मैं ध्यान से उनकी बातें सुनता हूं, किन्तु वे उचित बात बोलते ही नहीं! एक भी आदमी अपने दुष्कर्म के लिए पश्चात्ताप नहीं करता; बल्कि वह कहता है, “मैंने किया ही क्या है?” जैसे घोड़ा युद्ध के मैदान में बिना समझे-बूझे अपनी नाक की सीध में दौड़ता है, वैसे ही यह जाति मनमाना आचरण कर रही है।
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