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नीतिवचन 11

11
1प्रभु उन व्‍यापारियों से घृणा करता है
जो झूठे नाप-तौल रखते हैं;
पर वह सच्‍चे, खरे बाट से प्रसन्न होता है।#लेव 19:35; हो 12:8; आमो 8:5-6; मी 6:10
2जब मनुष्‍य अभिमान करता है,
तब अभिमान के साथ अपमान आता है,
परन्‍तु बुद्धिमान व्यक्‍ति में नम्रता होती है।
3निष्‍कपट मनुष्‍य का मार्गदर्शन
उसकी निष्‍कपटता करती है;
परन्‍तु कपटी व्यक्‍ति अपने कपट के कारण
स्‍वयं नष्‍ट हो जाता है।
4मृत्‍यु#11:4 मूल में ‘कोप’। के दिन धन किसी काम नहीं आता,
किन्‍तु मनुष्‍य की धार्मिकता
उसको मृत्‍यु से बचाती है!#भज 49:7
5निर्दोष मनुष्‍य अपनी धार्मिकता के कारण
अपने जीवनमार्ग में सीधा चलता है।
किन्‍तु दुर्जन की दुर्जनता के कारण
उसका पतन हो जाता है।
6निष्‍कपट मनुष्‍य की रक्षा
उसकी धार्मिकता करती है,
पर विश्‍वासघाती मनुष्‍य
अपनी वासना के जाल में फंस जाता है।
7दुर्जन की मृत्‍यु के साथ
उसकी आशा भी मर जाती है;
अधार्मिक मनुष्‍य की आशा
अन्‍त में पूरी नहीं होती।
8धार्मिक मनुष्‍य संकट से मुक्‍त होता है,
परन्‍तु दुर्जन उसमें फंस जाता है।
9अधार्मिक मनुष्‍य अपने मुख के वचनों से
अपने पड़ोसी को नष्‍ट कर देता है,
पर धार्मिक मनुष्‍य अपने ज्ञान से
अपने पड़ोसी को बचाता है।
10जब धार्मिक मनुष्‍य का कल्‍याण होता है,
तब सम्‍पूर्ण नगर जय जयकार करता है
किन्‍तु दुर्जन के विनाश पर
सब नगरवासी हर्ष मनाते हैं।
11निष्‍कपट व्यक्‍ति के आशिष-वचनों से
नगर की उन्नति होती है,
परन्‍तु दुर्जन के दुर्वचनों से
वह ध्‍वस्‍त हो जाता है।
12जो मनुष्‍य अपने पड़ोसी को तुच्‍छ समझता है,
वह नासमझ है;
पर समझदार व्यक्‍ति
अपनी वाणी पर संयम रखता है!
13जो चुगलखोर इधर-उधर चुगली खाता है,
वह भेद की बात को पचा नहीं सकता;
परन्‍तु जो मनुष्‍य हृदय से विश्‍वासयोग्‍य है,
वह भेद की बात को छिपा कर रखता है।
14पथ-प्रदर्शन के अभाव में
कौम का पतन हो जाता है;
पर यदि उचित परामर्श देनेवाले मंत्री बहुत
हों तो राष्‍ट्र सुरक्षित रहता है।#1 रा 12:8-11; नीति 15:22; प्रज्ञ 6:24
15जो मनुष्‍य किसी अजनबी की जमानत लेता
है, वह हानि उठाता है;
जमानत लेने के दायित्‍व से दस कदम दूर
रहनेवाला झंझटों से बचा रहता है।
16दयालु स्‍त्री का सम्‍मान होता है,
और कठोर परिश्रम करनेवाला पुरुष
धन प्राप्‍त करता है।
17जो मनुष्‍य दूसरों पर दया करता है,
वह स्‍वयं अपना हित करता है;
पर निर्दयी मनुष्‍य
स्‍वयं अपने पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारता है।
18दुर्जन की कमाई मिथ्‍या है;
पर धार्मिकता का बीज बोनेवाला मनुष्‍य
निश्‍चय ही सच्‍चा फल प्राप्‍त करता है।#गल 6:9; 2 कुर 9:6
19धर्म पर स्‍थिर रहनेवाला मनुष्‍य
सदा जीवित रहता है,
पर जो दुष्‍कर्मों को गले लगाता है,
वह नष्‍ट हो जाता है।
20जिसके हृदय में कुटिलता निवास करती है,
उससे प्रभु घृणा करता है;
पर वह निष्‍कपट मार्ग पर चलनेवाले से
प्रसन्न होता है।
21निश्‍चय जानो!
प्रभु दुर्जन को अवश्‍य दण्‍ड देगा,
किन्‍तु धार्मिक मनुष्‍य का अनिष्‍ट न होगा।
22यदि सुन्‍दर स्‍त्री में विवेक नहीं है
तो वह सूअर के थूथन में
सोने की नथ के समान है!
23धार्मिक मनुष्‍य की अभिलाषा
केवल भलाई होती है;
पर दुर्जन की आशा का परिणाम
प्रभु का क्रोध होता है!
24मुक्‍त हृदय से लुटानेवाला मनुष्‍य
धनवान होता जाता है;
पर जो मनुष्‍य
जितना देना चाहिए उतना नहीं देता;
वह अभावग्रस्‍त हो जाता है।
25उदारता से देनेवाला मनुष्‍य
सम्‍पन्न होता है;
दूसरे के खेत को सींचनेवाले किसान की
भूमि भी सींची जाती है।#मत 7:2; 10:42
26अनाज के जमाखोर को लोग कोसते हैं,
पर जो व्‍यापारी अपना अनाज
जनता को बेच देता है,
उसको लोग आशीर्वाद देते हैं।
27जो भलाई करने के लिए सदा प्रयत्‍न करता है,
वह मनुष्‍य और परमेश्‍वर
दोनों की कृपा प्राप्‍त करता है;
पर जो बुराई की तलाश में रहता है
उसको बुराई ही मिलती है।
28अपनी धन-सम्‍पत्ति पर भरोसा करनेवाला
सूखे पत्ते के समान झड़ जाता है;
पर धार्मिक मनुष्‍य नए पत्ते के समान
लहलहाता है।
29जो मनुष्‍य अपने परिवार को दु:ख देता है
उसकी धन-सम्‍पत्ति नष्‍ट हो जाती है,
और वह मूर्ख मनुष्‍य
बुद्धिमान का गुलाम बन जाता है।
30धार्मिक व्यक्‍ति के आचरण का फल है:
जीवन वृक्ष!
पर दुष्‍कर्मी के कार्य का फल है: हिंसा!
31यदि धार्मिक को पृथ्‍वी पर ही उसके
आचरण का प्रतिफल मिल जाता है, तो फिर
दुर्जन और पापी को क्‍यों नहीं मिलेगा?#1 पत 4:18

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