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भजन संहिता 109

109
प्रतिरक्षा की याचना
मुख्‍यवादक के लिए। दाऊद का। एक भजन।
1मेरी स्‍तुति के परमेश्‍वर,
तू चुप न रह!
2दुर्जन और कुटिल व्यक्‍ति के मुंह
मेरे विरुद्ध खुले हैं,
वे मुझ से झूठी जिह्‍वा से बात करते हैं।
3घृणास्‍पद शब्‍दों से मुझे घेरते,
और अकारण मुझ पर आक्रमण करते हैं।
4वे मेरे प्रेम के बदले
मुझ पर दोषारोपण करते हैं,
फिर भी मैं निरन्‍तर प्रार्थना करता हूं।
5वे भलाई के निमित्त बुराई,
मेरे प्रेम के बदले मुझे घृणा लौटाते हैं।
6वे यह कहते हैं, ‘इसके विरुद्ध किसी दुर्जन
को न्‍यायाधीश नियुक्‍त करो;
दोषारोपण करनेवाला इसके दाहिने हाथ
पर खड़ा हो।
7जब इसका न्‍याय हो, तब यह दोषी ठहरे;
इसकी क्षमा-याचना पाप गिनी जाए।
8इसके जीवन के दिन नगण्‍य हों;
इसका पद कोई दूसरा छीन ले!#प्रे 1:20
9इसके बच्‍चे पितृहीन
और पत्‍नी विधवा हो जाए!#यिर 18:21
10इसके बच्‍चे मारे-मारे फिरें,
वे भीख मांगें;
वे अपने उजाड़ घरों से भी निकाल दिए
जाएं।
11महाजन इसका सर्वस्‍व छीन ले,
विदेशी इसके परिश्रम के फल को लूट लें।
12इस पर कोई करुणा न करे,
इसके पितृहीन बच्‍चों पर कोई दया न करे।
13इसका वंश नष्‍ट हो जाए,
दूसरी पीढ़ी में इसका नाम मिट जाए।
14इसके पूर्वजों के कुकर्म
प्रभु के समक्ष स्‍मरण किए जाएं;
इसकी माता का पाप न मिटाया जाए।
15इसके पाप प्रभु के समक्ष निरन्‍तर रहें,
प्रभु धरती से इसकी स्‍मृति मिटा डाले।
16क्‍योंकि इसने दया का व्‍यवहार करना
स्‍मरण न रखा,
बल्‍कि यह पीड़ित और दरिद्र का,
हताश व्यक्‍ति का पीछा करता रहा
कि उसे मार डाले।
17इसे शाप देना प्रिय था,
अभिशाप इस पर आ पड़े!
आशिष इसे पसन्‍द न थी;
वह इससे दूर रहे!
18यह वस्‍त्र की भांति अभिशाप धारण करता था!
जल के सदृश अभिशाप इसके पेट में,
तेल के समान इसकी हड्डियों में समा जाए।
19अभिशाप इसकी चादर बन जाए,
जिसको यह ओढ़ता है;
अभिशाप इसका कटिबन्‍ध हो जाए,
जिसको वह नित्‍य लपेटता है।’
20मुझ पर दोषरोपण करने वालों को,
मेरे विरुद्ध बुरी-बुरी बातें कहने वालों को
प्रभु की ओर से यही प्रतिफल मिले।
21किन्‍तु मुझ से, हे परमेश्‍वर, मेरे स्‍वामी,
अपने करुणामय नाम के अनुरूप
व्‍यवहार कर;
तेरी करुणा उत्तम है,
अत: मुझे मुक्‍त कर।
22मैं पीड़ित हूं, दरिद्र हूं,
मेरे भीतर मेरा हृदय घायल है।
23सन्‍ध्‍या की छाया के सदृश
मैं ढलता जाता हूं;
मैं टिड्डी की तरह उड़ा दिया गया हूं।
24उपवास के कारण मेरे घुटने कापंते है,
तेल के अभाव में मेरा शरीर सूख गया है।
25मैं लोगों के उपहास का पात्र बन गया हूं,
वे मुझे देखकर सिर हिलाते हैं।#मत 27:39
26हे प्रभु, मेरे परमेश्‍वर, मेरी सहायता कर!
अपनी करुणा के अनुरूप मुझे बचा ले।
27उन्‍हें ज्ञात हो जाए, कि यह तेरा कार्य है;
हे प्रभु, तूने ही यह किया है।
28वे अभिशाप दें,
पर तू आशिष!
मुझ पर आक्रमण करने वाले लज्‍जित हों;
पर तेरे सेवक आनन्‍दित!#यश 65:14
29मुझ पर दोषारोपण करने वाले
अपमान से विभूषित हों,
वे पराजय को वस्‍त्र की तरह धारण करें।
30मैं अपने मुंह से
प्रभु की अत्‍यधिक सराहना करूंगा;
मैं जनसमूह में उसकी स्‍तुति करूंगा।
31प्रभु दरिद्र के दाहिने हाथ पर खड़ा रहता है,
ताकि वह उसको मृत्‍यु-दण्‍ड देने वालों के
हाथ से बचाए।

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