अत: अब लेवीय उप-पुरोहितों को प्रभु के शिविर, तथा उसकी आराधना में प्रयुक्त होने वाली वस्तुओं को ढोने की आवश्यकता नहीं रही।’ ( दाऊद के अन्तिम आदेश से बीस वर्ष तथा उससे अधिक आयु के लेवी कुल के पुरुषों की गणना की गई।) ‘अब ये मन्दिर में प्रभु की आराधना के लिए हारून के वंशजों−पुरोहितों−की सहायता करेंगे। ये भवन के आंगनों और कक्षों का दायित्व संभालेंगे। पवित्र पात्रों को धोएंगे। वस्तुत: ये परमेश्वर के भवन के सब सेवा-कार्य करेंगे। ये इन कार्यों में भी सहायता करेंगे: भेंट की रोटी तैयार करना; अन्न-बलि का आटा पीसना; बेखमीर रोटी की पपड़ियां, भुंजे हुए अन्न की भेंट, तेल मिश्रित भेंट, आदि की देख-भाल करना। इनके अतिरिक्त लेवीय उपपुरोहित मन्दिर की वस्तुओं को नापने और तोलने का कार्य करेंगे। वे प्रतिदिन प्रात: और संध्या समय प्रभु के सम्मुख खड़े होकर प्रभु की सराहना और स्तुति करेंगे। इसके अतिरिक्त जब विश्राम-दिवस पर, नवचन्द्र पर्व पर तथा अन्य पर्वों पर अन्न-बलि चढ़ाई जाएगी, तब जितने उप-पुरोहितों की आवश्यकता पड़ेगी उतने उप-पुरोहित प्रभु के सम्मुख नियमित रूप से उपस्थित होंगे। ‘इस प्रकार वे मिलन-शिविर तथा पवित्र-स्थान का दायित्व संभालेंगे। वे मन्दिर में प्रभु की आराधना में पुरोहितों की, अपने चचेरे भाई-बन्धुओं, हारून के वंशजों की सहायता करेंगे।’
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