व्यवस्था-विवरण पुस्तक परिचय
पुस्तक परिचय
व्यवस्था-विवरण ग्रंथ पवित्र बाइबिल के आरंभिक “पंचग्रंथ” की पांचवीं पुस्तक है। उसे मूसा के उपदेशों, भाषणों तथा वार्ताओं एवं निर्देशों के “विवरण” (व्य 17:18) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ग्रंथकार के अनुसार मूसा ने ये प्रवचन इस्राएलियों को उस समय दिये थे, जब वे निर्जन प्रदेश की लम्बी यात्रा के पश्चात् मोआब देश में डेरा डाले हुए थे, और कनान देश पर कब्जा करने के लिए उस में प्रवेश करने वाले थे।
व्यवस्था-विवरण में अनेक महत्वपूर्ण बातें संकलित हैं :
(1) मूसा बीते चालीस वर्षों में घटित महान घटनाओं को स्मरण करते हैं, और इस्राएलियों को याद दिलाते हैं कि परमेश्वर किस प्रकार निर्जन प्रदेश में उनका मार्गदर्शन करता रहा। अत: उन्हें परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी तथा निष्ठावान होना चाहिए।
(2) मूसा दस आज्ञाओं का पुनरावलोकन करते हैं, और पहली आज्ञा के अर्थ पर विशेष जोर डालते हैं। वह इस्राएलियों का आह्वान करते हैं कि वे केवल प्रभु परमेश्वर की आराधना-भक्ति करें।
तत्पश्चात् वह अन्य विधि-निषेध के नियमों का पुनरीक्षण करते हैं, जिनसे इस्राएलियों का जीवन शासित होगा, जब वे कनान देश में बस जायेंगे। वे एक ही व्यवस्था के अधीन एकीकृत आराधना-समुह होंगे।
व्यवस्था-विवरण की यह केन्द्रीय आचार-संहिता (अध्य. 12-26) राजा योशियाह के राज्यकाल में धर्मसुधारों का आधार बनी (2 रा 22:8)।
(3) मूसा इस्राएलियों को उस विधान का भी स्मरण दिलाते हैं, जो परमेश्वर ने उनके साथ स्थापित किया है। मूसा इस्राएलियों को आदेश देते हैं कि वे विधान के अनुबन्धों का पालन प्रतिबद्धता से करें।
(4) यहोशुअ को यह दायित्व सौंपा जाता है कि वह मूसा के पश्चात् परमेश्वर के निज लोगों का नेतृत्व करे।
परमेश्वर के सत्य-प्रेम के सम्बन्ध में गीत गाने तथा इस्राएली समाज को अंतिम आशीर्वाद देने के पश्चात् मूसा का निधन हो जाता है।
व्यवस्था-विवरण ग्रंथ का केन्द्रीय विचार यह है कि परमेश्वर अपने चुने हुए इस्राएली लोगों से प्रेम करता है। वे इसके योग्य नहीं थे; फिर भी उसने उन्हें बचाया और उन्हें आशिष दी। इस्राएली कौम को यह स्मरण रखना होगा और उन्हें भी अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करना और उसकी आज्ञा का पालन करना होगा, ताकि वे जीवित रहें और परमेश्वर की आशिष उन पर निरंतर बरसती रहे। पुस्तक का यह दृष्टिकोण अगले “ऐतिहासिक ग्रन्थों” (अर्थात् यहोशुअ, शासक, 1-2 शमूएल तथा 1-2 राजा) की रचना-शैली में भी दिखाई देगा।
व्यवस्था-विवरण ग्रंथ के अध्याय 6 के पद 4-6 अत्यन्त महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये इस्राएलियों की दैनिक प्रार्थना के आरंभिक शब्द हैं और भक्तिमय सदाचरण पर जोर देते हैं : “अपने प्रभु परमेश्वर को अपने सम्पूर्ण हृदय और अपनी सम्पूर्ण शक्ति से प्रेम करना” ।
विषयवस्तु की रूपरेखा
मूसा का पहला प्रवचन 1:1−4:49
मूसा का दूसरा प्रवचन 5:1−26:19
(क) दस आज्ञाएं 5:1−10:22
(ख) व्यवस्था के अन्य नियम और चेतावनियां 11:1−26:19
कनान देश में प्रवेश करने के निर्देश 27:1−28:68
मूसा का तीसरा प्रवचन : विधान (वाचा) का पुनरीक्षण 29:1−30:20
मूसा के अंतिम वचन 31:1−33:29
मूसा की मृत्यु 34:1-12
वर्तमान में चयनित:
व्यवस्था-विवरण पुस्तक परिचय: HINCLBSI
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Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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