:1-20 2तो उन्‍होंने देखा कि येशु के कुछ शिष्‍य अशुद्ध अर्थात् बिना धोये हाथों से भोजन कर रहे हैं।#लू 11:38 3क्‍योंकि फरीसी और सामान्‍य यहूदी धर्मवृद्धों की प्राचीन परम्‍परा का पालन करते हैं और विधि के अनुसार बिना हाथ#7:3 मूल यूनानी भाषा में ‘पुग्‍मे’ शब्‍द है। इस शब्‍द के अनेक प्रस्‍तावित अर्थ विचारणीय हैं जैसे कुहनी, कलाई, मुट्ठी, हथेली के बीच का भाग धोये भोजन नहीं करते। 4बाजार से लौट कर वे बिना स्‍नान किये#7:4 पाठान्‍तर, ‘पानी छिड़के बिना’ भोजन नहीं करते और अन्‍य बहुत-सी परम्‍परागत प्रथाओं का पालन करते हैं−जैसे प्‍यालों, सुराहियों, काँसे के बरतनों और खाट-खटियाओं का शुद्धीकरण। 5इसलिए फरीसियों और शास्‍त्रियों ने येशु से पूछा, “आपके शिष्‍य धर्मवृद्धों की परम्‍परा का पालन क्‍यों नहीं करते? वे क्‍यों अशुद्ध हाथों से भोजन करते हैं?” 6येशु ने उत्तर दिया, “नबी यशायाह ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही नबूवत की है। जैसा कि धर्मग्रन्‍थ में लिखा है :
‘ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं,
परन्‍तु इनका हृदय मुझ से दूर है।#यश 29:13 (यू. पाठ)
7ये व्‍यर्थ ही मेरी उपासना करते हैं,
क्‍योंकि ये मनुष्‍यों के बनाए हुए नियमों को
ऐसे सिखाते हैं मानो वे धर्मसिद्धान्‍त
हों।’
8तुम लोग मनुष्‍यों की परम्‍परा का तो पालन करते हो, किन्‍तु परमेश्‍वर की आज्ञा टालते हो!”
9येशु ने उनसे कहा, “तुम लोग अपनी ही परम्‍परा बनाये रखने के लिए परमेश्‍वर की आज्ञा का उल्‍लंघन किस सुन्‍दर रीति से कर देते हो! 10क्‍योंकि मूसा ने कहा, ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करो’; और ‘जो अपने पिता या अपनी माता को बुरा कहे, उसे प्राणदण्‍ड दिया जाए।’#नि 20:12; 21:27; व्‍य 5:16 11परन्‍तु तुम लोग यह मानते हो कि यदि कोई अपने पिता या अपनी माता से कहे−‘आप को मुझ से जो लाभ हो सकता था, वह कुरबान (अर्थात् परमेश्‍वर को अर्पित) है’, 12तो फिर तुम उसे अपने पिता या अपनी माता के लिए कुछ नहीं करने देते हो। 13इस तरह तुम लोग अपनी परम्‍परा के नाम पर, जिसे तुम आगे बढ़ाते हो, परमेश्‍वर का वचन रद्द करते हो और ऐसे ही अनेक कार्य तुम करते रहते हो।”
शुद्ध और अशुद्ध की व्‍याख्‍या
14येशु ने लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, “तुम सब, मेरी बात सुनो और समझो। 15ऐसा कुछ नहीं है, जो बाहर से मनुष्‍य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्‍कि जो मनुष्‍य में से बाहर निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है।#प्रे 10:14-15 [ 16जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले!]#7:16 कुछ प्राचीन प्रतियों में 16 वां पद नहीं पाया जाता।
17जब येशु लोगों को छोड़ कर घर के भीतर आए, तो उनके शिष्‍यों ने इस दृष्‍टान्‍त का अर्थ पूछा। 18येशु ने कहा, “क्‍या तुम लोग भी इतने नासमझ हो? क्‍या तुम यह नहीं समझते कि जो कुछ बाहर से मनुष्‍य में प्रवेश करता है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकता? 19क्‍योंकि वह तो उसके मन में नहीं, बल्‍कि उसके पेट में चला जाता है और शौच द्वारा बाहर निकल जाता है।” इस तरह येशु ने सब खाद्य पदार्थों को शुद्ध ठहराया।
20येशु ने फिर कहा, “जो मनुष्‍य में से बाहर निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है। 21क्‍योंकि बुरे विचार भीतर से, अर्थात् मनुष्‍य के मन से निकलते हैं। व्‍यभिचार, चोरी, हत्‍या, 22परस्‍त्री-गमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट, लम्‍पटता, ईष्‍र्या, झूठी निन्‍दा, अहंकार और धर्महीनता#7:22 अथवा, ‘नास्‍तिकता, मूर्खता’23ये सब बुराइयाँ मनुष्‍य के भीतर से निकलती हैं और उसको अशुद्ध करती हैं।”
गैरयहूदी जाति की बालिका को स्‍वस्‍थ्‍य करना
24तब येशु उस स्‍थान को छोड़कर सोर के सीमा-क्षेत्र में गये। वहाँ वह किसी घर में ठहरे और वह चाहते थे कि किसी को इसका पता न चले, किन्‍तु वह अज्ञात नहीं रह सके।#मत 15:21-28 25एक स्‍त्री ने, जिसकी छोटी लड़की एक अशुद्ध आत्‍मा के वश में थी, तुरन्‍त ही येशु के विषय में सुनकर आई और उनके चरणों पर गिर पड़ी। 26वह स्‍त्री यूनानी जाति की थी। वह जन्‍म से सूरुफिनीकी थी। उसने येशु से विनती की कि वह उसकी बेटी में से भूत को निकाल दें। 27येशु ने उससे कहा, “पहले बच्‍चों को तृप्‍त हो जाने दो। बच्‍चों की रोटी ले कर कुत्तों#7:27 मूल में ‘छोटा कुत्ता’, ‘कुत्ते का बच्‍चा’ अथवा, ‘पिल्‍ला’। के सामने डालना ठीक नहीं है।” 28उसने उत्तर दिया, “प्रभु! कुत्ते भी मेज के नीचे बच्‍चों की रोटी का चूर-चार खाते ही हैं।” 29इस पर येशु ने कहा, “जाओ! तुम्‍हारे ऐसा कहने के कारण भूत तुम्‍हारी पुत्री से निकल गया है।” 30अपने घर लौट कर उसने देखा कि बच्‍ची खाट पर लेटी हुई है और भूत उस में से निकल चुका है।
बहरे-गूँगे को स्‍वास्‍थ्‍यलाभ
31येशु सोर के इस सीमा-क्षेत्र से चले गये। वह सीदोन से होते हुए और दिकापुलिस के सीमा-क्षेत्र को पार कर गलील की झील के तट पर पहुँचे।#मत 15:29-31 32वहाँ लोग उनके पास एक मनुष्‍य को लाए। वह बहरा था और बोलते समय बहुत हकलाता था। उन्‍होंने येशु से अनुरोध किया, “आप उस पर हाथ रख दीजिए।”#मक 5:23 33येशु ने उसे भीड़ से अलग एकान्‍त में ले जा कर उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डालीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया।#मक 8:23 34फिर आकाश की ओर आँखें उठा कर उन्‍होंने आह भरी और उससे कहा, “एफ्‍फथा” अर्थात् “खुल जा”।#मक 6:41; यो 11:41 35उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बन्‍धन भी छूट गया, जिससे वह अच्‍छी तरह बोलने लगा। 36येशु ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात किसी से नहीं कहें, परन्‍तु वह जितना ही अधिक मना करते थे, लोग उतना ही अधिक इसका प्रचार करते थे।#मक 1:43-45 37लोगों के आश्‍चर्य की सीमा न रही। वे कहते थे, “वह जो कुछ करते हैं, अच्‍छा ही करते हैं। वह बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं।”#यश 35:5

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