भजन संहिता 66
66
परमेश्वर के महान कार्यों के लिए स्तुति
मुख्यवादक के लिए। एक गीत। भजन।
1हे सब देशो!
परमेश्वर का जय-जयकार करो,
2उसके नाम पर महिमा का गान करो,
उसके यशोगान को महिमापूर्ण बनाओ।
3परमेश्वर से यह कहो, “तेरे कार्य कितने
भयप्रद हैं।
तेरे असीम बल के कारण
तेरे शत्रु तेरे सन्मुख घुटने टेकते हैं।
4समस्त देश तेरी आराधना करते हैं;
वे तेरी स्तुति गाते,
तेरे नाम की स्तुति गाते हैं।”
सेलाह
5आओ और परमेश्वर के कार्य देखो;
वह मनुष्यों के प्रति व्यवहार में भयप्रद है।
6उसने सागर को सूखी भूमि में बदल दिया।
लोगों ने पैदल ही नदी पार की थी।
वहां हम प्रभु में हर्षित हुए थे।#यहो 3:14-17; नि 14:21
7वह अपनी शक्ति से सदा शासन करता है।
उसकी आंखें राष्ट्रों का अवलोकन करती हैं;
अत: विद्रोही गर्व से न फूलें।
सेलाह
8हे जातियों! हमारे परमेश्वर को धन्य कहो;
उसकी स्तुति के स्वर को प्रसारित करो।
9उसने हमारे प्राणों को जीवित रखा,
और हमारे पैरों को फिसलने नहीं दिया।
10परमेश्वर, तूने हमें परखा।
जैसे चांदी शुद्ध की जाती है,
वैसे तूने हमें शुद्ध किया।
11तूने हमें जाल में फंसाया,
हमारी कमर पर दुख का भार रखा।
12तूने हमारे सिर को घुड़सवारों से कुचलवाया।
हम अग्नि और जल के मध्य से गुजरे,
तो भी तूने हमें मुक्त स्थान में पहुंचाया।
13मैं तेरे भवन में अग्निबलि के साथ प्रवेश
करूंगा;
मैं तुझ को अपनी मन्नतें चढ़ाऊंगा।
14जब मैं संकट में था
तब उन मन्नतों को मैंने अपने ओंठों से
उच्चारा था;
उनको अपने मुंह से स्वीकार किया था।
15मेढ़ों की चर्बी के सुगंधित धुएं सहित,
मैं तुझ को मोटे पशुओं की अग्नि-बलि
चढ़ाऊंगा;
बकरों के साथ मैं तुझको बैल अर्पित करूंगा।
सेलाह
16ओ परमेश्वर से डरने वालो!
आओ और सुनो;
मैं तुम्हें बताऊंगा कि परमेश्वर ने मेरे लिए
क्या किया है।
17मैं ने अपने मुंह से उसे पुकारा,
और मेरी जीभ ने उसका यशोगान किया।
18यदि मैं अपने हृदय में अनिष्ट सोचता,
तो स्वामी नहीं सुनता।
19किन्तु निस्संदेह परमेश्वर ने सुना,
उसने मेरी प्रार्थना की आवाज पर ध्यान दिया।
20धन्य है परमेश्वर!
उसने मेरी प्रार्थना की उपेक्षा न की,
और न अपनी करुणा मुझ से पृथक की।
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भजन संहिता 66: HINCLBSI
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