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श्रेष्‍ठ गीत 5

5
[वर]
1‘ओ मेरी संगिनी, ओ मेरी दुलहन!
मैं अपने उद्यान में आया हूं।
मैंने अपना गन्‍धरस और बलसान चुन लिया।
मैंने मधु छत्ते से टपकता मधु खाया।
मैंने दूध के साथ अंगूर-रस पिया।’
[सखियाँ] ‘ओ मित्रो, खाओ-पियो।
ओ प्रेमियो, छककर पियो।’ #यश 55:1-2
वियोग की पीड़ा
[वधू]
2‘मैं सोई हुई थी,
पर मेरा मन जाग रहा था।
सुनो, मेरा प्रियतम द्वार खटखटा रहा है :
“ओ मेरी संगिनी, मेरी प्रियतमा,
मेरी कपोती, मेरी निष्‍कलंक सुन्‍दरी!
मेरे लिए द्वार खोल!
मेरा सिर ओस से भीग गया है।
मेरी लटें रात में टपकती बूंदों से तर हैं।” #प्रक 3:20
3मैं अपनी साड़ी उतार चुकी हूं,
अब उसे मैं फिर कैसे पहनूं?
मैं अपने पैर धो चुकी हूं,
मैं उन्‍हें कैसे भूमि पर रखकर मैला करूं?
4मेरे प्रियतम ने अपना हाथ दराज में डाला,
मेरा हृदय भीतर ही भीतर धड़कने लगा।
5मैं अपने प्रियतम के लिए
द्वार खोलने के लिए उठी।
मेरे हाथों से गन्‍धरस टपक रहा था,
किल्‍ली के मूंठों पर
मेरी अंगुलियों से तरल गन्‍धरस टपक रहा था।
6मैं अपने प्रियतन के लिए
द्वार खोल ही रही थी कि
मेरा प्रियतम मुड़कर चला गया।
जब उसने मुझे पुकारा
तब मैं सुध-बुध खो बैठी थी।
मैंने उसको पुकारा, परन्‍तु उसने उत्तर नहीं
दिया।#हो 5:6
7मैं पहरेदारों के हाथ में पड़ गई।
वे नगर में घूम-घूमकर पहरा दे रहे थे।
उन्‍होंने मुझे घायल कर दिया।
शहरपनाह के पहरेदारों ने
मेरी चुनरी छीनकर मुझे नग्‍न कर दिया।
8‘ओ यरूशलेम की कन्‍याओ!
मैं तुम्‍हें शपथ देती हूं!
अगर तुम्‍हें मेरा प्रियतम मिले
तो तुम उसे यह अवश्‍य बताना
कि मैं प्रेम-ज्‍वर से पीड़ित हूं।’
वधू द्वारा वर की प्रशंसा
[सखियाँ]
9‘ओ परम सुन्‍दरी,
तेरा प्रियतम अन्‍य प्रेमियों से
किस बात में श्रेष्‍ठ है,
उसमें क्‍या विशेषता है
कि तू हमें शपथ देती है?’
[वधू]
10‘मेरे प्रियतम में तेज है, उसमें
लालिमा है।
वह हजारों में एक है।
11उसका ललाट चोखा सोने का-सा है,
उसकी लहलहाती हुई लटें,
कौओं की तरह काली हैं।
12उसकी आंखें झरने तट पर पंिक्‍तबद्ध बैठी,
दूध की धुली कपोतियों के सदृश हैं।।#5:12 मूल अस्‍पष्‍ट।
13उसके ओंठ मानो सोसन पुष्‍प हैं
जिनसे तरल गन्‍धरस टपकता है।
उसके गाल बलसान की क्‍यारियां हैं
जो सुगन्‍ध बिखेरती हैं।
14उसकी भुजाएँ फिरोजा जड़ी हुई
सोने की छड़ों के समान हैं।
उसका शरीर मानो हाथीदांत का बना है
और उसमें नील मणियाँ जड़ी गई हैं।
15उसके पैर संगमर्मर के खम्‍भे हैं,
जो शुद्ध सोने पर बैठाए गए हैं।
उसका रूप लबानोन के सदृश है,
सर्वोत्तम देवदार वृक्ष के सदृश
वह आकर्षक है।
16उसका कण्‍ठ अत्‍यन्‍त मधुर है,
वह हर दृष्‍टि से सुन्‍दर है।
ओ यरूशलेम की कन्‍याओ,
यह मेरा प्रियतम है, यही मेरा मित्र है।’#भज 45:2; यिर 31:3
[सखियाँ]

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