सभा-उपदेशक 8

8
1बुद्धिमान मनुष्‍य किसके समान है?
कौन व्यक्‍ति तत्‍व का अर्थ जानता है?
मनुष्‍य की बुद्धि के कारण उस‍का मुख
चमकता है,
और उसके चेहरे की कठोरता दूर हो जाती है।
राजा के प्रति ईमानदार रहो
2राजा की आज्ञा का पालन करो, अपनी पवित्र शपथ के कारण मत भयभीत हो।#रोम 13:5 3उसके सम्‍मुख से चले जाओ; यदि वह किसी बात से अप्रसन्न है तो तुम वहाँ मत ठहरो; क्‍योंकि राजा जैसा चाहता है वैसा करता है।
4राजा के शब्‍दों में परम सत्ता होती है। राजा से कौन पूछ सकता है, ‘आप यह क्‍या कर रहे हैं?’
5जो व्यक्‍ति राजा की आज्ञा का पालन करता है, उसका अनिष्‍ट नहीं होता।
परमेश्‍वर की कार्य-विधि मनुष्‍य की समझ से परे है
बुद्धिमान मनुष्‍य उपयुक्‍त समय और उपयुक्‍त कार्य-विधि जानता है। 6प्रत्‍येक बात का उपयुक्‍त समय और उसकी उपयुक्‍त कार्य-विधि होती है, यद्यपि मनुष्‍य की बुराई उसके लिए बहुत भारी पड़ती है। 7मनुष्‍य यह नहीं जानता है कि क्‍या होने वाला है, क्‍योंकि कौन व्यक्‍ति उसे भविष्‍य में घटनेवाली बातें बता सकता है? 8ऐसा कौन मनुष्‍य है जिसका वश प्राण पर चले, और वह प्राण के निकलते समय उसको रोक ले? मृत्‍यु के दिन पर मरनेवाले का अधिकार नहीं होता। युद्ध से छुटकारा नहीं मिलता, और न दुर्जन व्यक्‍ति अपनी दुर्जनता के कारण मृत्‍यु से बच सकता है।
9जब मैंने सूर्य के नीचे धरती पर होनेवाली बातों पर गम्‍भीरतापूर्वक अपना मन लगाया, तब मैंने यह देखा: जब एक मनुष्‍य दूसरे मनुष्‍य पर प्रभुत्‍व जमाता है तब वह स्‍वयं का अनिष्‍ट करता है।
10तब मैंने दुर्जनों को कबर में गाड़े जाते हुए देखा। वे पवित्र स्‍थान में आते जाते थे। नगर में जहाँ उन्‍होंने नाना प्रकार के दुष्‍कर्म किए थे, उनकी प्रशंसा की जाती थी। यह भी व्‍यर्थ है। 11दुष्‍कर्म के लिए व्यक्‍ति को जल्‍दी दण्‍ड नहीं मिलता, इसलिए मनुष्‍यों का हृदय दुष्‍कर्म करने में लगा रहता है।#अय्‍य 21:32-33 12यद्यपि पापी मनुष्‍य सौ बार दुष्‍कर्म करता है, और उसे दण्‍ड नहीं मिलता, वह लम्‍बी उम्र तक जीवित रहता है, तथापि मैं यह जानता हूं कि परमेश्‍वर से डरनेवालों का अन्‍त में भला ही होता है। परमेश्‍वर उनका भला करता है, क्‍योंकि वे उससे डरते हैं। 13निस्‍सन्‍देह दुर्जन का अन्‍त में भला नहीं होगा, और न वह छाया के सदृश अपनी उम्र लम्‍बी कर सकेगा, क्‍योंकि वह परमेश्‍वर से नहीं डरता है।
14एक बात और : यह भी व्‍यर्थ है, और पृथ्‍वी पर होती है। धार्मिक व्यक्‍तियों को दुर्जन मनुष्‍यों के दुष्‍कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, और दुर्जन मनुष्‍य धार्मिक व्यक्‍तियों के सत्‍कर्मों का फल प्राप्‍त करते हैं। अत: मैं कहता हूं, यह भी व्‍यर्थ है। 15इसलिए मैं लोगों को सलाह देता हूं: आनन्‍द मनाओ। सूर्य के नीचे धरती पर मनुष्‍य के लिए खाने-पीने और आनन्‍द मनाने के अतिरिक्‍त और कुछ भी अच्‍छा नहीं है। जो आयु परमेश्‍वर ने उसे इस धरती पर प्रदान की है, उसके परिश्रम में यही आनन्‍द विद्यमान रहेगा।
16जब मैंने बुद्धि प्राप्‍त करने के लिए, तथा पृथ्‍वी पर होने वाले कार्य-व्‍यापार को समझने के लिए मन लगाया, और जब मैंने यह जानने का प्रयत्‍न किया कि कैसे मनुष्‍य रात-दिन जागते रहते हैं, 17तब मुझे अनुभव हुआ कि परमेश्‍वर का समस्‍त कार्य, जो सूर्य के नीचे इस धरती पर होता है, चाहे मनुष्‍य उसका भेद जानने के लिए कितना ही परिश्रम क्‍यों न करे, वह उसका पता नहीं लगा सकता। यदि कोई बुद्धिमान मनुष्‍य उसको जानने का दावा करे तो भी वह उसका पता नहीं लगा सकता।

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