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2 थिस्सलुनीकियों 2

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पाप का पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र
1हे भाइयो, अब हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से विनती करते हैं#1 थिस्स 4:15–17 2कि किसी आत्मा, या वचन, या पत्री के द्वारा, जो कि मानो हमारी ओर से हो, यह समझकर कि प्रभु का दिन आ पहुँचा है, तुम्हारा मन अचानक अस्थिर न हो जाए और न तुम घबराओ। 3किसी रीति से किसी के धोखे में न आना, क्योंकि वह दिन न आएगा जब तक धर्म का त्याग न हो ले, और वह पाप का पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रगट न हो। 4जो विरोध करता है, और हर एक से जो ईश्‍वर या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्‍वर के मन्दिर#2:4 यू० पवित्रस्थान में बैठकर अपने आप को ईश्‍वर ठहराता है।#दानि 11:36; यहेज 28:2 5क्या तुम्हें स्मरण नहीं कि जब मैं तुम्हारे यहाँ था, तो तुम से ये बातें कहा करता था? 6तुम उस वस्तु को जानते हो, जो उसे अभी रोक रहा है कि वह अपने ही समय में प्रगट हो। 7क्योंकि अधर्म का भेद अब भी कार्य करता जाता है, पर अभी एक रोकनेवाला है, और जब तक वह दूर न हो जाए वह रोके रहेगा। 8तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुँह की फूँक से मार डालेगा, और अपने आगमन के तेज से भस्म करेगा।#यशा 11:4 9उस अधर्मी का आना शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ्य, और चिह्न, और अद्भुत काम के साथ,#मत्ती 24:24 10और नाश होनेवालों के लिये अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ होगा; क्योंकि उन्होंने सत्य से प्रेम नहीं किया जिस से उनका उद्धार होता। 11इसी कारण परमेश्‍वर उनमें एक भटका देनेवाली सामर्थ्य को भेजेगा कि वे झूठ की प्रतीति करें, 12ताकि जितने लोग सत्य की प्रतीति नहीं करते, वरन् अधर्म से प्रसन्न होते हैं, वे सब दण्ड पाएँ।
दृढ़ बने रहो
13हे भाइयो, और प्रभु के प्रिय लोगो, चाहिये कि हम तुम्हारे विषय में सदा परमेश्‍वर का धन्यवाद करते रहें, क्योंकि परमेश्‍वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया कि आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर, और सत्य की प्रतीति करके उद्धार पाओ, 14जिस के लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्‍त करो। 15इसलिये हे भाइयो, स्थिर रहो; और जो जो बातें तुम ने चाहे वचन या पत्री के द्वारा हम से सीखी हैं, उन्हें थामे रहो।
16हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्‍वर, जिसने हम से प्रेम रखा और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है, 17तुम्हारे मनों में शान्ति दे और तुम्हें हर एक अच्छे काम और वचन में दृढ़ करे।

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