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भजन संहिता 40

40
मुक्‍ति-प्राप्‍ति के लिए स्‍तुतिगान
मुख्‍यवादक के लिए। दाऊद का एक भजन।
1मैं धैर्य से प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ।
उसने मेरी ओर ध्‍यन दिया
और मेरी दुहाई सुनी है।
2प्रभु ने मुझे अंध-कूप से,
कीच-दलदल से ऊपर खींचा है;
उसने मेरे पैर चट्टान पर दृढ़ किए हैं;
मेरे कदमों को स्‍थिर किया है।
3प्रभु ने मुझे एक नया गीत सिखाया है,
कि हम अपने परमेश्‍वर की स्‍तुति में गाएं!#40:3 अथवा, ‘हमारे परमेश्‍वर की स्‍तुति का गान’
अनेक जन यह देखकर भयभीत होंगे;
और वे प्रभु पर भरोसा करेंगे।
4धन्‍य है वह मनुष्‍य, जो प्रभु पर भरोसा
करता है;
जो अभिमानियों का मुंह नहीं ताकता,
जो झूठ के उपासकों का साथ नहीं देता।
5हे प्रभु, मेरे परमेश्‍वर!
तूने हमारे प्रति अपने अद्भुत कार्यों
और अभिप्रायों में वृद्धि की है।
यदि मैं लोगों से उनकी चर्चा करूं,
यदि मैं उनके विषय में लोगों को बताऊं,
तो मैं बताते-बताते थक जाऊंगा;
क्‍योंकि उनकी गिनती नहीं हो सकती।
प्रभु, तेरे तुल्‍य कोई नहीं है।
6तुझे बलि और भेंट की चाह नहीं।
तूने मेरे कानों को खोला
कि मैं तेरी व्‍यवस्‍था का पालन करूं;
तुझे अग्‍निबलि और पापबलि की आकांक्षा
नहीं।#1 शम 15:22; भज 51:16; हो 6:6 #इब्र 10:5-9
7अत: मैंने कहा, “देख, मैं आ गया हूँ।
पुस्‍तक में मेरे विषय में यह#40:7 अथवा, ‘मेरे लिए आदेश’ लिखा है।
8हे मेरे परमेश्‍वर! मैं तेरी इच्‍छा को पूर्ण कर
सुखी होता हूँ।
तेरी व्‍यवस्‍था मेरे हृदय में है।”
9मैंने आराधकों की महासभा में मुक्‍ति का
संदेश सुनाया।
देख, मैंने अपने ओंठों को बन्‍द नहीं किया;
प्रभु! तू यह जानता ही है।
10मैंने तेरी मुक्‍तिप्रद सहायता को अपने हृदय
में गुप्‍त नहीं रखा;
वरन् तेरे सत्‍य और उद्धार को घोषित किया।
मैंने आराधकों की महासभा से
तेरी करुणा और सच्‍चाई को नहीं छिपाया।
11प्रभु! मुझे अपनी दया से वंचित न कर,
तेरी करुणा और सच्‍चाई मुझे निरन्‍तर सुरक्षित
रखें।
12असंख्‍य बुराइयों ने मेरे विरुद्ध घेरा डाला है,
कुकर्मों ने मुझे दबा दिया है।
अत: मैं दृष्‍टि ऊपर उठाने में असमर्थ हूँ।
कुकर्म मेरे सिर के बालों से कहीं अधिक हैं।
मेरा हृदय हताश हो गया है।
13प्रभु! मेरे उद्धार के लिए कृपा कर।
प्रभु, अविलम्‍ब मेरी सहायता कर।#भज 70:1-5
14जो मेरे प्राण की खोज में हैं,
और उसे नष्‍ट करना चाहते हैं,
वे पूर्णत: लज्‍जित हों और घबरा जाएं।
जो मेरी बुराई की कामना करते हैं,
वे पीठ दिखाएं और अपमानित हों।
15जो मुझ से “अहा! अहा!” कहते हैं,
वे अपनी लज्‍जा के कारण निस्‍सहाय हो
जाएं।
16परन्‍तु वे लोग जो तेरी खोज करते हैं,
तुझ में हर्षित और आनन्‍दित हों।
जो तेरे उद्धार से प्रेम करते हैं,
वे निरन्‍तर यह कहते रहें, “प्रभु महान है।”
17मैं पीड़ित और दरिद्र हूँ;
फिर भी तू, स्‍वामी, मेरी चिन्‍ता करता है।
तू मेरा सहायक, मेरा मुक्‍तिदाता है;
हे मेरे परमेश्‍वर, विलम्‍ब न कर।

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