शारीरिक स्वभाव के कर्म प्रत्यक्ष हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, लम्पटता, मूर्ति-पूजा, जादू-टोना, बैर, फूट, ईष्र्या, क्रोध, स्वार्थपरता, मनमुटाव, दलबन्दी, द्वेष, मतवालापन, रंगरलियाँ और इसी प्रकार की अन्य बातें। मैं आप लोगों से कहता हूँ, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, जो लोग इस प्रकार का आचरण करते हैं, वे परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगे।