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दानिय्येल भूमिका

भूमिका
दानिय्येल की पुस्तक ऐसे समय में लिखी गई थी जब एक मूर्तिपूजक राजा यहूदियों को बुरी तरह सता रहा था और उनका दमन कर रहा था। लेखक कई कथाओं और दर्शनों का वर्णन करके अपने समय के लोगों को उत्साहित करता और उनमें यह आशा जागृत करता है कि, परमेश्‍वर इस तानाशाह को नीचा दिखाएगा और परमेश्‍वर के लोगों की सर्वोच्‍चता को पुन: स्थापित करेगा।
इस पुस्तक के दो मुख्य भाग हैं : (1) दानिय्येल और उसके कुछ साथी–निर्वासितों से सम्बन्धित घटनाएँ। उन्होंने परमेश्‍वर में अपने विश्‍वास और उसकी आज्ञाकारिता के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाई। ये घटनाएँ बेबीलोनी और फारसी साम्राज्यों के समय की हैं। (2) दानिय्येल द्वारा देखे गए दर्शनों की शृंखलाएँ जो प्रतीकों के रूप में, बेबीलोन से आरम्भ करके, कई साम्राज्यों के क्रमिक उत्थान और पतन को प्रगट करते हैं, तथा उस मूर्तिपूजक अत्याचारी के पतन और परमेश्‍वर के लोगों की विजय की भविष्यद्वाणी भी करते थे।
रूप–रेखा :
दानिय्येल और उसके मित्र 1:1—6:28
दानिय्येल के दर्शन 7:1—12:13
(क) चार पशु 7:1–28
(ख) मेढ़ा और बकरा 8:1—9:27
(ग) स्वर्गीय संदेशवाहक 10:1—11:45
(घ) अन्त का समय 12:1–13

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